धन ही जीवन है ?
धन ही जीवन है ?
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धन मिल गया तो जीवन धन्य हो गया...ऐसी साधारणतः सामाजिक धारणा होती है।अधिक धन मिला तो....भयंकर भाग्यवान ऐसी भी साधारणतः धारणा रहती है।
मगर सचमुच में धन मिलना ही पूर्णत्व है ? यही जीवन का अंतिम उद्देश्य होता है ?या जीवन का अंतीम उद्दिष्ट कुछ और ही है ?
ईश्वरी चिंतन और तपश्चर्या द्वारा नर का नारायण बनना ही मनुष्य देह का अंतीम उद्दिष्ट है।यही अंतिम साध्य है।
मगर आज पैसा ही भगवान बन गया है।और धन के वास्ते इंन्सान असली ईश्वर को और इंन्सानियत को ही भूलता जा रहा है।
धन जीवन का अंतीम साध्य नही है,मगर जीवनोपयोगी महत्वपूर्ण साधन जरूर है।और आज लगभग सभी मनुष्य प्राणीयों की दिनचर्या ही केवल और केवल धन कमाने में ही लगी हुई है।और धन के सिवाय दिनचर्या भी असंभव है।
लगभग सभी का समय,सुबह से शाम तक का सारा समय केवल धन कमाने में ही जाता है।
बढती उच्च जीवनशैली की वजह से तो धन जीवन का अविभाज्य हिस्सा बन गया है।इसिलए धर्म कार्य अथवा ईश्वरी चिंतन के लिए समय ही कहाँ मिलता है ?
ऐसे बहाने भी होते है।
आज पृथ्वी का हर मनुष्य प्राणी धन कमाने के पिछे ही दौड़ रहा है।
ख्रिश्चन, बौध्द, मुस्लिम देशों में धन को महत्व तो देते ही है,मगर साधारणतः वह धर्म को नही भूले है।
और हमारे देश में साधारणतः लोग धन के पिछे ही भाग रहे है....और धर्म को कुछ लोगों द्वारा विशेष महत्व भी नहीं दिया जाता है।
धन भी दो प्रकार का होता है।
काला और गोरा धन,अर्थात सफेद रूपया।
काला धन अत्याचार से कमाया जाता है...जैसे आजादी के बाद काला धन कमाने के लिए... अनेक भ्रष्ट मार्गों का अवलंब किया गया।शासकीय स्तर पर भी ऐसे गैरकानूनी मार्गों को प्रोत्साहन दिया गया।
शराब बेचकर लोगों के जीवन उध्दस्त कर देनेवाला धन तो महाभयंकर पापकारी होता है।इससे बेहतर ये होता है की...ऐसे कुमार्गी धन से जादा बेहतर यह रहेगा की..घर में भूका सोये अथवा भूखा ही मरें।
शापीत धन भी भयंकर पिडादायक होता है।
गोरा धन अर्थात संन्मार्ग का धन ही असली धन होता है।खून पसीना बहाकर कमाया हुवा धन आत्मीय शांति देता है।
ईश्वरी कार्यों के लिए ,समाज कार्य के लिए भी धन की नितांत जरूरत होती है।
धन के बिना कार्य असंभव है।
खुद माता महालक्ष्मी का वरदान किसीको मिलें तो ऐसा धन कार्यसफलता आसान बनाता है।
दुसरों का धन लुटना यह ठीक तो नहीं है।
मगर हैवानों का धन जप्त करके वही धन ईश्वरी कार्यों के लिए लगायेंगे तो भी यह पापकर्म नहीं है।उल्टा यह पुण्य कर्म ही है।क्योंकि हैवानियत का नाश और ईश्वरी सिध्दांतों की जीत अगर ऐसे धन से होती है...
तो..ऐसा कार्य गलत नहीं है।
चौ-यांशी लक्ष योनियों में से केवल और केवल मनुष्यों प्राणीयों को ही जीवन चरितार्थ चलाने के लिए धन की जरूरत होती है।
बाकी पशुपक्षी धन के बिना ही मस्त,आंनंदी और स्वच्छंद जीवन जिते है।
जमीन पर सोना,जमीन पर खाना।
उन्हें ना बंगला लगता है,ना गाडी।ना सोना,ना चांदी।
ईश्वर ने जैसा दिया है वैसा मस्त,कलंदर,नैसर्गिक जीवन।
और नाही दुसरे सजीवों को दारू सिगरेट लगता है।
मनुष्य प्राणी बडा विचित्र।
है ना दोस्तों ?
धन की देवी विष्णु पत्नी माता महालक्ष्मी है।
जिसपर भी माता महालक्ष्मी की कृपा होती है...उसका जीवन धन्य हो जाता।
पिछले जनम के पापपुण्य के हिसाब के अनुसार ही धन प्राप्ति होती है।अथवा महालक्ष्मी की भी कृपा होती है।
पिछले जनम का पुण्य का बैंकबैलेंस अच्छा है तो धन प्राप्ति में बाधाएं नही आती है। अथवा कम आती है।और अगर पिछले जनम में बैंक में पाप का कर्जा ही जादा है तो धन प्राप्ति के लिए भयंकर परेशानी होती है।अथवा अनेक बार प्राथमिक जरूरतों को भी पूरा करने के लिए, धन के लिए तरसना पडता है।
कठोर तपश्चर्या द्वारा भी माता महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सकती है।
परोपकार, धर्म कार्य, समाज कार्य, ईश्वरी कार्य के लिए भी धन की अत्यावश्यकता होती है।
गुरूमंत्र का जाप,होमहवन जैसे पवित्र और शुध्द मार्गों से भी व्यक्ति धनवान बन सकता है।
दान से भी लक्ष्मी जी कृपा बनी रहती है।
आज धन कमाने की और उसके द्वारा मिलने वाले सभी सुखों को हासिल करने की समाज में होड सी लगी है।
भलेबुरे मार्गों का अवलम्ब भी होता जा रहा है।और इसी द्वारा सामाजिक हेराफेरी भी बढती जा रही है।
इंन्सानियत के नाते किसी सुह्रदर्ई व्यक्ति ने किसी आर्थिक जरूरत मंदों की आर्थिक सहायता की,और ...
अगर उस जरूरत मंद को उस पुण्यात्मा ने कुछ दिन इंतजार करके..धन की माँग की...
तो..
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
ऐसी भयंकर सामाजिक धारणा बनती जा रही है।
जिसनें जरूरत मंदों को धन दिया है..उसका आभार मानना तो दूर..पैसा माँगने पर उस बेचारे को ही डराया,धमकाया जाता है तो..
यह भयंकर सामाजिक अध:पतन का संकेत है।
और ऐसे अनेक उदाहरण सामने आ रहे है।
ऐसे सामाजिक अध:पतन के माहौल में सज्जन व्यक्ति कैसे रह सकता है ? ऐसे गंदे माहौल से तो वह दूर भागने की ही कोशिश करेगा।
ऐसे अध:पतीत समाज को फिरसे ईश्वरी सिध्दांतों को जोडने के लिए, सामाजिक क्रांती की ही जरूरत होती है।
साथीयों,
और मेरे सारे प्यारे मित्रों,
आप सभी पर भी माता महालक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहे यही माँ भगवती के चरणों में प्रार्थना।
सभी देशवासियों को विपुल धनसंपदा प्राप्त हो,हरएक व्यक्ति खुशहाल बने ,सुखी बनें और देश फिरसे सोने की चिडिय़ा वाला,सुजलाम सुफलाम बनें यही ईश्वर के चरणों में प्रार्थना।
शेष अगले लेख में।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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