चक्रव्यूह
*चक्रव्यूह ?*
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साधारणतः सभी मनुष्य प्राणीयों के जीवन में दूख जादा और सुख कम आता है !
जैसे जैसे मनुष्य प्राणी सुखों के पिछे भागता रहता है , वैसे वैसे उसके नशीब में जादा दुख आता है !
और ऐसा व्यक्ति इसी कारण अनेक बार परेशान रहता है ! और परेशानियों को झेलने की मन की स्थिति पूर्ण रूप से समाप्त होती है तब मनुष्य हतबल होता है !
और हतबलता फिरसे एक नये भयंकर परेशानियों में डालती है !
हतबलता पर संपूर्ण विजय प्राप्त करके एक आनंदित तथा नये उर्जा का आनंदित जीवन जिने के लिए अनेक उपाय भी किए जाते है !
चौ-यांशी लक्ष योनियों में साधारणतया मनुष्य प्राणी ही हमेशा जादा दुखी रहता है ! और दुखों का हमेशा एक ही कारण होता है , निरंतर बढती अपेक्षाएं !
और अपेक्षाओं को बोझ निरंतर रहता ही है ! और यही कारण से दुख भी निरंतर बढता रहता है !
एक मनुष्य प्राणी छोडकर बाकी सभी जीव मस्त जीवन जीते है ! क्योंकि एक तो वह सभी जीव अपेक्षा विरहीत जीवन जीते है ! और उन सभी का जीवन भी नैसर्गिक ही होता है !
इसिलिए उनकी कुछ अपेक्षाएं भी नहीं होती है !
मगर मनुष्य प्राणी निरंतर बढती अपेक्षाओं के कारण , निरंतर दुखी भी रहता है !
और हरदिन एक नये चक्रव्यूह में फँसा रहता है !
एक चक्रव्यूह पार करते ही दूसरा चक्रव्यूह हमारे सामने खडा हो जाता है !
अनैर्गीक जीवन , ईश्वराधिष्टित जीवन से दूरीयाँ , अनेक बार मनुष्य प्राणी को दुखों में धकेलने में सहायक होती है !
जादा सुखी जीवन के लिए , जादा पैसों की अपेक्षा , सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति के अथक प्रयास भी जादा धन कमाने की ओर धकेलता है ! और जादा धन कमाने की होड , जादा दुखों की ओर ले जाती है !
और इसी प्रकार से संपूर्ण जीवन ही एक अनाकलनीय चक्रव्यूह में फँसता जाता है ! जिसका कोई समाधान कारक उत्तर भी नहीं मिलता है !
आज संपूर्ण मनुष्य प्राणी साधारणतः भौतिक सुखों के पिछे ही भागता हुआ नजर आ रहा है !
पैसा चाहिए !
खूब पैसा चाहिए !
सभी सुख देनेवाला पैसा चाहिए !
चाहे पैसा कमाने का मार्ग भला हो या बूरा !
एक लाख मिल गये तो दस लाख चाहिए !
दस लाख मिल गये ?
एक करोड़ चाहिए !
दस करोड़ मिल गये ?
सौ करोड़ चाहिए !
बंगला गाडी नौकर चाकर सब चाहिए !
पैसों से मिलने वाले सभी प्रकार के सुख चाहिए !
अपेक्षाएं बढती गई !
अपेक्षाओं का बोझ भी बढता गया !
और अनायासे अनायासे अनाकलनीय चक्रव्यूह भी बढता गया !
इसीलिए मनुष्य प्राणी छोडकर बाकी सब योनीयाँ , सभी सजीव मस्त है , स्वस्थ है , बडे आनंद का और मजे का जीवन जी रहे है !
उन्हें ना पैसा चाहिए , ना बंगला , गाडी ,नौकर चाकर की अपेक्षा है !
जमीन पर खाना , जमीन पर ही सोना !
सारे विधी भी जमीन पर ही ! इसिलिए उनका जीवन सुखों का भंडार है !
उन्हें ना भविष्य की चींता है , ना अगले पिढी के भविष्य की चींता है !
उन्हें ना सिगरेट चाहिए , ना दारू , ना नशा ! और नाही "बाहरी दिखावे के , ऐशोआराम के जीवन की अपेक्षाओं का बोझ !
इसिलए ना उनके जीवन में दुख है ना चक्रव्यूह भेदने की अपेक्षा !
स्वछंद और निरपेक्ष जीवन !
हाँ ....
एक बात तो तय है की ,
मनुष्य जीवन है तो ?
धन भी चाहिए !
धन एक जीवनोपयोगी साधन है ! मगर अंतिम साध्य नहीं है !
और सन्मार्ग से अपेक्षित धन कमाना कोई पाप भी नहीं है !
जीवन का अंतिम साध्य है ईश्वर प्राप्ति ! और ईश्वर प्राप्ति द्वारा नर का नारायण और नारी की नारायणी बन जाना !
इसिलिए ही मनुष्य जन्म है !
और यही ईश्वरी प्रायोजन भी !
धन कमाने के अनेक आध्यात्मिक उपाय भी होते है !
धन की अधिष्ठात्री देवी होती है , माता महालक्ष्मी !
और उसकी असीम कृपा से हमारा जीवन भी धन्य हो जाता है !
आखिर माता महालक्ष्मी हम सभी कि माई है ! ममता मई माँ का प्यार प्राप्त करना भी असंभव नहीं है !
वह जगद् जननी है !
जगद् अंबिका का !
परम कृपालु !
परम ममतामयी !
वात्सल्य मूर्ति !
माँ जगदंबा !
वह हमारे जीवन के सभी प्रकार के चक्रव्यूह का भेदन करेगी !
बस्स्...
छोटासा बच्चा बनकर उसके शरण में जाना चाहिए !
उसपर निरपेक्ष ,सच्चा प्रेम करना चाहिए !
आखिर वह हमारी माँ है !
वह भी हमारे प्रेम की भूखी है !
सच्चा , पवित्र , निरपेक्ष प्रेम ही तो हम सभी की आत्मा है ! मगर ऐसा प्रेम प्राप्त होना भी भाग्य का ही भाग है !
हमारी माँ हमारी माई , जगदंबा हमारे वैश्विक ईश्वरीय कार्य परीपूर्ण करने हेतु जो भी प्रेरित होगा , उसे खुद हमारी माँ , बडी असिम कृपा से , बडे प्रेम से , हमारे लिए धन का भंडार भी खोल देगी !
विश्वास चाहिए !
ईश्वरी शक्तियों पर भरौसा भी चाहिए !
तभी जीवन के सभी चक्रव्यूह भी अनायासे ही खुल जायेंगे !
बोलिए....
कोल्हापुर निवासी माता महालक्ष्मी की जय हो !
सद्गुरु आण्णा की जय !
हरी ओम्
ईश्वर की शरण में लेख संपूर्ण !
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*विनोदकुमार महाजन*
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