समर्पण और स्वार्थ
जहाँ समर्पण है वहाँ ईश्वर
रहता है
जहाँ समर्पण नही तो
केवल और केवल स्वार्थ ही है
वहाँ से ईश्वर दूर
चला जाता है
क्योंकि समर्पण ही सच्चा प्रेम है
और ईश्वर सदैव सच्चे प्रेम का
भूका होता है
मायावी और मोहमई दुनिया में
क्या सच्चा प्रेम भी मिलेगा ?
हरी ऊँ
विनोदकुमार महाजन
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