पैसों की दुनिया
क्या , तुम्हारे पास पैसा है ?
✍️ २३९९
विनोदकुमार महाजन
💰💰💰💰💰
दुनिया पैसों से चलती है साहब !
ना की प्रेम से अथवा नाही इंन्सानियत से !
सिर्फ पैसों से !
जिसके पास माल ,जिसके पास धन , जिसके पास पूंजी...
उसकी ही होती है दुनिया में हाँजी हाँजी !
निर्धन का हाल तो कुत्ता भी नहीं पूंछता है !
यही दुनिया का दस्तूर है !
यही दुनिया की रीत है !
जहाँ पर है धन अपार ?
वहाँ पर होती है प्रीत ? ( नौटंकी ? ) बारंबार !?
मगर पैसों की दुनिया केवल इंन्सानों की होती है !
ईश्वर निर्मित , छोटासा देहधारी और उसमें भी और छोटासा दिमाग रखनेवाला...
मनुष्यप्राणी !
दूसरे पशुपक्षीयों को तो धन की जरूरत ही नहीं होती है !
मनुष्य छोडकर बाकी सब प्राणीयों को...
ना बंगला चाहिए , ना गाडी !
ना धन चाहिए , ना मान !
ना सोना चाहिए , ना चांदी !
ना राजमहल चाहिए , ना राजऐश्वर्य !
ना बिडी सिगार चाहिए , ना दारू बिअर !
ना मटका चाहिए , ना गुटखा !
ईश्वर ने जैसा जीवन दिया है , वैसा जीवन मस्त मजे में , आनंद के साथ जीते है !
यह सबकुछ चाहिए...
इंन्सानों को !
उसमें भी लालची इंन्सानों को तो और चाहिए... धन , वैभव !
एक लाख मिला , दस लाख चाहिए !
एक करोड़ मिला , दस करोड़ चाहिए !
सौ करोड़ , हजार करोड़ !?
समाधान ही नहीं है !
दिनरात का एक ही सपना ?
माल चाहिए , धन चाहिए !
पेटी चाहिए , खोका चाहिए !
धत्त तेरे की !
बरबाद हो गया इंन्सान इस धन की लालच से !
धन तो चाहिए !
वह एक जीवनोपयोगी साधन जरूर है !
मगर जीवन का अंतिम साध्य तो नहीं है !
केवल ईश्वर प्राप्ति ही जीवन का अंतिम साध्य है !
मगर इंन्सान यही बात भूल गया ! और इसी मायावी धन के कारण , पूरी दुनिया में , हाहाकार बढ गया !
इतना भयंकर और भयानक विनाशकारी हायतौबा मच गया कि , इंन्सान खुद का अस्तित्व ही धन के लालच में भूल गया !
मंदिर में भी अगर जाते है तो ?
कहते होंगे....
" हे भगवान मुझे दस करोड़ की लाँटरी लगने दे ! तेरी मेहरबानी होगी ! और दस करोड़ की लाँटरी लग गई तो ? तुझे इतने इतने पैसों का भोग चढाऊंगा ! "
भगवान को भी सब पैसा माँगेंगे !
" भगवान मुझे केवल और केवल तु ही चाहिए ! धन - वैभव मिले न मिले ! " ऐसा कहनेवाले कितने मिलेंगे ?
और भगवान की कृपा से धनवान बन भी गया , और भगवान खुद एक दिन भिखारी का रूप धारण करके दरवाजे पर आया तो ? उस भिखारी को भी धक्के मारमारकर हकाल देंगे !
धन के अमीर हो गये !
और मन के भिखारी ?
क्या यही है दुनियादारी ?
और दूसरी महत्वपूर्ण बात !
जिसके पास धन - वैभव है ,
उसी की दुनिया में इज्जत - प्रतिष्ठा है !
उसी की ही दुनिया पूजा करती है !
कंगालों को पूछता है कौन ?
उसके नशीब में तो शायद दर दर की ठोकरें ही लिखी होती है !
चाहे कोई कितना भी बडा विद्वान पंडित भी हो , मगर निर्धन हो तो ?
उसे कोई भी नहीं पूछता है !
अब दूसरी भी मजे की बात देखते है !
धनवान व्यक्ति के पास धनलालची व्यक्ति जाता ही है !
साहजिक है !
उससे धन की अपेक्षा करता है !
धनवान ने दस हजार रूपया भी दिया तो ? पचास हजार की अपेक्षा करता है ! पचास हजार दिया तो ? दो लाख की अपेक्षा करता है !
और अगर धनवान ने पैसा ही नहीं दिया तो ?
उसे चार गाली देकर संबंध विच्छेद कर देता है ?
पहले कभी उसे दस - बीस हजार रूपया दिया था यह भी भूल जाता है ?
बडा कृतघ्न होता है इंन्सान ?
मतलब क्या ?
हमारे पास धन होना भी शाप बनता है ? और धन ना होना भी शाप ?
धन मिले तो ?
रिश्तानाता ?
और ना मिले तो ?
तो रिश्ता खतम !
बडी विचित्र दुनिया है इंन्सानों की !
इसी लिए तो पशुपक्षी सदैव खुश रहते है , आनंदी रहते है ,मस्त मजे में रहते है !
पैसों के बिना ! गाडी बंगले के बिना !
और धनलालची इंन्सान ?
हमेशा दुखी !?
दुनिया बनाने वाले...
तुने काहे को दुनिया बनाई ?
काहे को मतलबी लोगों की दुनिया बनाई ?
मतलब की दुनिया में ?
प्रेम के बदले में प्रेम नहीं मिलता है ? पैसों के बदले प्रेम मिलता है ?
प्रेम के विषय में अनपढ़ , गँवार जानवर , पशुपक्षी भी , इंन्सानों से जादा विश्वासु होते है !
पशुपक्षीयों पर प्रेम के बदले में प्रेम ही मिलेगा !
वहाँ धोखा कभी भी नहीं मिलेगा !
ईश्वर ने जैसा दिया है - वैसा मस्त , आनंदी जीवन होता है उन सभी का !
और इंन्सानों की दुनिया में ?
प्रेम के बदले में धोखा ?
प्रेम के बदले में विश्वासघात ?
शायद !?
हाँ एक बात जरूर सच है की ,
धन की जरूरत सिर्फ इंन्सानों को ही होती है ! पशुपक्षीयों को नहीं !
ये बात भी ठीक है !
मगर लालच केवल इंन्सानों में होता है ! पशुपक्षीयों में नहीं !
यह बात भी पक्की है !
( इसमें सिध्दपुरूष , महासिध्दयोगी , अवतारी पुरूष नहीं आते है ! उनकी दुनिया अलग होती है !...और यह विषय संपूर्ण अलग और स्वतंत्र लेख का विषय है )
और इंन्सानों के लालच का कोई अंत भी नहीं होता है !
और साधारणतः वैश्विक समस्याओं का और अधर्म के बढने का , यही एक महत्वपूर्ण कारण भी हो सकता है !
खैर...
धन तो चाहिए !
मगर वह संन्मार्ग का ही धन चाहिए ! पाप का धन नहीं चाहिए !
लक्ष्मी का वरदान चाहिए !
ना की काले पैसों का !
अब यह विषय भी महत्वपूर्ण होता है की ,
पाप का धन कौनसा ?
और पूण्य का कौनसा ?
माता महालक्ष्मी की निरंतर कृपा से मिलने वाला धन पूण्य का होता है !
और भ्रष्टाचारी लोगों का धन पाप का पैसा होता है !
पूण्य के पैसों से हमेशा शांती रहती है ! तो पाप के पैसों से हमेशा अशांति ही रहती है !
इसीलिए लक्ष्मी कृपा तो चाहिए ही चाहिए !
और जिसके साथ माता महालक्ष्मी ही प्रेम से बातें करती है ? उससे बडा सौभाग्यशाली कौन हो सकता है ?
और ऐसे सौभाग्यशाली व्यक्तियों का सहवास ,सहयोग भी सौभाग्य से ही मिलता है !
विष्णु भगवान की जय हो !
जय माता महालक्ष्मी की !
जय कुबेर देवता की !
यक्ष देवता की जय हो !
। सर्वे भवंतु सुखिनः।
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