हमारे पिता और चाचा
हमारे " पिता " और... " चाचा.."
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( टीप : - भारतीय राजनिती से इसका कोई संबंध नही।अगर है तो....
एक योगायोग समझिए )
हमारे....
" पिता...."
और,
" चाचा....."
बडे ही चालाक निकले।
और हम भोलेभालों को उनकी चालाकी समझ में भी नही आई।
क्या हुवा...???
हमारे " भाई " को अलग
घर भी दे दिया...
उन्हे हमारे घर में भी जगह दी।
" उन्हे " हमसे जादा अधीकार भी दिए।
हमारे अधिकारों को भी नजरअंदाज किया और कम भी किया...
हमारे ही घर में हम
दोयम....
की तरह जीते रहे।
अन्याय, अत्याचार सहते रहे।
अंदर ही अंदर घुटन महसूस
करते रहै...
धिरे धिरे हमारी शक्ती घटाई गई
हमारे भाईयों की शक्ती बढाई गई....
हर जगह भयंकर, भयानक मानसीक उत्पीडन द्वारा
हमपर कुठाराघात होते रहे...
और...
भाईयों का मनोबल बढाते रहे...
धिरे धिरे अत्याचार इतना बढा की हमें हमारे घर में ही रहना मुश्कील हुवा...
जाएं तो कहां जाएं ?
हमारे ही घर में हमें ही हमारे भाईयों द्वारा मार,काट की धमकीयाँ मिलने लगी।
और कुछ लोग उल्टा हमें ही संकुचित, अत्याचारी कहने लगे।
तौबा...तौबा...
सारा खेल अजब हो गया।
सब गजब ही गजब हो गया।
भागम् भाग का भी माहौल आरंभ हुवा...
हमें ही धुत्कार मिली,हमें ही अपमान मिले,हमें ही दरदर की ठोकरें खाने पडी।
हमें ही अपमानित, प्रताडित किया गया...
हमारे ही घर में हम चोर हो गये...।
हाय रे दुर्देव....।
कमाल के हमारे
" पिता " और " चाचा " निकले।
करें तो क्या करें ?
दुर्देव का फेरा सत्यवादीयों को ही भुगतना पडा।
समाप्ती की कगार पर हमें धकेला गया...
( भाईयों... सोचो,सम़झो,जानो,जागो...)
यह अस्तित्व की लडाई है।
हम तेजस्वी ईश्वर पुत्र होकर भी इतने हीन - दीन - दुखी - परेशान कैसे हो गये।
जागो,
समय कठीण है।
ईश्वरी तेज जागृत करके...
सत्य बचा लो।
सत्य बचा लो।
अभी नही...तो...???
कभी भी नहीं।
( समझे कुछ ??? )
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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