दुर्जनं प्रथमं वंन्दे

 दुर्जनं प्रथमं वंन्दे !?

✍️ २३९७


🐍👹👺🐍👹👺


तुम साँपोंपर चाहे

कितना भी प्रेम करो !

साँपों के मुंह से कभी भी

अमृत नही निकलेगा !

उसके मुंह से केवल और

केवल जहर ही निकलेगा !


हमेशा !!


कुछ लोग भी साँपों जैसे ही

जहरीले होते है !

उनसे तुम चाहे कितना भी

पवित्र प्रेम करों ,

ऐसे आदमी तुमसे सदैव ,

दिनरात ,विनावजह नफरत ही

करते रहेंगे !

और तुम्हारे प्रति समाज में

सदैव नफरत ही फैलाते रहेंगे !

उनको प्रेम की भाषा कभी भी

नहीं समझ सकेगी !


उसे केवल डंडे की ही भाषा

समझमें आ सकेगी !


और दुर्जन ? बिल्कुल साँप जैसे ही होते है ! जहरीले !


भगवान श्रीकृष्ण स्वयं विष्णु होकर भी ,

क्या दुष्टात्मा दुर्योधन को प्रेम की

भाषा में समझा सकें ?

कृष्णशिष्टाई के समय में ?

उल्टा दुर्योधन ही

कृष्ण परमात्मा पर गुरगुराने लगा !


इसीलिए ईश्वर को भी उस दुष्टात्मा के साथ धर्म युध्द ही

करना पडा था !


साक्षात ईश्वर भी दुष्टों को समझा ना सका , तो हम किस खेत की मूली है ?


और आज के भयंकर 

कलियुग में ?

ऐसे ही मनुष्य रूपी जहरीले साँप हमको पग पग पर 

मिलते ही रहेंगे !


इसिलिए ?

अखंड सावधान !!

त्रिवार सावधान !!!


इसिलिए ? मेरे प्यारे दोस्तों...

साँपोंपर और साँप जैसे

विश्वासघाती लोगों पर

कभी भी प्रेम मत करना !

और कभी विश्वास भी

मत करना !

ऐसे लोगों से हमेशा दूर ही रहना !


दुर्जनं प्रथमं वंन्दे !!


विनोदकुमार महाजन


🙏🙏🙏🙏🙏

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