भारत का गौरवशाली ईतिहास

 दूसरे विश्व युद्ध के समय, पोलेंड पुरी तरह तबाह हो गया था.  सिर्फ औरतें और बच्चे बचे थे. बाकी सब वहां के पुरुष युद्ध में मारे गए थे. 


               पोलेंड की स्त्रियों ने पोलेंड छोड़ दिया क्योंकि वहां उनकी इज्जत को खतरा था. तो बचे खुचे लोग और बाकी सब महिलाएं व बच्चे से भरा जहाज लेकर निकल गए, लेकिन किसी भी देश ने उनको शरण नहीं दी.


               फिर यह जहाज भारत की तरफ आया. वहां गुजरात के जामनगर के तट पर जहाज़ रुका. तब वहां के राजा *जाम दिग्विजय सिंह जाडेजा* जी ने उनकी दिन हीन हालत देखकर उन्हें आश्रय दिया. न केवल आश्रय दिया, अपितु उनके बच्चों को _आर्मी_  की _ट्रेनिंग_  दी, उनको पढ़ाया, लिखाया, बाद मे उन्हें हथियार देकर पोलेंड भेजा जहां उन्होंने जामनगर से मिली _आर्मी_  की _ट्रेनिंग_  से देश को पुनः स्थापित किया. 


               आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते हैं. उनके संविधान के अनुसार *जाम दिग्विजय सिंह* जी उनके लिए ईश्वर के समान हैं. इसीलिए उनको साक्षी मानकर आज भी वहां के नेता संसद में शपथ लेते हैं. 


               यदि भारत में दिग्विजय सिंह जी का अपमान किया जाए तो यहां की कानून व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन यही भूल पोलेंड में करने पर तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया जाता है. 


               जानते हो ये पोलेंड वाले जाम नगर के महाराजा दिग्विजय सिंह जाडेजा जी के नाम पर क्यों शपथ ले रहे हैं? 


               क्या आप जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के लोगों को पोलेंड बिना वीज़ा के क्यों आने दे रहा अपने है अपने देश में?


               आज भी पोलेंड जाम साहब के उस कर्म को नहीं भूला है.  इसलिए आज भारत के लोगों को बिना वीज़ा के आने दे रहा है. उनकी सभी प्रकार से मदद कर रहा है.


               क्या भारत के इतिहास की पुस्तकों में कभी पढ़ाया गया दिग्वज सिंह जी के बारे में? यदि कोई पोलेंड का नागरिक भारतीय को पूछ भी ले कि, ”क्या आप जामनगर के महाराजा दिग्वज सिंह जी को जानते हो?” तो हमारे युक्रेन में _डॉक्टर_  की पढ़ाई करने गए भारतीय छात्र कहेंगे,  _”नो एक्च्युलि ना... नो, वी डोंट नो हू ही वॉज.”_  थू है ऐसी शिक्षा व्यवस्था पर जिसने अपने ही जड़ों से काटकर रख दिया है हमें. 


               जय हिंद

संकलन : - विनोदकुमार महाजन

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