हिंदू ही हिंदुओं का बैरी ?
हिंदू ही हिंदुओं का बैरी ?
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खुद का अस्तित्व निर्माण करने के लिए तथा हिंदुधर्म का कार्य करने के लिए दुर्देव से ,
अनेक महापुरुषों क परकीयों से जादा स्वकीयों से जादा लडना पडा और इसी में ही उनकी भयंकर शक्ती खर्च हो गई !
और स्वकीयों से लडते लडते केवल अस्तित्व ही समाप्त होने का समय ही नहीं आया बल्की
संपूर्ण जीवन ही बरबाद होने का उनके जीवन में समस्या आ गयी !
सावरकरजी के हिंदुत्व को हिंदुओं द्वारा ही प्रताड़ित क्यों किया गया ?
जबकी उनकी विचारधारा धधगते सत्य पर आधारित थी !
सुभाषचंद्र बोस , शिवाजी महाराज , संभाजी महाराज , तुकाराम महाराज , संत ज्ञानेश्वर जैसे महापुरुषों को भी हमारे ही लोगों द्वारा बारबार क्यों प्रताड़ित किया गया ?
अनेक बार हमारे महात्माओं को भी , अपनों द्वारा ही खून के आँसू क्यों पिने पडे ?
बात अत्यंत संवेदनशील है !
और फिर भी वही महापुरुष हरपल अपने दिव्य मकसद की ओर निरंतर बढते ही गये !
हमारे ही धर्म में ऐसा विडंबन क्यों ??
मेरे जीवन में भी ऐसी महाभयानक समस्याओं का सामना बारबार करना पड़ा !मगर सद्गुरू कृपा , ईश्वरी कृपा और खडतर तपश्चर्या द्वारा मैंने मेरे जीवन का चीत्र ही बदल दिया ! और आज इसीका परीणाम यह हुवा की आज मैं मेरे उच्चतम और दिव्य मकसद के नजदीक खडा हूं !
मैं संपूर्ण पृथ्वी पर प्रेम के दो शब्दों के लिए तरसता और तडपता रहा ! मगर प्रेम का दिव्य अमृत कहीं पर भी नहीं मिला !
विशेषत: मेरे सद्गुरु आण्णा ने देह त्यागने के बाद !
और आखिर देवीदेवताओं ने मुझे प्रेमपूर्वक बाणी से आधार भी दिया और हरपल प्रोत्साहित भी किया !
मेरे अश्रुओं को भी पोंछा !
वैश्विक ईश्वरी कार्य के लिए !
मगर ईश्वर निर्मित वहीं इंन्सान ?
मुसिबतों की जलती आग में...
केवल... वह दो शब्द...
" चिंता मत कर , ईश्वर सबकुछ ठीक करेगा ! " इतना भी नहीं कह सका ?
हमारे देश में अनेक महापुरुषों को भी ठीक ऐसा ही अनुभव क्यों आता है ?
जिसे अपना समझकर दिव्य प्रेम किया वही भी हमारे बरबादी की तैयारियां कर बैठते है ?
मुसिबतों के भयंकर समय में अपनों द्वारा दो शब्दों का आधार मिलना तो दूर की बात है ,उल्टा भयंकर कुठाराघात सहने पडते है !
बहुत से हिंदू महापुरुषों का यही दुर्दैव है ! इसका उत्तर क्या है ?
सौ बार नहीं , हजारों लाखों बार सोचो !
और जो कोई धर्म का कार्य कर रहा है , अकेला लड रहा है , उसके पिछे अपनी शक्ति खडी कर दो !
कम से कम उसे रूलाओ तो मत !
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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