धर्म द्रोही
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इतिहास गवाह है हमेशा किले के दरवाज़े अंदर से ही खोले गए है।
#शिवाजी की शमशीरें,
#जयसिंह ने ही रोकी थीं,
#पृथ्वीराज की पीठ में बरछी,
#जयचंदों नें भोंकी थी ।
#हल्दीघाटी में बहा लहू,
शर्मिंदा करता पानी को,
#राणा_प्रताप सिर काट काट,
करता था भेंट भवानी को।
#राणा रण में उन्मत्त हुआ,
#अकबर की ओर चला चढ़ के,
#अकबर के #प्राण बचाने को,
तब #मान_सिंह आया बढ़ के।
इक #राजपूत के कारण ही,
तब वंश #मुगलिया जिंदा था,
इक #हिन्दू की गद्दारी से,
#चित्तौड़ हुआ #शर्मिंदा था।
जब #रणभेरी थी #दक्खिन में,
और #मृत्यु फिरे मतवाली सी,
और वीर #शिवा की तलवारें,
भरती थीं खप्पर #काली सी।
किस #म्लेच्छ में रहा जोर,
जो #छत्रपती को झुका पाया,
ये #जयसिंह का ही रहा द्रोह,
जो वीर #शिवा को पकड़ लाया।
गैरों को हम क्योंकर कोसें,
अपने ही #विष बोते हैं,
#कुत्तों की गद्दारी से,
#मृगराज पराजित होते हैं।
#बापू जी के मौन से हमने
#भगत सिंह को खोया है,
धीरे हॉर्न बजा रे पगले,
देश का हिन्दू सोया है ।
🚩जय_श्री_राम 🚩 🙏🏻🚩🇮🇳Jai Hind 🇮🇳🚩🙏🏻
विनोदकुमार महाजन
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