सुखदुख

 जो दूसरों के सुखों का निरंतर विचार करता है , ईश्वर भी उसके सुखों का ही विचार करता है !

जो दूसरों को निरंतर दुख , दर्द  पीडा , यातना देता है ,

ईश्वर भी उसके जीवन का

सारा सुखचैन छीन लेता है !


विनोदकुमार महाजन

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