दुर्जनं प्रथमं वंन्दे
दुर्जनं प्रथमं वंन्दे !?
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तुम साँपोंपर चाहे
कितना भी प्रेम करो !
साँपों के मुंह से कभी भी
अमृत नही निकलेगा !
उसके मुंह से केवल और
केवल जहर ही निकलेगा !
हमेशा !!
कुछ लोग भी साँपों जैसे ही
जहरीले होते है !
उनसे तुम चाहे कितना भी
पवित्र प्रेम करों ,
ऐसे आदमी तुमसे सदैव ,
दिनरात ,विनावजह नफरत ही
करते रहेंगे !
और तुम्हारे प्रति समाज में
सदैव नफरत ही फैलाते रहेंगे !
उनको प्रेम की भाषा कभी भी
नहीं समझ सकेगी !
उसे केवल डंडे की ही भाषा
समझमें आ सकेगी !
और दुर्जन ? बिल्कुल साँप जैसे ही होते है ! जहरीले !
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं विष्णु होकर भी ,
क्या दुष्टात्मा दुर्योधन को प्रेम की
भाषा में समझा सकें ?
कृष्णशिष्टाई के समय में ?
उल्टा दुर्योधन ही
कृष्ण परमात्मा पर गुरगुराने लगा !
इसीलिए ईश्वर को भी उस दुष्टात्मा के साथ धर्म युध्द ही
करना पडा था !
साक्षात ईश्वर भी दुष्टों को समझा ना सका , तो हम किस खेत की मूली है ?
और आज के भयंकर
कलियुग में ?
ऐसे ही मनुष्य रूपी जहरीले साँप हमको पग पग पर
मिलते ही रहेंगे !
इसिलिए ?
अखंड सावधान !!
त्रिवार सावधान !!!
इसिलिए ? मेरे प्यारे दोस्तों...
साँपोंपर और साँप जैसे
विश्वासघाती लोगों पर
कभी भी प्रेम मत करना !
और कभी विश्वास भी
मत करना !
ऐसे लोगों से हमेशा दूर ही रहना !
दुर्जनं प्रथमं वंन्दे !!
विनोदकुमार महाजन
🙏🙏🙏🙏🙏
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