शूद्र विचारवाले

 शूद्र विचारवालों से दोस्ती मत किजिए !

✍️ २१६९


विनोदकुमार महाजन

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शूद्र !

यह शब्द आज जोरों पर प्रचलित हो रहा है !

आखिर शूद्र कौन ?


शूद्र जाती में पैदा हुवा है,क्या वह शूद्र है ?

अरे पागल,

ईश्वर के दरबार में तो नाही शूद्र है,और नाही उच्च !

उसके दरबार में भेद कहाँ है ?

भेद है ही नहीं !

उसी के नजर में तो सभी जीव एकसमान !

सभी पशुपक्षी भी उसी की संतान है !

मनुष्य प्राणी भी !

सभी में आत्मतत्व एकसमान !


तो मनुष्य प्राणीयों में यह व्यर्थ का झगड़ा क्यों ?

तो मनुस्मृति, जातीव्यवस्था यह आखिर क्या है ?

मनुस्मृति हो या जातीव्यवस्था !

यह तो केवल चौ-यांशी लक्ष योनियों में केवल और केवल मनुष्य प्राणीयों में ही है !

और यह एक व्यवस्था है !

मनुष्य निर्मीत !

और यह व्यवस्था इसिलिए बनाई गई है...ता की मनुष्यों का जीवन और जीवनपध्दती सुकर हो !


जो सोने का काम करेगा - वह सुनार !

लोहे का काम करेगा - वह लुहार !

इसी प्रकार से सुतार, कोष्टी,ब्राह्मण, कोली यह भी एक व्यवस्था है !


मगर मनुष्य ?


ईश्वरी सिध्दांतों को भूलकर जाती में ही अटक गया ! और असली ईश्वरी सिध्दांत भी भूल गया ! और व्यर्थ का झगड़ा आरंभ हुवा !

निरर्थक !

जो विवाद का मुद्दा ही नहीं है, उसे जानबूझकर, कुछ उद्दीष्ट पूर्ती के लिए, असामाजिक तत्वों द्वारा, विवादित बनाया गया !

और ?

विना वजह का विवाद आरंभ कर दिया गया !


आज देहात में जाकर देखो !

सभी जातीय लोग,व्यक्ति, एक ही परिवार जैसे, आदर्श आचरण करते हुए दिखाई देते है !

वहाँ पर कोई विवाद है ही नहीं !

अठरा पगड जाती,जनजाति आज भी बडे प्रेम से,भेदभाव रहित एक ही व्यासपीठ पर आते है ! सुखदुख आनंद से बाँटते है !

एक दुसरे का सहारा बनते है ! एक दुसरे को आधार देते है !

सुखदुख बाँट लेते है ! सुख में भी और दुख में भी एक दुसरे का आधार, सहारा बनते है !

एक दुसरे को आर्थिक, मानसिक आधार देते है !

तो जातिवाद और जातिभेद कहाँ है ?

वह कहीं दिखाई ही नहीं देता है !

यह एक भ्रम निर्माण किया गया है ! गलतफहमियां फैलाई गई है ! जानबूझकर ! हर एक के मनोमस्तिष्क पर यह भ्रम फैलाने की कोशिश भी जारी है...लगातार जारी है !

केवल और केवल एकसंध समाज तोडऩे के लिए रचाया गया कुभांड है ये ! कारस्थान है ये ! षड्यंत्र रचा गया है यह सबकुछ !

बस्स्...और कुछ नहीं है !


मैं भी देहात में ही पैदा हुवा हूं !

देहात में ही रहनेवाला हूं !

अठरा पगड जाती जनजातीयों में रहकर, उन सभी का दुखदर्द समझने वाला हुं ! सुखदुख बाँटने वाला हुं !


इसीलिए यह व्यर्थ का फैलाया गया विवाद बंद होगा ऐसी अपेक्षा करता हूं !


विष्लेषण तो लगभग पूरा हो चुका है !

फिर भी आखिरी में एक यथोचित संवाद का प्रयास है !


आखिर में शूद्र कौन है ?

जो शूद्र विचारों वाला है वह शूद्र है !

जो दूसरों के मन भावनाओं पर निरंंतर और व्यर्थ आघात करता रहता है, वह शूद्र है !

जो दूसरों पर हमले करता है,दूसरों को दुखदर्द - पीडा देता है...वह शूद्र है !

जो दूसरों की संस्कृति बरबाद करता है,जो दूसरों के आदर्श सिध्दांतों को लगातार बरबाद करने की कोशिश में रहता है, वह शूद्र है !

जिसके विचार हमेशा खराब रहते है,दूसरों को फँसाने के दाँवपेंच जो लगाता रहता है, वह शूद्र है !

वैचारिक शूद्र !

जिसके पास विचार करने की क्षमता नहीं है, जो सामाजिक असंतोष फैलाता रहता है...और उसी के द्वारा खुद का स्वार्थ साधने की कोशिश करता है, वह शूद्र है ! दळभद्री है ! कपाळकरंटा है !


जो दूसरों का हमेशा बुरा ही सोचता है,हमेशा बुराईयाँ ही करता रहता है,वह शूद्र है !

दूसरों की निंदानालस्ती करता है,दूसरों को पीडा देता है,दूसरों को हमेशा विनावजह दुखदर्द देता है,वह शूद्र है !

आदर्श ईश्वरी सिध्दांतों को त्यागकर,आसुरीक सिध्दांतों का प्रचार - प्रसार करता है,वह शूद्र है !


इसिलिए ऐसे दुष्टों से,शूद्रों से हमेशा सावधान ही रहना चाहिए ! और उसका " ताडन "

ही करना चाहिए !

क्योंकी ऐसे समाजविघातक वैचारिक शूद्र केवल और केवल ताडन के ही अधिकारी होते है !

तभी संपूर्ण समाज व्यवस्था का नियमन,ईश्वरी सिध्दांतों के अनुसार, यथायोग्य होता है !


इसिलिए साथीयों,

वैचारिक शूद्रों से हमेशा सावधान रहिए !

ऐसे नालायक शूद्र, सभी का,हमारा - तुम्हारा जीवन बरबाद कर देंगे !

इसिलिए ऐसे वैचारिक शूद्रों से हमेशा सावधान रहे ! सतर्क रहे ! दूर रहे !


सामाजिक विद्रोह निर्माण करनेवालों से सदैव दूर रहे !

क्योंकी आदर्श, ईश्वरी सिध्दांतों पर चलनेवाले,मानवताप्रेमी,एकसंघ समाज को तोडकर, समाज में 

कु - रीतीयाँ फैलाने में,ऐसे...वैचारिक शूद्र माहिर होते है !


जैसे ?

देश और समाज तोडनेवाले,

हिंस्त्र... आक्रमणकारी !


अतएव...

सावधान !

ऐसे दुष्टों से त्रिवार सावधान !!!


हरी ओम्

🕉🕉🕉🙏🚩

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