न जाने कहाँ गये वो दिन...???

न जाने कहाँ गये वो दिन...।

न जाने कहाँ गये वो दिन ?
याद आते है वही पूराने सुनहरे दिन।
इंन्सान तो इंन्सान था,
अब सचमुच में इंन्सान, इंन्सान ही रहा है क्या ?
मगर अब तो इंन्सानियत गई कहाँ ?
इंन्सानियत मर गई,हैवानियत जाग गई।
प्रभु की सुंदर धरती
पाप के आतंक से काँप गई।

न जाने कहाँ गये वो दिन...?
जब आदमी आदमी पर
सच्चा प्यार करता था।
घर आँगन भी प्यारा प्यारा लगता था।
अब सारे रिश्ते नाते रूठ गये।
पैसों के लालच में,मायावी बाजार में सबकुछ लुट गये।

याद आते है वो बिते दिन
जहाँ ममता थी,एकता थी,
हँसींखुशी का माहौल भी
जबरदस्त था।
भाईबहनों के प्यार से
आँगन सारा फला फुला था।

न जाने कहाँ गये ओ दिन ?
न जाने कहाँ गये ओ दिन ?

विनोदकुमार महाजन।

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