प्रेम

 *माँ का प्रेम और सिध्दयोगीयों का दिव्य प्रेम* ?

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माँ का प्रेम ईश्वर के प्रेम जैसा शुध्द और पवित्र होता है ! और जीवनभर के लिए होता है !

अगर अपना बच्चा बिगड़ रहा है तो माँ तडप उठती है ! और बिगडे हुए संतान को सुधारने के लिए निरंतर प्रयास करती रहती है !

कभी अपने बच्चे के साथ प्यार दुलार करती है तो ,उसे सुधारने के लिए कभी चार गाली भी देती है , तो कभी चार थप्पड़ भी मारती है !


ठीक ऐसे ही सिध्दपुरूष , सिध्दमहायोगी होते है !

जहाँ जाते वहाँ सभीपर पवित्र और दिव्य ईश्वरी , निरपेक्ष प्रेम ही करते रहते है ! इसीलिए बिगडे हुए व्यक्ति को , समाज को अनेक बार प्यार दुलार से समझाते है , अनेक बार माँ की तरह गाली भी देते है अथवा किसी को थप्पड़ भी मारते है !


अनेक बार बच्चे अपनी माँ का प्रेम समझ सकते है ! मगर अनेक व्यक्ति सिध्दपुरूषों का विचित्र और उनके नजरों से , विक्षिप्त आचरण नहीं समझ सकते है !


शेगांव के गजानन महाराज एक कुष्ठ रोगी के शरीर पर थूके थे ! कोई अज्ञान होता तो गजानन महाराज की भाषा न समझकर , उल्टा गजानन महाराज को ही भलाबुरा कहता !

विक्षिप्त , विचित्र या पागल कहता !

मगर उस कुष्ठ रोगी ने गजानन महाराज की थूक का श्रद्धा से मल्हम बनाया और सारे शरीर पर लगाया !

और उस कुष्ठ रोगी का कुष्ठ भी ठीक हो गया !

है ना आश्चर्य ?


अनेक महापुरुषों का , सिध्दपुरूषों का हमेशा ऐसा ही आचरण होता है !

उसे समझने के लिए भी योग्यता चाहिए !


वृंदावन में पागल बाबा नाम के चमत्कारी , महासिद्ध योगी रहते थे ! बडे विचित्र और विक्षिप्त लगते थे सबको ! देखने वाला उन्हें और उनकी दिव्य शक्तियों को पहचानता नहीं था !

तुकाराम महाराज को अनेक लोग , येडा तुक्या , कहते थे !


समाज में ऐसे अनेक महापुरुष ,अनेक बार गुप्त रूप में भी रहते है ! जो निरंतर समाज की भलाई ही चाहते है !


मगर उन्हें पहचानने के लिए , किसी के पास आँख नहीं होती है !


सिध्दपुरूषों की कृपा से सारा जीवन ही बदल जाता है ! मगर ऐसे पुरूष किसी पर तुरंत कृपा भी नहीं करते है !


क्योंकि राक्षसों के हाथ में अमृतकुंभ लगेगा तो राक्षस हाहाकार ही मचायेंगे !

इसीलिए राक्षस कृपा के नहीं बल्कि सजा के ही लायक होते है !


समाज में गुप्त रूप से रह रहे , ऐसे सिध्दपुरूषों को , महापुरुषों को मेरे कोटि कोटि प्रणाम !


श्रीकृष्णार्पणमस्तु

हरी ओम्


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 *विनोदकुमार महाजन*

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