अपमान
... अपमान ...
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अगर किसीने हमारा जानबूझकर अपमान किया तो हमारे अंदर आग सी लग जाती है।अपमान सहा नही जाता है।इसीलिए अपमान का भयंकर जहर हजम करने के लिए अपनी आत्मा में जबरदस्त शक्ती चाहिए।
जिसका अपमान किया गया है वह व्यक्ति प्रतिशोध की आग में धधकती रहती है,और वक्त मिलते ही अपमान करनेवालों.का प्रतिशोध लेकर मन को ठंडक दी जाती है।
अपमान का प्रतिशोध लेना यह केवल मनुष्यों में ही नही तो अन्य अनेक सजीव प्राणियों में भी देखा जाता है।
मगर... जिसे जीवन की लडाई जीतनी ही है,उसे ठंडे दिमाग से अपमान का जहर हजम करके आगे जाना पडता है।
नही तो मंजिल तक पहुंचने में अनेक बाधाएं उत्पन्न हो सकती है।और प्रतिशोध की अग्नि में तडपते हुए हमारी मंजिल भी हाथों से छूट सकती है।
अगर अपमान करनेवाले का प्रतिशोध लेना ही है तो बहुत बडा नाम कमाकर भी ले सकते हो।और हमारी श्रेष्ठता, योग्यता तथा अपमान करनेवाले की औकात,झिरो लायकी भी दिखा सकते हो।
अपमान यह एक भयंकर जहर के समान होता है।
विषेषतः यह जहर कलियुग में दुष्टों के कंठों में सदैव रहता है।कोई सज्जन सामने आये,या किसिकी प्रगति हो रही हो तो दुष्ट हमेशा जलते रहते है और अपने मुख से,कंठ से दुसरों का अपमान करने का जहर सदैव उगालते रहते है।
दुष्टों को उनका विरोध करनेपर भी और प्रोत्साहन मिलता है और ऐसे महापातकी सज्जनों का और अपमान करते रहते है।
और सत्पुरुष अगर गृहदशा में फँसा है तो दुर्जनों को और मजा आती है और बडे आनंद से ऐसे दुष्टात्माएँ सज्जनों को तडपाती रहती है।
और भगवान भी ऐसे कठिन समय में बहुत कठोर सत्वपरिक्षाएं लेता रहता है।
योग्यता तथा श्रेष्ठत्व होनेपर भी उनका कहना ना समाज में माना जाता है,और नाही घरवाले भी उसके शब्द को किमत देते है।
ऐसे कठिन समय में शांती से,मौन होकर गृहदशा का समय काटना और ...समय का इंतजार करते रहकर अपेक्षित यश खिंचकर लाना ही सही पुरूषार्थ होता है।
शांती,संयम,मौन ही मंजिल की ओर बढने के जबरदस्त शक्तीशाली शस्त्र होते है।
मौन होकर दुर्जनों को दुर्लक्षित करते ही मंजिल की ओर बढते रहने से ही आत्मबल तथा बुलंद हौसले बढते जाते है।संयम से अनेक असाध्य कार्य भी सफल किये जाते है।
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
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अगर किसीने हमारा जानबूझकर अपमान किया तो हमारे अंदर आग सी लग जाती है।अपमान सहा नही जाता है।इसीलिए अपमान का भयंकर जहर हजम करने के लिए अपनी आत्मा में जबरदस्त शक्ती चाहिए।
जिसका अपमान किया गया है वह व्यक्ति प्रतिशोध की आग में धधकती रहती है,और वक्त मिलते ही अपमान करनेवालों.का प्रतिशोध लेकर मन को ठंडक दी जाती है।
अपमान का प्रतिशोध लेना यह केवल मनुष्यों में ही नही तो अन्य अनेक सजीव प्राणियों में भी देखा जाता है।
मगर... जिसे जीवन की लडाई जीतनी ही है,उसे ठंडे दिमाग से अपमान का जहर हजम करके आगे जाना पडता है।
नही तो मंजिल तक पहुंचने में अनेक बाधाएं उत्पन्न हो सकती है।और प्रतिशोध की अग्नि में तडपते हुए हमारी मंजिल भी हाथों से छूट सकती है।
अगर अपमान करनेवाले का प्रतिशोध लेना ही है तो बहुत बडा नाम कमाकर भी ले सकते हो।और हमारी श्रेष्ठता, योग्यता तथा अपमान करनेवाले की औकात,झिरो लायकी भी दिखा सकते हो।
अपमान यह एक भयंकर जहर के समान होता है।
विषेषतः यह जहर कलियुग में दुष्टों के कंठों में सदैव रहता है।कोई सज्जन सामने आये,या किसिकी प्रगति हो रही हो तो दुष्ट हमेशा जलते रहते है और अपने मुख से,कंठ से दुसरों का अपमान करने का जहर सदैव उगालते रहते है।
दुष्टों को उनका विरोध करनेपर भी और प्रोत्साहन मिलता है और ऐसे महापातकी सज्जनों का और अपमान करते रहते है।
और सत्पुरुष अगर गृहदशा में फँसा है तो दुर्जनों को और मजा आती है और बडे आनंद से ऐसे दुष्टात्माएँ सज्जनों को तडपाती रहती है।
और भगवान भी ऐसे कठिन समय में बहुत कठोर सत्वपरिक्षाएं लेता रहता है।
योग्यता तथा श्रेष्ठत्व होनेपर भी उनका कहना ना समाज में माना जाता है,और नाही घरवाले भी उसके शब्द को किमत देते है।
ऐसे कठिन समय में शांती से,मौन होकर गृहदशा का समय काटना और ...समय का इंतजार करते रहकर अपेक्षित यश खिंचकर लाना ही सही पुरूषार्थ होता है।
शांती,संयम,मौन ही मंजिल की ओर बढने के जबरदस्त शक्तीशाली शस्त्र होते है।
मौन होकर दुर्जनों को दुर्लक्षित करते ही मंजिल की ओर बढते रहने से ही आत्मबल तथा बुलंद हौसले बढते जाते है।संयम से अनेक असाध्य कार्य भी सफल किये जाते है।
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
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