एक विश्लेषण

 एक विश्लेषण

✍️ २१७७


विनोदकुमार महाजन

-----------------------------

मेरा,

" सद्गुरु चरण " यह लेख पढकर मुझे अपने ग्रुप से तथा दूसरे अनेक ग्रुप से कुछ महात्माओं ने फोन और मेसेज दे कर यह पूछा है की,

आपने इस लेख में जो अनुभव लिखे है...

यह क्या वास्तव मे आये है ?

या स्वप्न दृष्टांत हो गये है ?

इसिलिए यह विश्लेषण जरूरी हो गया है !


कुछ महात्माओं ने लिखा है की,

आध्यात्मिक दिव्यानुभुती यह गुप्त धन जैसा विषय होता है !

यह विषय किसी को बताने योग्य नही होता है !


इसका विश्लेषणात्मक उत्पन्न यह है की,

सज्जनगड के समर्थ रामदास स्वामी जी ने जब कठोर तपश्चर्या की और तपश्चर्या के पश्चात,उन्हे साक्षात रामजी के तथा हनुमानजी के भी दर्शन हो गये !

रामदास स्वामी को गुरूमंत्र कैसे मिला,कितने सालों की तपश्चर्या हो गई और श्रीराम तथा हनुमान जी के दर्शन कब और कैसे हुए,इसका विस्तृत विवेचन देखने को मिलता है!

और यह जानकारी संपूर्णतः रामदास स्वामी जी द्वारा ही उधृत की गई है !


दुसरी महत्वपूर्ण बात,

कठोर तपश्चर्या के बाद,अनेक सिध्दीयाँ हासिल करने के बाद भी,देवीदेवताओं का वरदान प्राप्त होने पर भी,

आसमानी और सुलतानी मुसिबतों का संपूर्ण देश में हाहाकार था,

तब समर्थ रामदास स्वामी जी

ऐसी भयंकर सुलतानी मुसिबतों को देखकर भयंकर व्यथित थे !

" तुझा दास मी व्यर्थ जन्मास आलो...! "

यह उनकी पंक्तियां बहुत कुछ बताती है !


इसी विषषयानुर एक बात महत्वपूर्ण है...

मुझे जो बारबार दिव्य अनुभुतीयाँ मिलती है, क्या यह सच है ? वास्तव है ?


जी बिल्कुल !


मेरे जीवन में हमेशा,अनेक अद्भुत तथा आश्चर्यजनक घटनाएं होती रहती है ! मगर मैं इसका खुले तौर पर कभी जिक्र नहीं करता आया हूं !और ऐसी अनेक घटनाओं के कारण,मैं खुद भी इससे,अनेक बार आश्चर्यचकित भी रहता हूं !

कभी प्रत्यक्ष घटनाओं का अद्भुत अनुभव आता है ! कभी स्वप्न दृष्टांत होते है ! तो कभी दिव्यअनुभूती होती है !


ऐसी अनेक आश्चर्यजनक घटनाओं का उल्लेख हमें अनेक जगहों से, अनेक बार ,समाज में पढने सुनने को मिलता है !

ईश्वरी शक्ति यह एक अनोखा और गुप्त, अदृश्य महाशक्तियों का भंडार है !

और हमें उस भंडार से जब सद्गुरु एकरूप करते है...तब दिव्यअनुभूती मिलना आरंभ हो जाता है !

यह कोई अंधश्रद्धा, थोतांड ,कविकल्पना का विषय नहीं है ! बल्कि, दिव्यात्मानुभूती का और दिव्य अतींद्रिय शक्ति का अनुभव होता है !

सनातन धर्म के अनेक धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक अद्भुत, अलौकिक, अनाकलनीय, गूढ, अदृश्य विषयों का विवेचन किया गया है !

मनोविज्ञान की दृष्टि से इसे आभास या भ्रम की व्याख्या दी जाती है ! मगर यह वास्तव विश्लेषण और विवेचन नही है !


दिव्यअनुभूती यह अलग और स्वतंत्र विषय है !

जैसे ?

आत्मा तो दिखती नहीं है, मगर उसका अस्तित्व देहतत्व में जरूर महसुस होता ही है !


आत्मानुभूति, दिव्यत्व, अतिंद्रिय शक्ति, यह आत्मा से संबंधित विषय होता है !इसिलिए यह गूढ विषय भी होता है !


कुछ भोंदू व्यक्ति, निजी स्वार्थ के लिए,समाज में इसी विषय पर, अनेक गलतफहमियां फैलाते रहते है ! और गलत फायदा उठाकर, निजी स्वार्थ का माहौल बनाते है !

इसीलिए इस विषय पर हमेशा संभ्रमित नजरों से ही देखा जाता है ! क्योंकि इसी विषय में सत्यवादी व्यक्ति बहुत कम होते है,और गुप्त रूप में रहकर, सामाजिक दुरीयाँ बनाते रहते है ! मगर ऐसा करने से धर्म संबंधी गलत धारणाएं फैलती रहती है ! और सामाजिक पाखंडीयों को यह विषय गैर लगने लगता है ! इसिलिए इसी विषय पर, धर्म वृद्धि के लिए खुलकर चर्चा होना अत्यावश्यक हो गया है !

अदृश्य शक्तियों के प्रमाण माँगे जाते है ! और हमारी अदृश्य श्वास ही इसका प्रमाण है, जो सत्य भी है ! और ईश्वर निर्मित सत्य भी है !


उज्जैन के राजा विक्रमादित्य जी ने कठोर तपश्चर्या द्वारा अनेक सिध्दियां तथा ईश्वरी वरदान प्राप्त किया था !

अनेक भयंकर मुसीबतें, आपदा,विपदाओं का सामना करने के बाद ही, राजा विक्रमादित्य का ईश्वरी कार्य आरंभ हो गया था !

तभी जाकर, भारत एक सुजलाम सुफलाम , सोने की चिडिय़ा वाला,अखंड हिंदुराष्ट्र बन गया था !


जितना ईश्वरी कार्य महान, उतनी मुसीबतें भी भयंकर होती है !

और ईश्वरी कार्यों के लिए, ऐसी भयंकर मुसीबतों का सामना करने के बाद ही,ईश्वरी वरदान प्राप्त होता है !

और जब ईश्वरीय वरदान प्राप्त होता है, तब अनेक आश्चर्यजनक अनुभुतीयाँ भी आने लगती है !

जो दृष्य जगत में स्विकारार्ह नहीं होती है ! अथवा इसे कपोल कल्पित की व्याख्या दी जाती है ! मगर ऐसा नहीं है !


दुर्देव यह भी है की," मदर ,फादर, चादर " पर हमारे ही समाज के लोग विस्तृत विश्वास रखते है ! और हमारे ही लोग,हमारे महान, आदर्श संत...सज्जन, महापुरुषों का अनन्वीत मानसिक उत्पीड़न करते रहते है !

दुर्देव !


विज्ञान को अनेक मर्यादाओं में रहना पड़ता है ! मगर आध्यात्म अमर्यादित होता है !


दूसरी महत्वपूर्ण बात,

यह समय...

युगपरिवर्तन का समय है !

युगपरिवर्तन के लिए भविष्य में अनेक अद्भुत, अनाकलनीय ,आश्चर्यजनक घटनाएं होने वाली है !


यह सत्य लेखन मैं लगभग चार से जादा सालों से लिखता आया हूं ! और मैंने जो भी लिखा है, उसी के अनुसार ही घटनाएं होती आ रही है !


आज की संपूर्ण विश्व की दोलायमान स्थिति को,देखेंगे तो क्या दिखाई देता है ?


अदृश्य ईश्वरी शक्ति द्वारा, सृष्टी को संतुलित करने के लिए,नियती द्वारा ही, अनेक घटनाएं भविष्य में होनेवाली है !अनेक विचित्र, अद्भुत, अनाकलनीय घटानाएं होने वाली है ! और हो भी रही है ! कोरोना का संपूर्ण विश्व में फैला हुआ महासंकट भी इसी कडी का विषय है !

भविष्य में ऐसी अनेक अद्भुत और आश्चर्यजनक घटनाएं घटीत होगी ! और हम सभी उसी घटनाओं के प्रत्यक्ष साक्षीदार रहने वाले है...यह भी सत्य तथा वास्तव है !


युगपरिवर्तन की इस घडी में,

सनातन संस्कृति का विस्तार तथा वैश्विक कल्याण का विचार, धीरे धीरे संपूर्ण ईश्वर निर्मित मानवसमुह को स्विकारार्ह होगा !


क्योंकि सनातन धर्म,यही अंतिम सत्य है !

और सनातन ही अंतिम शाश्वत भी है ! और संपूर्ण विश्व धीरे धीरे सनातन संस्कृति की ओर ही तेज गती से जा रहा है !

और संपूर्ण विश्व को एक दिन इस अंतिम सत्य को स्विकारना ही होगा ! तथा ईश्वर निर्मित सत्य सनातन संस्कृति का स्विकार तो करना ही होगा !


मेरे लेख पढने वाले सभी परम मित्र, मेरा यह लेख जरूर अपने संग्रह में रखेंगे ऐसी आशा करता हुं ! क्योंकि उनको मेरे लेखों की सत्यता बारबार समझने में उपयोग में आयेगी !


" सद्गुरु चरण " यह लेख मैं लिखना भी नहीं चाहता था ! मगर फिर भी कौनसी अलौकिक शक्ति मेरे हाथों को, लिखने के लिए, बाध्य करती है...यह मेरे भी समझ में नहीं आता है !


यह विस्तृत विश्लेषण भी इसके लिए ही करना पडा, क्योंकि इस विषय पर अनेक प्रकार की संदेहात्मक स्थिति निर्माण हो गई थी !


लिखने के लिए तो बहुत कुछ है ! फिर भी समय की मर्यादा के कारण लेखनी को विराम देता हूं !

इसी विषय के अनुसार, संपूर्ण विश्व को मार्गदर्शक होनेवाली, एक विस्तृत किताब मैं जल्दी ही लिखने वाला हूं ! जिसमें उपरोक्त सभी विषयों का विस्तृत, विश्लेषण तथा विवेचन किया जायेगा !


( नोट : -मुझसे प्रेम करनेवाले और नफरत भी करनेवालों का अंत में विशेष आभार !

क्योंकि वैश्विक कार्य के लिए दोनों ही विचारधारा मेरे लिए प्रेरणादायक तथा कार्य सफलता के लिए, आवश्यक है ! 


हनुमानजी के बीना राम का विस्तृत कार्य अधुरा है...ठीक वैसे ही रावण के बीना भी !

अर्जुन के बीना कृष्ण का विस्तृत कार्य अधुरा है...ठीक वैसे ही कँस के बीना भी ! )

【 यह लेख लिखने के बाद और प्रसारित करने के बाद,मुझे अदृष्य रूप से,सकारात्मक तथा नकारात्मक विचारधारा की,और ऐसी दोनों प्रकार की तरंगे प्राप्त हो गई थी,इसीलिए... 

" दोनों " विरूद्ध शक्तियों को समयोचित उत्तर देने का ,छोटासा प्रयास है ! 】


जय श्रीराम !

हरी ओम् !

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस