नंगा आदमी और दुनियादारी
नंगा आदमी और दुनियादारी
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प्रारब्ध और प्रारब्ध का फेरा,नशीब का खेला बडा अजीब होता है।
यह नशीब नाम की जीच ही बडी विचित्र होती है।
एक पल में भी राजा को भिकारी तथा भिकारी को भी राजा बनाती है।
प्रारब्ध गती के अनुसार एक व्यक्ति सबकुछ खो बैठा।खुद की सुधबुध भी वह बेचारा खो बैठा।
और नशीब के मारे दर दर की ठोकरें खाता रहा।और भयंकर विपदाओं में फँसकर बिल्कुल निर्वस्त्र होकर...नंगा होकर घुमाने लगा।
दुनियादारी भी बडी अजब और विचित्र होती है दोस्तों।
किसी की रक्षा भी जान हथेली पर लेकर भी की...तो भी ऐन वक्त आनेपर बडे बडे भी धोका देते है और बडे बडे भी धोका खाते है।
जीसके लिए जान हथेली पर ली थी वही जान लेने के लिए तुला होता है....ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे।
दुनियादारी बडी अजीब होती है।बडे बडे हस्तियों को भी ऐसी भयंकर दुनियादारी के कारण धोके खाने पडे है।
प्रारब्ध गती के अनुसार कोई नंगा साधु बनकर समाज में रह रहा है...तो...यह दुनिया... यह दुनियावाले उस साधु को भी स्वस्थ नहीं बैठने देगी।
उसी बेचारे को हँसेगी, उसी को तत्वज्ञान के डोस पिलाएगी,अगर वह बेचारा मौन होकर भी प्रारब्ध का भोग भोग रहा है अथवा बैराग्य धारण करके जी रहा है...तो भी दुनिया उसे ही...उस निष्पाप जीव को ही भला - बुरा कहेगी।उसको ही गाली देगी।
मगर उस नंगे को कोई थोडा सा कपडा देने के लिए और उसका बदन ढकने के लिए कोई आगे नहीं आयेगा।अथवा उसकी आस्थापूर्वक कोई परेशानीयां भी दूर करने की कोशिश नहीं करेगा। दूर बैठकर उसका ही उल्टा मजाक बनाएंगे।उस बेचारे का जीना हराम कर देंगे।
यही बडी विचित्र दुनियादारी है।बडे बडे महात्माओं को तथा सिध्दपुरूषों को भी ऐसी भयंकर विचित्र दुनियादारी ने कहीं का नहीं छोडा है।
मगर जीसका रखवाला खुद ईश्वर ही हो...उसका कौन बुरा कर सकता है ?
उस बेचारे का बुरा वक्त समाप्त होते ही,प्रारब्ध गती का फेरा समाप्त होते ही...
खुद ईश्वर ही...
नंगे को भी राजा बना सकता है।
बडा विचित्र खेल है इंन्सानों का...
इंन्सान की जाती का...
और बडा विचित्र खेल भी है
खुद ईश्वर का।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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