सुख के सब साथी ?
*जब हम मुसिबतों में होते* *है ?*
✍️ २५५०
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जब
हम मुसिबतों में होते है , चारों ओर से घोर मुसिबतों में फँस जाते है , दुखी मन हमेशा तडपता रहता है ...
तब....
हमें ऐसा लगता है की , मुसिबतों की घडी में हमें कोई सहायता करें , आधार दें ! आर्थिक ना सही कम से कम दो प्रेम के शब्दों का आधार दें !
" चींता मत करना , ईश्वर सबकुछ ठीक करेगा ! "
ऐसे दो शब्द बोलें !
ऐसे समय में ऐसे दो शब्दों के लिए , आत्मा तडपती रहती है !
मगर ऐसे पत्थरदिल समाज में , ह्रदयशून्य समाज में , हमारी अपेक्षा पूरी होना तो दूर की बात....
उल्टा हमारे कोमल ह्रदय पर , ह्रदयशून्य लोगो द्वारा , क्रूर समाज द्वारा , कुठाराघात होता है तब...
सचमुच में मृत्यु भी अच्छी लगने लगती है !
चारों तरफ से घोर उपेक्षा , विडंबना , अपमान , मनस्ताप से ह्रदय भी घायल हो जाता है !
जिसके साथ जी जान से प्रेम किया , जीसके मुसिबतों की घडी में पहाड़ बनकर आधार दिया ,
वोभी हमारे मुसिबतों में और पीडा और नरकयातनाएं देते रहते है ...तब ? जीवन ही असह्य लगने लगता है !
मुसिबतों की घडी में साथ देना तो दूर की बात है , सब दूर ही भाग जायेंगे !
कुछ नामर्द तो ऐसे समय में , जोरजोरसे ठहाके लगालगाकर हमें हँसेंगे !
मुसिबतें कम करने के बजाए , मुसिबतें बढायेंगे तब दुख तो होगा ही ना ?
उपर से भयंकर षड्यंत्रों द्वारा हमें चारों तरफ से बदनाम भी करेंगे , चारों तरफ से बदनामी की आग लगाएंगे तो ..?
ऐसी समाज रचना के प्रती , हमारे मन में भयंकर नफरत ही पैदा होगी ना ?
अपने - पराये भी जब भयंकर तडपायेंगे तो हमारा जीना ही हराम हो जायेगा !
ऐसे भयंकर परिस्थितियों में करें तो क्या करें ? आखिर जाएं तो कहाँ जाएं ?
संत ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम जैसे महान आत्माओं को भी , हमारे ही समाज ने , हमारे अपनों ने ही , स्वकियों ने ही तडपाया ना ?
जलबीन मछली कैसे तडपती रहती है ? ठीक ऐसे ही ?
ऐसे विपदाओं में हिम्मत बढाते है...केवल सद्गुरु और ? निराकार ईश्वर !!
इसीलिए जीवन का सही तारणहार केवल सद्गुरु और ईश्वर ही होते है !
बाकी दुनिया सारी ??
मायावी ! मतलब की दुनिया !!
सुख के सब साथी !
दुख में ना कोय !
तुम्हारा क्या ? मेरा क्या ?
एक ही दुखदर्द होता है !!
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन
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