साँपों के मुंह से अमृत ?

 साँपों के मुंह से अमृत ?

✍️ २१८५


विनोदकुमार महाजन


🐍🐍🐍🐍🐍


साँप,

साधारणतः जहर उगलने वाली प्रजाति ! सभी साँप जहरीले नही होते है !

फिर भी, साँप ऐसा शब्द मुंह से निकलते ही,मनुष्य प्राणी सजग हो जाता है !


क्या साँपों के मुंह से, जहर के जगह, कभी अमृत भी निकलेगा ? ऐसा सोचना भी ठीक रहेगा ? क्योंकि, आखिर साँप तो साँप ही होता है ! और उसके मुंह से अमृत निकलना कभी भी संभव नहीं है !


ठीक इसी प्रकार से दुष्ट लोग होते है ! इसीलिए ऐसे दुष्ट लोगों पर कोई भी विश्वास, भरौसा नहीं करता है ! बल्कि दुष्ट मानव प्राणी दिखते ही,लोग ऐसे दुष्टों से दूर चले जाते है, अथवा सावधानी बरतते है !

क्योंकि दुष्ट व्यक्ति हमेशा दूसरों का बूरा ही सोचता रहता है ! दूसरों का बूरा ही करता रहता है ! दुष्टों की चाहे आरती भी उतारेंगे, तो भी ऐसे लोगों का आचरण कभी भी सुधरता नहीं है !

दूसरों की हमेशा, विनावजह नींदा करते रहना, दूसरों को दुखदर्द, पीडा,तकलीफ देते रहना, दूसरों का हमेशा बूरा ही करते रहना, यही दुष्ट लोगों का स्वभाव होता है !और जिस प्रकार से, साँपों के मुंह से अमृत निकलना असंभव होता है, ठीक इसी प्रकार से,दुष्टों से,अच्छाई की अपेक्षा करना भी गलत होता है ! दुष्ट आजीवन दुष्ट ही रहते है ! ऐसे जालीम, जहरीले लोग जीवनभर कभी भी सुधरते नहीं है ! इसीलिए ऐसे लोगों से, आजीवन, दूरी बनाये रखना ही संपूर्ण हीतकारी होता है !


दूसरी एक महत्वपूर्ण बात यह भी है की,दुष्टों पर हम चाहे कितना भी प्रेम करें...ऐसे लोग कभी भी सुधरते नहीं है ! बल्कि प्रेम करनेवालों को भी धोका दे सकते है ! विश्वासघात कर सकते है ! गला घोंट सकते है !

इसिलिए इनपर भरौसा करना भी,आत्मघात साबित हो सकता है !


वैसे तो सुष्ट और दुष्ट मानसिकता ईश्वर ने ही निर्माण की हुई है ! क्योंकि ऐसा होना केवल मनुष्य प्राणीयों में ही संभव है ! इसीलिए चौ-याशी लक्ष योनियों में से, केवल मानव समुह में ही दुष्ट लोग होते है ! बाकी सभी प्राणी, पक्षी निष्पाप, निरपेक्ष होते है !ईश्वरी कानून के अनुसार चलनेवाले !


दुष्ट और सुष्टों की कभी भी जमती नहीं है ! पटती नहीं है ! इसिलिए ऐसी विरूद्ध शक्तियां एकत्रित आ ही नहीं सकती है ! और अगर एकत्रित आती भी है तो...विवाद, संघर्ष शुरू हो जाता है !

इसे ही सज्जन और दुर्जन भी कह सकते है ! इसिलिए सज्जन और दुर्जन एक जगहों पर,एक मंच पर,एक व्यासपीठ पर कभी भी नहीं आ सकते है !


सज्जन और दुर्जन का बैर तो सृष्टी से और मनुष्य प्राणियों से निर्मीती से लेकर, सृष्टी के अंत तक चलता ही रहेगा !

सुष्ट और दुष्ट ऐसे दो विभागों में ही, मानव प्राणीयों का विभाजन होता है !


सज्जन शक्ति मतलब सभी का भला करनेवाला ! सभी का शुभचिंतक ! परोपकारी, दयालु, क्षमाशील !

और दूर्जन मतलब ? हमेशा दूसरों का केवल और केवल बूरा ही सोचनेवाला,बूरा ही करनेवाला,मतलबी, स्वार्थी, ढोंगी, राक्षसी, क्रूर, विश्वासघाती

व्यक्ति !


तो दोनों में कैसी जमेगी ?

जैसे की,

राम - रावण !

कृष्ण - कंस,दुर्योधन !

नारसिंह - हिरण्यकशिपु !

देव - दानव !

अच्छा इंन्सान - बूरा इंन्सान !

पुण्यात्मा - पापात्मा !

परोपकारी - परपीडा देनेवाला !


ईश्वर भी कमाल का है !

सज्जन शक्ति और दुर्जन शक्ति, खुद ईश्वर ने ही निर्माण की !

और दुष्टों का, दुर्जनों का,पापीयों का,राक्षसों का,आसुरीक शक्तियों का....

संहार करने के लिए,

अवतार धारण करके,देह धारण करके,अनेक बार,धरती पर अवतरित भी होता है !


प्रभु ,

तेरी लीला अपरंपार !

सृष्टी रचियता,प्रभुपरमात्मा को,एक ही प्रार्थना...

हे प्रभु ,

दुष्ट, पापात्माओं के दर्शन से भी हमें,हमेशा दूर रखना !

ऐसे पापात्माओं के दर्शन मात्र से भी , भयंकर दुखदर्द, पीडा, यातना होती है !

जहरीले साँपों के एक बार दर्शन होंगे तो चलेंगे, मगर, दुर्जनों के दर्शन भी नहीं होने चाहिए !


इसिलिये साथियों,

दुष्ट, दूरात्मा,पापीयों से हमेशा दूरी बनाके रखिए !

अन्यथा, ऐसी भयंकर प्रजाति, जीवन बर्बाद कर सकती है !

अथएव सावधान !


।। दुर्जनं प्रथमं वंदे ।।


🙏🙏🙏🙏🙏


हरी ओम्

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