सदैव कुमार ही रहेंगे
सदैव कुमार रहेंगे
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कुमार,
मतलब यौवन,तारुण्य, जोश,कुछ कर दिखाने की शक्ति।
इस कुमारअवस्था में हिंमत से इंन्सान जीता है।और कुछ जबरदस्त कार्य कर दिखाता है।
जैसे जैसे उमर बढती है...
शरीर थकता जाता है।शरीर को और मन को सदैव चैतन्यदाई रखने के लिए,
योगासन, प्राणायाम, माँर्नींग वाक,स्विमींग, साईकिलींग द्वारा तरोताजा रखा जाता है।और बढती उमर की तकलीफ न होकर....
व्यक्ति प्रसन्न रहता है।
इसिलए साथीयों,
अगर उमर बढ भी रही तो भी मन की अवस्था सतत कुमारअवस्था ही रहनी चाहिए।
सदैव प्रसन्न चित,हास्य मुख,आनंदित ही रहना चाहिए।
सभी पर पवित्र ईश्वरी प्रेम ही करना चाहिए।पशुपक्षी सहीत निसर्ग, पेड पौधोंपर भी प्रेम करना ही चाहिए।
इसिलिए मन भी हमेशा प्रसन्नचित रहेगा और भूतदया, परोपकारी भावना भी दृढ रहेगी।
और आप सदैव कुमार ही रहेंगे।
मगर एक बात पक्की याद रखना साथियों,
जहाँ हमारे सच्चाई, अच्छाई की कीमत ना हो उस स्थान पर कभी मत रहिए।हमेशा के लिए ऐसे स्थानों से दूर चले जाईये।अन्यथा. ऐसे माहौल में हमारे अंदर घुटन सा होता है।और इसका परिणाम स्वास्थ्य तथा हमारे मन पर भी होता है।
और आपके चैतन्यदाई जीवन में अनेक बाधाएं आती है।
इसिलए विनावजह हमसे जलनेवालों से,नफरत करनेवालों से हमेशा दूरी रखना अथवा वह स्थान छोडना ही बेहतर होता है।
ऐसे स्थान पर तुम्हारी छोटीसी गलती भी भयंकर पिडादायक एवं क्लेशदायी होती है।
इसीलिए सदैव कुमार रहने के लिए, स्वस्थ, मस्त,आनंदित रहने के लिए वातावरण अच्छा होना अत्यावश्यक है।
जिस वास्ते से हमारे कार्यों में बाधाएं, रूकावटें न आ सके।
मन कुमार रहने के लिए अखंड ईश्वरी चिंतन,गुरूमंत्र का जाप,होमहवन ऐसे कार्य सदैव होते रहेंगे...
तो मन की शक्ति भी अनेक मात्रा में बढेगी।
आध्यात्म यह ऐसा जबरदस्त शक्तिशाली है की नर का नारायण भी बनाता है और नामुमकिन को भी मुमकिन में बदल देता है।
सद्गुरु तथा ईश्वरी कृपा से भाग्य भी बदलने की शक्ति तथा क्षमता आध्यात्म में होती है।
मन और देह कुमार रखने के लिए...
अध्यात्म,मन का बडप्पन, सदैव समाजहित तथा परोपकार में ही व्यस्त रहना चाहिए।
आत्मोध्दार और आत्मप्रचिती का माध्यम भी मन की प्रसन्नता ही है।
और जब आपको ऐसा लगेगा की,हमारे सच्चाई की,अच्छाई की कीमत समाज में शून्य है...
तो भी उदास, हताश न होकर सदैव ईश्वरी चिंतन में ,एकांत में रहना चाहिए।
क्लेशविरहीत समाज मन की प्रसन्नता बढाता है तो क्लेशदाई समाज मन को दुखदर्द, पिडा देता है।
सभी को हिमालय में जाकर उच्च साधना द्वारा मन को प्रसन्न रखना अनेक जिम्मेदारियों की वजह से मुमकिन तो है नही।
सर्वसंगपरित्याग यह कोई साधारण बात नहीं है।
तो साथियों,
चलो आज से,अभी से,प्रसन्नमुख,आनंदी,क्लेशविरहीत, परोपकारी ,फुलों जैसा टवटवीत रहकर सामाजिक प्रगती का संकल्प करके....
संपूर्ण जीवन भर कुमार रहने का ही हम सभी संकल्प करते है।
मस्त रहो,स्वस्थ रहो।
खुश रहो , आनंदी रहो।
सभी पर ईश्वर की असीम कृपा बनी रहे।और सभी का जीवन मंगलमय हो।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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