दुनियादारी

 जब मुसिबत की घडी आती है

और कालरूपी सर्प गर्दन को

जकडता है तब दुर्जन भी

ईश्वर की और सत्पुरूषों की

याद करते है !


और जब उनकी कृपा से मुसीबतें समाप्त हो जाती है

कालरूपी सर्प से गरदन

मुक्त हो जाती है...तब

यहीं दुर्जन कहते है....

" कहाँ है ईश्वर ? दिखावो तो ? "

" कौन सत्पुरुष ? मैं किसीको

नहीं पहचानता ! "


यहीं दुनियादारी है मित्रों !?

क्या रिश्तेदारी भी ऐसी ही 

होती है ?


आखिर अनुभव अपना अपना !

जय हरी !!


विनोदकुमार महाजन

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