साँप

 इंन्सानरूपी जहरीले साँपों ने ,

जिनपर मैंने अपना समझकर दिव्य प्रेम किया था , फिर भी वही साँप मुझको डस गये , उन सभी साँपों का भयंदर दुर्दैव और अंत:काल नजदीक आया है !

जय श्रीकृष्ण !!


विनोदकुमार महाजन

Comments

Popular posts from this blog

ऊँ कालभैरवाय नम :

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र