हठयोग
*सिस्टम फेल ??*
✍️ २४६०
*विनोदकुमार महाजन*
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आज के लेख का विषय संपूर्णतः आध्यात्मिक विषय पर आधारित है ! शायद इसीलिए अनेक लोगों को पसंद भी नहीं आयेगा ! क्योंकि आध्यात्म यह विषय साधारणतः अनेक लोगों को क्लिष्ट विषय लगता है !
मगर आध्यात्म का मतलब ही आद्य आत्मा होता है ! और आज पृथ्वी निवासी ईश्वर निर्मित इंन्सान आध्यात्म को ही भूल गया है !?
खुद के आत्मा को भी भूल गया है !?
और आत्मा की आवाज भी !? शायद भूल ही गया है !!
मरी हुई आत्मा की एक ही सोच ?? ( वास्तव में आत्मा कभी मरती नहीं है ! )
केवल पैसा और पैसों से मिलने वाले सभी भौतिक साधन जूटाना !
खावो ,पिवो और ऐश करो !
इसके लिए खूब धन जमा करो !
ऐसी ही सामाजिक धारणा बन रही है ??
फिर भी इसी विषय पर लिखने का एक छोटासा प्रयास जारी रहेगा !
पिछले अनेक लेखों में मैंने अनेक गूढ़ विषयों पर लिखने का प्रयास किया है !
आज के लेख का शिर्षक है...
*सिस्टम फेल ??*
*कौनसा सिस्टम ?*
मनुष्य समुह का संपूर्ण सिस्टम !?
जो ईश्वरी शक्तीयों को हमसे जोडता है !
कर्म ,भक्ति , ज्ञान और योगद्वारा !
अब योगशक्ति के बारे में छोटासा विवेचन और विश्लेषण का प्रयास !
वैसे तो हम निरंतर श्वासों द्वारा निराकार ईश्वरी शक्ति से जूडे तो रहते ही है !
सो...अहम् द्वारा !
मगर सो...अहम् का मूल सिध्दांत ही मनुष्य भूल गया है !?
सो...अहम् को ही भूल गया है ?
खुद के अंदर के ईश्वर को ही भूल गया है ?
और इसीलिए अज्ञानतावश संपूर्ण मानवप्राणी अनेक समस्याओं से ग्रसित हो गया है !? और इससे छूटकारा पाना लगभग असंभव सा लग रहा है !
समस्या ! समस्या !!
और समस्या !!!
भयंकर बढती समस्या !
और हल ?
शायद ना के बराबर !
ईश्वर निर्मित आदर्श सनातन संस्कृति को और उसके मानवोपयोगी तथा सृष्टि पूरक आदर्श सिध्दांतों को भूल जाना ही आज के अनेक समस्याओं का कारण है !
इसीलिए संपूर्ण मानवसमुह को फिरसे ईश्वरी सिध्दांतों से अर्थात सनातन संस्कृति से जोडना होगा ! यही संपूर्ण समस्याओं का अंतिम भी हल है !
मगर ऐसा कार्य कौन और कब करेगा ? यह प्रश्न महत्वपूर्ण है !
ईश्वर से जोडने के लिए...
ईश्वरी चिंतन के साथ...
योगसाधना , हठयोग भी महत्वपूर्ण है !
इसके बारें में भी हमने सुना तो है !
मगर इसकी जटिलता के कारण ?
व्यक्ति के अनुभव ? शून्य अथवा ना के बराबर दिखाई देते है !
कुछ अपवादों को छोडकर !
ऐसा ही एक उदाहरण...
आशुतोष महाराज और आशुतोषांबरी के दिव्य योग के बारें में आज चर्चा होती रहती है ! टिवी पर भी इसी विषय पर अनेक चर्चाएं चलती रहती है !
मगर यह सब क्या है ?
इसपर शायद कोई विस्तृत विवेचन , विश्लेषण नहीं कर रहा है !
योगशक्ति ,
मनुष्य प्राणी को ईश्वर तक पहुंचाने का अथवा खुद को ईश्वर स्वरूप बनाने का
एक शक्तिशाली तथा महत्वपूर्ण माध्यम है !
मगर इसकी क्रियाएं जटिल होती है ! इसी का एक महत्वपूर्ण अंग
हठयोग भी है !
मगर हठयोग सहजसाध्य नहीं है ! हठयोगी गुरू के आशिर्वाद तथा मार्गदर्शन से ही इस विषय में पूर्णत्व प्राप्त हो सकता है !
सभी देवीदेवताओं को तथा चमत्कारी सिध्दपुरूषों को इसका वरदान प्राप्त होता है !
मगर साधारण व्यक्तियों के लिए ऐसा वरदान प्राप्त करना लगभग असंभव जैसा है !
गुरु दत्तात्रेय ,नवनाथ जैसे ईश्वरी अवतारों को ऐसा वरदान प्राप्त रहता है ! और अमरत्व भी !
ज्ञानेश्वर महाराज , अक्कलकोट स्वामी , गजानन महाराज , रामदास स्वामी जैसे अनेक सिध्दपुरूषों ने इसी आधार पर
अनेक चमत्कार किए हुए है !
जो सर्वज्ञात है !
मुर्दे को जींदा करना अथवा दीवार चलाना जैसे असंभव कार्य साधारण व्यक्ति कर सकेगा ?
हरगिज नहीं !
ठीक इसी प्रकार से ,
आशुतोष महाराज और आशुतोषांबरी जी ने क्या ठीक ऐसा ही प्रयास किया हुआ है ?
हठयोग का ?
आशुतोष महाराज तो लगभग दस सालों से समाधी अवस्था में है ! समाधी अवस्था से आशुतोष महाराज वापिस नहीं आ रहे है ! उन्हें वापिस लाने के लिए माँ
आशुतोषांबरी भी गहरी योगनिद्रा में चली गयीं है !
क्या हठयोग में ऐसा भी संभव है ?
क्या उन दोनों को भी फिरसे उसी पंचमहाभूतों के देह में वापिस आना संभव है ?
योगशक्ति के आधार पर असंभव तो नहीं है !
अगर डाँक्टर ने उनको मृत घोषित किया है तब भी ?
मगर माँ आशुतोषांबरी जी ने तो अपने शिष्यों को एक महिने के अंदर ही उनके उसी देह में वापिस आने का और आशुतोष महाराज जी को भी उनके उसी देह में वापिस लाने का अभिवचन दिया था !
मगर एक महिने से भी जादा समय बीत गया है , माँ आशुतोषांबरी फिरसे देह में लौटकर वापिस नहीं आयी है !
उन्हींके कहने के अनुसार उनकी वापिस आने की समयसीमा समाप्त हो गई है !
तो प्रश्न यह उठता है कि ,
दोनों ही सचमुच में उसी देहतत्व में वापिस आयेंगे ? या नहीं ?
आयेंगे तो कब ?
और नहीं आयेंगे तो आखिर गडबड क्या हो गई है ?
हठयोग का अधूरा ज्ञान ?
इसी कारण दोनों को भी देहतत्व में वापिस लौटना असंभव हो रहा है ? अभिवचन देने के बावजूद भी ?
सारे शिष्य और भक्त इसका बेसब्री से इंतजार कर रहे है !
तो आज की घडी में उनकी आत्मा कहाँ पर है ?
ब्रम्हांड में कहाँ भटक रही है ?
या अटक गई है ?
दिव्य शक्तीयों द्वारा आज्ञाचक्र में जाकर अथवा सहस्र्ताकार चक्र में जाकर क्या दिखाई देता है ?
या फिर उनसे , उनकी आत्मा से संपर्क ही नहीं हो रहा है ? माँ आशुतोषांबरी जी ने भी क्या ऐसा प्रयास किया था ?
और आशुतोष महाराज जी से ऐसे संपर्क न होने के कारण ही समाधी अवस्था में जाने का निर्णय लिया था ?
मगर क्या वह प्रयास भी फेल हो गया है ?
आखिर आशुतोषांबरी माँ भी फिरसे लौटकर उसी देहतत्व में वापिस क्यों नहीं आ रही है ?
आखिर रूकावट कहाँ है ?
अथवा क्या उनका सचमुच में ईश्वरी शक्तीयों से जोडने का सिस्टम ही फेल हो गया ?
तो दोनों भी देहतत्व में कब और कैसे आयेंगे ? यह मूलभूत प्रश्न तो रहता ही है !
विज्ञान को मर्यादाएं होती है !
मगर आध्यात्म अमर्यादित होता है... यह सत्य दिखाने का और साबित करने का यह एक महत्वपूर्ण मौका भी और मुद्दा भी है !
वैदिक सनातन धर्म में ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे !
आलंदी के संत ज्ञानेश्वर जी की संजीवन समाधी भी इसका आदर्श उदाहरण है !
संत ज्ञानेश्वर जी ने मुझे भी दृष्टांत में उनके समाधी स्थान पर ले जाकर ,
वैश्विक कार्य का तथा
विश्व स्वधर्म सुर्ये पाहो का
आशिर्वाद दिया है !
मतलब सात सौ साल पहले समाधी अवस्था में जाकर भी आज भी जागृत चैतन्य शक्ति के उच्च कोटि के अनुभव प्राप्त होते रहते है !
महान सिध्दयोगी गजानन महाराज , रामदास स्वामी ,कल्याण स्वामी जैसे हठयोगियों के चमत्कार आज भी दिखाई देते है !
मैं खुद इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हूं !
हिमालय में अनेक हठयोगी अपने योगबल पर आज भी चमत्कार दिखाते है !
ढाई हजार ( २।। ) साल के महान सिध्दयोगी बाबाजी बाबा का उदाहरण इसके लिए पर्याप्त है ! बाबाजी बाबा को और उनके योगशक्ति तथा हठयोग को निश्चित रूप से पूर्णत्व प्राप्त है !
इसीलिए बाबाजी की आत्मा कहीं भी भटकती अथवा अटकती नहीं है !
और आज भी बाबाजी बाबा के अनेक चमत्कार दिखाई देते है !
पुणे के मेरे नजदीकी तथा गुरूवर्य श्री गुरूजी को भी बाबाजी बाबा के दर्शन हुए है !
तो आशुतोष महाराज और आशुतोषांबरी जी को ऐसा संभव क्यों नहीं हो रहा है !?
अनेक सिध्दपुरूष देह त्यागने बाद भी अपने उसी पंचमहाभूतों के देह में प्रविष्ट होकर अपने सत् शिष्यों को फिरसे दर्शन देते है !
सद्गुरु कृपा से मुझे भी ऐसे दर्शन होते रहते है !
और यह भी एक चमत्कार ही होता है ! और यह एक दिव्यानुभूति भी होती है !
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह होता है कि ,उसी व्यक्ति के जीवन में अमुलाग्र बदलाव आ जाता है !
और उसका संपूर्ण जीवन ही अलौकिक हो जाता है !
योगसमाधि में रहकर भी अनेक सिध्दपुरूष दूसरे जहगों पर भी , ठीक वैसे ही देहद्वारा दर्शन दे सकते है !
ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते है !
दत्त अवतारी अक्कलकोट स्वामी का इसका उदाहरण है !
इतना सप्रमाण होने के बावजूद भी इसे अगर कोई थोतांड कहें अथवा अंधविश्वास कहें तो ऐसे लोगों का उत्तर क्या है ?
केवल धर्मद्रोही ही ऐसी आशंकाएं उपस्थित कर सकते है !
पाणी पर चलना , आग में रहकर भी नहीं जलना यह भी योगशक्ति द्वारा संभव होता है !
मगर हठयोग साध्य करना कोई साधारण बात नहीं है !
कठोर तपस्या द्वारा सद्गुरु कृपा और ईश्वरी वरदान प्राप्त होनेपर ही हठयोग की प्राप्ति हो सकती है !
आखिर में मूल प्रश्न तो रहता ही है की...
क्या आशुतोष महाराज और आशुतोषांबरी जी वापिस आयेगी भी ?
कबतक लौटकर आयेगी ?
या योगशक्ति का उनका *सिस्टम* अधूरे ज्ञान के कारण और हठयोग का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण *फेल हो* गया है ?
मैं भी दिव्य शक्तीयों द्वारा , ब्रम्हांड में उन्हें ढूंढने की लगातार कोशिश कर रहा हूं !
मगर न जाने क्यों उनसे संपर्क नहीं हो रहा है !
दोनों वापिस लौट के कब आयेंगे यह तो समय ही बतायेगा !
*अवधूत चिंतन श्री गुरूदेव दत्त*
*हरी ओम्*
*सत्य सनातन*
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