सभी को सूख ही चाहिए
सभी को सूख ही चाहिए !!!
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साथीयों,
आज का लेख का विषय थोडा हटके है।
सूख...
जी हाँ,सभी को सूख ही चाहिए।
दुखों से तुरंत मुक्ती और सुखों की तुरंत प्राप्ती।
इसिलिए हर मनुष्य प्राणी दिनरात अपार मेहनत करता है।
मगर नतीजा ?
दुख पिछे हटता ही नही।
और सूख नशीब में होता नही।
और फिर मन की उदासीनता अथवा आत्मग्लानी।
किसी को आर्थिक परेशानियों से मुक्ती चाहिए, तो किसी को बिमारीयों से।तो कोई व्यक्ती शत्रु पीडा से भयंकर त्रस्त है...और शत्रू पीडा से बचने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है।अनेक उपाय ढूंडता रहता है,शत्रुओं से बचने के लिए।
तो किसी के घर में विनावजह दिनरात झगडा होता रहता है...
और निरंतर झगडे की वजह से मानसिक परेशानियां...
आखिर बताएं तो किसे बताएं ?
रोने के लिए और दुखदर्द हलका करने के लिए भी,इस मायावी दुनिया में एक कंधा तक नही मिलता है।
तंत्र, मंत्र, यंत्र, बूवा,साधू,तांत्रिक, मांत्रिक जैसे अनेक उपायों द्वारा दुखों से मुक्ती और सूखों की प्राप्ती के लिए, लगभग हर मनुष्य प्राणी निरंतर प्रयास करता रहता है।
और किसी को दुख बताए बगैर ही अंदर ही अंदर घूटता रहता है।आखिर दुख व्यक्त करने के लिए भी तो योग्य जगह ही चाहिए ना ?
नही तो ?
सब अनर्थ और परेशानियों में और जादा बढोतरी।
और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की....
समाज में फैली हुई ...
दुष्ट नाम की जो प्रजाती है...यह प्रजाती भयंकर होती है।और हमारे दुखों पर प्रहार करने से ही ऐसे दुष्ट प्रजाती को निरंतर और भयंकर ,राक्षसी आनंद मिलता रहता है।
और ऐसी दुष्ट प्रजाती हमेशा हमारे दुखों की ही खोज में रहती है।और हम ऐसे भयंकर प्रजातियों से बचने का अथवा दूर भागने का प्रयास करते रहते है।
ऐसे उपद्रवी दुष्टों से सदा के लिए मुक्ती चाहते है।
सचमुच में हमारे दुखों में कौन सहायता कर सकता है भाईयों ?
लगभग ना के बराबर।
जब हम मुसिबतों में,दुखों में फँस जाते है...तब हम जिसे अपना समझते थे,वो भी पिडा देते है...हमें अंदर ही अंदर निरंतर रूलाते रहते है।अथवा जिसके लिए जान हथेली पर ली...वह भी मुसिबतों में दूर भागते है।
इसिलिए तो कहावत है...
सुख के सब साथी।
दूख में ना कोई।
मगर फिर भी साथीयों,
दुखी व्यक्ती अकेला ही सही
बडे हिम्मत से जीवन की लडाई लडता ही रहता है।
और अंदर से अगर खून के आँसु भी पी रहा है,तो भी दिखावे के लिए, ओठों पर झूटी हँसी रखकर जीता है।
क्योंकी दुनिया बडी जालिम है।
यहाँ अपना, हमारा एक ईश्वर के सिवाय कोई भी नही है।
मतलब की दुनिया।
मतलब की रिश्तेदारी।
मगर ऐसी भयंकर विपदाओं की स्थिती में बचने का भी उपाय है।
पक्का उपाय है।
ईश्वर के शरण में जाकर, सारा का सारा सुखदुःख ईश्वर के ही चरणों में समर्पित कर देना।
और लगातार ईश्वरी चिंतन में रहना,नामस्मरण, गुरूमंत्र का जाप करते रहना।
इससे होता यह है की,हमारा आत्मबल हजारो मात्रा में बढ जाता है।और कितनी भी भयंकर और बडी समस्या भी क्यों न हो,रोने के बजाए, चुनौतीयों के रूप में उसे स्विकारकर,उसपर विजय हासील की जाती है।
मेरा अनुभव है।
आपको भी ऐसा अनुभव लेने में कोई दिक्कत नही होगी।
चाहे कितनी भी भयंकर आर्थिक विपदाओं की घडी हो,कितनी भी भयंकर और बडी बडी बिमारीयां हो अथवा कितना भी भयंकर शक्तिशाली और दुष्ट हितशत्रू हो,
अथवा आर्थिक समस्या, अनेक बिमारीयां, बडे बडे अजगर जैसे हितशत्रू भी एकसाथ परेशान कर रहे हो,तो भी...
निश्चित रूप से,सौ प्रतिशत ,यकीन के साथ,
उसपर सौ प्रतिशत विजय ही मिलती है।
ईश्वरी चिंतन, नामस्मरण, मंत्र जाप,गुरूमंत्र यह ऐसे शक्तिशाली ब्रम्हास्त्र होते है की...
अनेक मुसिबतें भी सामने आकर पीडा देंगी...
तो भी...
उसीपर केवल और केवल विजय ही हासिल होती है।
मगर इसके लिए श्रध्दा, भक्ती, ईश्वर के प्रती अथांग प्रेम और चौबिसों घंटे प्रयास रत रहकर विजय हासिल करने की भयंकर जीद्द हमारे अंदर होनी चाहिए।
अखंड ईश्वरी चिंतन करके देखिए साथीयों,
आश्चर्यकारक परिणाम भी मिलेंगे।
अनेक भयंकर बडी बडी मुसिबतों पर विजय भी मिलेगी।
भयंकर जालिम शत्रुओं पर भी विजय मिलेगी।
जरूर मिलेगी।
मिलकर ही रहेगी।
और सारा जीवन ही आनंददायी, चैतन्यमय, हँसी खुशी से भरा हुवा ही होगा।
इसिलिए दोस्तों,
आज से और अभी से दुखों में रोना धोना बंद।
और बिनधास्त होकर हर समस्या को ईश्वर के चरणों में समर्पित करके बडा आनंदी जीवन जीने के लिए तैयार हो जावो।
तुम्हारा क्या था और तुम्हारा क्या गया ?
इसिलिए तुम रोते हो ?
ना तुम्हारा कुछ था,और ना ही तुम्हारा कुछ है।
सुख भी ईश्वर की देन और दूख भी ईश्वर की ही देन।
तो व्यर्थ का रोना क्यों ?
मस्त होकर, मस्ती से,आनंद से,बडे धूमधाम से,कलंदर बनकर जब हम जीवन आरंभ करते है...
तो सारे दुख दूर भाग जाते है...सदा के लिए...
और सूख ही सूख हासिल होते है।
जीवनभर के लिए।
आनंदाचे डोही आनंद तरंग।
मैंने तो अनेक जहरीले दुखों के सागर पार किए है...
और अनेक उंचाईयों को पार करके...
आज सद्गुरू कृपा से मस्त,आनंदी, स्वच्छंद जीने की उत्तुंग कला हासिल की है।
चाहे सुख हो या दुख
गरीबी हो या अमिरी
राजमहल हो या टूटीफूटी झोपड़ी
पंचपक्वान हो या दालरोटी
जहर हो या अमृत ...
मस्त,कलंदर बनकर जीने में ही जीवन की कुछ मजा है।
और यह आनंद ही कुछ और है।
मेरे सभी साथीयों,
आप सभी के जीवन में भी यह उच्च कोटि की आत्मानुभूति प्राप्त हो...
और आप सभी को दुखों से तुरंत मुक्ति मिलें और सारे सुखों की प्राप्ति हो...
ऐसी दयाघन ईश्वर चरणों पर विनम्र प्रार्थना।
सब का मंगल हो।
पशुपक्षीयों को अभय मिले।
गौहत्यारों को सजा हो।
सभी सजीव प्राणी सुखी हो।
पेड जंगलों से सृष्टी हरी भरी हो।
अखंड भारत बने।
प्रभु की धरती सुंदर बने।
धरती पर ईश्वर का कानून चलें।
सभी सुखों का भंडार तो हमारे अंदर ही भरा हुवा है।
गुरूकृपा से और ईश्वरी कृपा से यह भंडार अगर एक बार खुल गया....
तो जीवन में बहार ही बहार है।
सुख ही सुख है।
आप सभी का जीवन सुखमय हो।
आपकी सारी इच्छा - आकाक्षाएं ईश्वर पूरा करें।
आजीवन आनंद के सागर में आप सभी डोलते रहे।
हँसी खुशियों की निरंतर बरसात आपके जीवन में होती रहे।
जहर देनेवालों को भी ईश्वर सद्बुद्धी दे और उन्हे भी आनंदी जीवन की ओर ईश्वर ले जाएं।
दुष्टों की भी आत्मजागृती होकर वह भी ईश्वर स्वरूप बनें।
बाकी अगले लेख में।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन
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