कुरुक्षेत्र पर !
अर्जुन ने कुरूक्षेत्र पर
विचलित होकर और
रोते हुए एक ही प्रश्न
किया था....
" यह तो सारे मेरे है ! "
तब मैंने कहा था...
" विचलित न होकर ध्यान अचूक लक्ष की ओर देकर..."
" मारो...!!! "
यही " मेरे भगवत् गीता का "
सार है !
" हे अर्जुन...
आज फिरसे...
विचलित न होकर,
ध्यान अचूक लक्ष की ओर
देकर... "
" मैं..."
" बांसुरीवाला कन्हैया नहीं,
अपितु ...
सुदर्शन चक्र धारी...
श्रीकृष्ण...
फिरसे दोहराता हूं...."
" मारो.....? "
यही भगवत् गीता का
सार है !
सोचो,समझो,जानो....
" जागो...."
समय....
" कुरूक्षेत्र..."
का है...
और " लक्ष "
निर्धारित है !
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन
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