धन की हांडी

 *धन की हांडी !!*

✍️ २४४९


 *विनोदकुमार महाजन* 


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हर मनुष्य प्राणी को जीवनावश्यक साधन उपलब्ध कराने के लिए साधारणतः धन की नितांत आवश्यकता होती है ! 

सभी प्रकार की समस्याओं का अंतिम हल साधारणतः धन ही होता है !

फिर धर्म कार्य हो ,सामाजिक कार्य हो ,आध्यात्मिक कार्य हो अथवा पारिवारिक मसला हो !

धन के सिवा कार्य अधूरा होता है !

और ईश्वर निर्मित चौ-याशी लक्ष योनियों में से केवल और केवल मनुष्य प्राणीयों को ही धन की आवश्यकता होती है !

बाकी सजीव तो ईश्वर ने जैसा जीवन दिया है उसिके अनुसार ही जीवन बिताते है !


जीवनावश्यक साधनों के लिए धन चाहिए मतलब पैसा चाहिए ! वह भी पुण्य का पैसा चाहिए ! पाप का नही !

मतलब दो नंबर का पैसा ग्राह्य नही समझा जाता है !

साधारणतः धनप्राप्ती के लिए धन - वैभव की देवी माता महालक्ष्मी की कृपा भी चाहिए !

तभी जीवन खुशहाल , आनंदी रहता है ! आर्थिक समृद्धि से ही मनुष्य प्राणी अनेकानेक सुखी साधनों में रह सकता है !


धनप्राप्ति और आर्थिक समृद्धि के अनेक सात्विक उपाय हमारे धर्म शास्त्रों में और धर्म ग्रंथों में लिखे हुए मिलते है !


मगर अनेक बार यह भी देखने को मिलता है कि , किसी व्यक्ति के पास धन तो अपरिमित होता है ! मगर वह व्यक्ति कृपण होता है ! मतलब किसी सामाजिक कार्यों को , आध्यात्मिक कार्यों को , धार्मिक कार्यों को भी ऐसा व्यक्ति दानधर्म कभी भी नहीं करता है !

उल्टा कृपण व्यक्तियों के सामने कोई पुण्यात्मा भी तडप तडप कर मर रहा होता है तोभी ऐसे कृपण व्यक्ति उस पुण्यात्मा का नहीं बल्कि धन का ही विचार करता रहते है ! मतलब वह पुण्यात्मा तडपकर मरेगा तो भी चलेगा , मगर वह कृपण व्यक्ति पैसा नहीं खर्च करेगा !

चाहे वह पुण्यात्मा पारिवारिक सदस्य भी क्यों न हो ?


फिर ऐसे धन का अथवा उस धन की पोटली का क्या फायदा ?

ऐसे व्यक्ति खुद तडपकर मर रहे होते है तो भी ? उस धन को हाथ नहीं लगाते है ! ?

तो ऐसा धन शापित ही हो सकता है ना ? और शापित धन को हाथ लगाना भी पापसमान होता है !


अमाप धन होकर भी उसका सदुपयोग करने के बजाए वही धन बढाने में कोई व्यक्ति लग जाता है , उसको कभी समाधान ही नहीं मिलता है , और एक दिन मर भी जाता है तो ?

उसे मोक्ष या गति भी कैसे मिलेगी ?

धन की पोटली पर अथवा धन की हंडी पर ऐसा व्यक्ति मरने के बाद साँप बनकर ही रहेगा ना ?

हमारे पूर्वज भी यही बताते थे !


अब हमारे सौभाग्य से वहीं धन की हांडी हमें दिखाई दे रही है , मगर उसपर साँप बैठे हुए है तो ? वह धन की हांडी की अभिलाषा करना कितना उचित होगा ?

क्योंकि वह हांडी चाहिए तो उसपर साँप बैठा है !? और वह साँप उसी हांडी को हाथ में लगने नहीं दे रहा है !?

तो ऐसे धर्म संकट में क्या करना उचित रहेगा ?

मतलब धन की हांडी चाहिए तो ? उस साँप को मारना पडेगा !? अथवा ? उस धन की हांडी का विचार सदा के लिए छोडकर कहीं दूर जाना योग्य रहेगा ?


और मेरे विचारों से उस धन की हांडी से सदा के लिए दूर ही जाना यथायोग्य रहेगा !

क्योंकि उस शापित धन को लेकर भी क्या फायदा ?

क्योंकि शापित धन जीवन में अनेक समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है !

कोई पापी व्यक्ति उस धन की हांडी पर बैठे साँप को मारकर धन हासिल करेगा !

मगर पुण्यवान व्यक्ति अथवा कोई सत्पुरुष ? उस धन की हांडी से सदा के लिए दूर चला जायेगा !


इसीलिए महापुरुष करोड़ों की माया - धनदौलत - मोहपाश में कभी भी अटकते नहीं है ! बल्कि उससे दूर ही रहते है ! अथवा सदा के लिए दूर चले जाते है !


मगर ईश्वर का कार्य ,धर्म कार्य ,सामाजिक कार्य ,आध्यात्मिक कार्य के लिए तो धन चाहिए ही चाहिए !

वह कैसे मिलेगा ?


अगर सचमुच में हमारे हाथों से ईश्वरी कार्य होना है , ईश्वर की भी यही इच्छा है तो अनेक मार्गों से हमारा कार्य सफल बनकर ही रहेगा ! इसे कोई नहीं रोकेगा !


और प्रत्यक्ष माता महालक्ष्मी का हमें वरदान प्राप्त है तो ? ईश्वरी कार्यों के लिए धनप्राप्ति बिना माँगे भी मिलेगी !


मेरे सद्गुरु आण्णा मुझे हमेशा यही कहते थे की ,

" न मागे तयाची रमा 

होय दासी ! "


और जिसकी माता ही खुद महालक्ष्मी है तो ? ( मेरी माता महालक्ष्मी तो मुझे मिल गई ) और उसके साथ अत्यंत प्रेमपूर्वक बातें करती रहती है ... उसे किसी को कुछ माँगने की भी क्या जरूरत होगी ?


प्रत्यक्ष माता महालक्ष्मी ही अत्यंत मधूर बाणी में उसे कहती है....

" क्यों व्यर्थ रोता है ? क्यों परेशान होता है ? क्यों व्यर्थ की चींता करता है ? अब मैं तेरे घर में रहने को आयी हूं !! "

तो ? उससे बडा सौभाग्यशाली कौन हो सकता है ?

और उसका सत्य सनातन धर्म का वैश्विक कार्य भी कौन रोक सकता है ??


जहाँ माता महालक्ष्मी का वरदान प्राप्त होता है वहाँ सभी सिध्दियों का वरदान भी प्राप्त होता है ! सभी देवीदेवताओं का वरदान भी प्राप्त होता है !

सुख ,शांति ,समृद्धि ,आनंद वैभव वहाँ पर नितदिन रहता ही है !!


। *जय माता महालक्ष्मी की* ।

।। लक्ष्मी नारायण की जयजयकार हो ।।

।। हरी हरी: ओम् ।।


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