साँपों से भी भयंकर दुर्जन ?
*ग्रहदशा....???*
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हर एक मनुष्य के जीवन में ग्रहदशा तो आती ही है !
ग्रहदशा मतलब मुसिबतों का दौर !
जीवन का भयंकर कठिन प्रसंग !
भयंकर अग्निपरीक्षा , सत्वपरीक्षा का प्रसंग !
और कहे तो बदनामी का भी प्रसंग !
विनावजह कि भयंकर बदनामियों का दुखद प्रसंग !
आर्थिक परेशानियां , अनेक बिमारियां , घरेलू विवाद ,
सामाजिक सौहार्द तो दूर , सामाजिक भयंकर परेशानियों का भयंकर दौर !
जीवन का भयंकर विचित्र प्रसंग !
उसमें भी शनि , राहू ,केतू , मंगल जैसे भयंकर पापग्रहों का विचित्र संयोग अथवा अनेक बार , कालसर्प योग की भयंकर दर्दनाक पीडा देता रहता है !
निरंतर !
सबकुछ असह्य जीवन !
और असह्य जीवन से छूटकारा पाने का अथक और निरंतर प्रयास !
क्या सचमुच में हमारे जीवन में ग्रहों का प्रभाव होता है ?
जी हाँ बिल्कुल !
यह कोई थोतांड , अंधश्रध्दा या कविकल्पना नहीं होती है बल्कि जीवन का वास्तव होता है !
एक कटुसत्य !
क्या दूर अंतरीक्ष में उपस्थित ग्रह हमारे जीवन में प्रभाव निर्माण कर सकते है ?
जी हाँ !
कैसे ?
जैसे चंद्रमा का और पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण का गहरा संबंध होता है , ठीक ऐसा ही प्रभाव हमारे शरीर पर संपूर्ण ग्रहों का भी होता है !
अगर अमावस्या पौर्णिमा को ज्वार भाटा होता है , ठीक इसी प्रकार से ग्रहों का प्रभाव भी हमारे शरीर पर होता ही है ! शरीर के रक्त प्रवाह पर भी होता है !
इसीलिए खगोलशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र का भी गहराई से संबंध होता है !
और हमारी पुरातन सनातन संस्कृति और हमारे श्रेष्ठ ऋषीमुनी इसका सप्रमाण और ठोस अभ्यास द्वारा इसका विश्लेषण भी करते आये है !
ग्रहदशा अथवा ग्रहदोष निवारण हेतु अनेक दैवीय उपाय भी बताये गये है !
सश्रद्ध भाव से ईश्वर के संपूर्ण शरण में जाकर , हमारे दिव्य पुरूष , सिध्दपुरूष , संतमहात्मे , हमारे गुरू जैसे मार्गदर्शन करते है , उसीके अनुसार दिव्य आचरण करके , अनेक अनुष्ठान , मंत्रजाप से ग्रहदोष कम करने का उपयुक्त पर्याय बताया जाता है , जो निरंतर अंगिकृत करना चाहिए !
जिसके द्वारा गहन मुसिबतों से भी छुटकारा पाया जा सकता है !
जब भयंकर ग्रहदशा का समय होता है , तब प्रतिकूल परिस्थितियों का निरंतर सामना करना पड़ता है !
निश्छल भाव से , निरंतर साधना में रहकर ग्रहदशा का प्रभाव कम किया जा सकता है !
जिसमें अखंड मौन , होमहवन , गुरूमंत्र का जाप , अनेक प्रकार के दैवीय अनुष्ठान भी किए जा सकते है !
सामाजिक दूरीयाँ , रिश्तेनातों से दूरीयाँ भी ग्रहों का प्रभाव कम करने में सहायक होते है !
जब हम ग्रहदशा में होते है तब , अनेक सामाजिक घटक , हमारे नजदीकी भी हमें दुखों में सहायता करने के बजाए , हमें नरकयातना देने में ही संतुष्ट रहते है !
इसिलिए ऐसे समय में सभी से दूरीयाँ ही हमें आत्मसमाधान दे सकते है !
दुष्ट लोग इसका अचूक फायदा उठाकर हमें और जादा परेशान कर सकते है और हमारी मुसिबतें बढाते रहते है !
इसिलिए ऐसे समय में सभी से दूरीयाँ ही मन:शांती दे सकती है !
सभी से रिश्तेनाते तोडकर , हो सके तो एकांत में रहकर , ईश्वरी साधना निरंतर करते रहना ही , अनेक बार हितकारी होता है !
ग्रहदशा में हमें भलाबुरा कहनेवाले , जलनेवाले लोग , जब हमारा अच्छा दौर आरंभ होता है , तब भी हमसे भयंकर इर्ष्या करते रहते है !
मुसीबतों का जालीम जहर हजम करने के बाद , जीवन के अच्छे दिन भी आरंभ होते है !
तभी भी हमें अकारण पीडा देनेवाले दुष्ट लोग हमारे अच्छे समय में भी पीडा ही देते रहते है !
और हमें भलाबुरा कहते रहते है !
इसिलिए हमेशा ऐसे दुष्ट लोगों से और हमपर निरंतर जलने वालों से निरंतर दूरीयाँ रखने से ही जीवन सुखकर होता है और दुष्टों का प्रभाव भी कम होता है !
अनेक बार हमारे हितशत्रु हमें निरंतर मुसिबतों में डालने का दृश्य अदृश्य प्रयास करते रहते है !
और हमें अंतरिक पीडा देते रहते है !
विशेषत: ग्रहदशा का जब प्रभाव होता है तब ऐसे गुप्त हितशत्रु हमें और जादा पीडा देते रहते है !
हमें पीडा देने का और हमें तडपाने का ऐसे दुष्ट लोग निरंतर बहाना ढूंढते रहते है !
राजा विक्रमादित्य जब शनि के चक्रव्यूह में फँसा था , तब भी उसे पीडा देने वाले अनेक दुष्ट तत्काल में मौजूद थे !
और ग्रहदशा समाप्त होनेपर राजा विक्रमादित्य ने जब धर्म पुनर्स्थापना हेतू अथक प्रयास किए , उसीमें भी बाधाएं उत्पन्न करने वाले भी अनेक थे !
राजा विक्रमादित्य ने
साम -दाम - दंड - भेद
निती का अचूक फायदा उठाकर ,
विक्रम संवत की यशस्वी नींव रखी थी !
सज्जनों को पीडा देनेवाले और परपीड़ा में ही जीवन की धन्यता मानने वाले अनेक दुष्टात्माएँ भी हमारे पुण्यभूमि पर बारबार पैदा होते रहते है !
षठ प्रति षाठ्यम्
ही एकमात्र उनसे बचने का सर्वोत्तम मार्ग होता है !
धर्म कार्य में भी सहायता करने के बजाए , उसीमें भी बाधाएं डालने वाले , अनेक दुष्टात्मे बारबार पीडा देते हुए दिखाई देते है !
गद्दार , नमकहराम जयचंदों का इतिहास यहाँ भरा पड़ा हुआ है !
शत्रुपिडा नाश और हितशत्रुओं का नाश करने के लिए भी हमारे धर्म में अनेक प्रकार की साधनाएं तथा होमहवन का प्रावधान रखा है !
जिसके प्रभाव से हितशत्रुओं का संपूर्णतः अथवा आंशिक नाश तो जरूर होता ही है !
तंत्र शास्त्र में इसका विशेष प्रभाव दिखने को मिलता है !
हमारा बूरा वक्त होता है तब भी और हमारा अच्छा समय भी आरंभ होता है तब भी हमें जादा से जादा पीडा देनेवाले दुष्टों का हमें अनेक बार तथा पगपगपर सामना करना ही पडता है !
इसिलए एक कहावत भी है ,
" दुर्जनं प्रथमं वंदे ! "
और कलियुग में दुर्जन लोगों के कंठ में जहर भरा हुआ होता है ! ऐसे जहर से ही अनेक बार , अनेक दुर्जन , सज्जनों को बारबार घायल करते रहते है !
साँपो से भी भयंकर जहरीले दुर्जन लोग होते है !
इसीलिए ऐसे लोगों से हमेशा दूरीयाँ ही बनाये रखनी चाहिए !
किसी के मृत्यु के समय में अथवा स्मशान में भी दुर्जन लोग अपनी जहरीली जबान से , जहर उगलकर , अनेक लोगों को घायल कर सकते है !
और दुर्जनों का संपूर्ण इलाज भी साधारण बात नहीं होती है !
इसिलए ग्रहदशा का समय समाप्त करके , यशस्वी जीवन आरंभ करने के लिए भी , अनेक प्रकार के अग्नि दिव्यों को पार करके ही आगे बढना पडता है !
आज के कृतघ्न और बेईमानी के जमाने में तो पगपगपर हमें हमारे आत्मसंन्मान को ठेंस पहुंचाने वाले अनेक जगहों पर मिलेंगे ही मिलेंगे ! और ऐसी कुनिती से भरी हुई दुनिया देखनी पडती है !
आज का समय तो इतना भयावह है की , साक्षात ईश्वर भी स्वर्ग से धरती पर , रूप बदलकर आयेगा तो भी साक्षात ईश्वर को भी स्वर्ग को वापिस लौटना पडेगा !
जी हाँ !
अधर्म का अंधियारा भयावह है ! सबसे संबंध विच्छेद करके , ईश्वरी चिंतन में संपूर्ण जीवन बिताना ही , सबसे छूटने का मार्ग है !
मगर बुराईयां करनेवाले ऐसा भी अलिप्त जीवन नहीं जिने देते है !
किसीका सहयोग करों तो भी नींदा नालस्ती , विरोध करों तो भी नींदा नालस्ती और सबसे दूरीयाँ बनाये रखेंगे तो भी ? नींदा नालस्ती ही नशीब में होगी !
निर्मनुष्य ठिकानों पर जाकर ईश्वरी चींतन में जीवन बिताना सबसे उत्तम मार्ग है ! मगर हर एक को ऐसा संभव नहीं होता है !
जहर में रहकर ही , जहर हजम करते करते ही आगे बढना होता है !
जिसपर परोपकार किया था , ऐसे लोग भी ग्रहदशा के समय में भयंकर नरकयातना दे सकते है !
अतएव सावधान !
त्रिवार सावधान !
ग्रहदशा का दौर भयंकर सावधान होकर तथा पगपगपर फूंककर ही चलना पडता है !
सबका जीवन मंगलमय हो !
*जय हरी विठ्ठल !!*
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*विनोदकुमार महाजन*
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