आत्मीयता

 दूसरों का दुखदर्द देखकर,

जिसकी आत्मा तडप उठती है ,

उसे ही आत्मीयता कहते है !!!

( लेखांक : - २०२८ )


विनोदकुमार महाजन

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आत्मीयता !

दूसरों के प्रती उच्च कोटी का प्रेमभाव !

जिसकी आत्मीयता सदैव जागृत होती है,वह दूसरों का दुखदर्द समझकर, उसको यथासंभव आधार देने की,मदत करने की कोशिश करता है ! फिर वह आधार चाहे मानसिक हो,शाब्दिक हो अथवा मुमकीन है तो आर्थिक भी हो !


आधार !

बहुत महत्वपूर्ण शब्द है !

विशेषतः मुसिबतों की भयंकर घडी में !

आदमी जब प्रारब्ध गती के अनुसार भयंकर विचित्र परिस्तीयों में फँस जाता है,तब ऐसी विपदाओं कि स्थिती में उसे कोई,

 " दो शब्दों का अगर आधार " भी देता है,तो उसका मानसिक बल बढता है और उसे संघर्ष करने में सहाय्यक होता है !


" चिंता मत कर,सबकुछ ठीक होगा ! ईश्वर सब ठीक करेगा ! "


यह शब्द किसीके मुसिबतों में कोई बोलता है,तो उस व्यक्ती का आत्मबल बढता है !


मगर ऐसी भयावह स्थिती में साधारणतः होता उल्टा ही !

मुसिबतों की घडी में सब दूर भाग जाते है,और दूरसे तमाशा देखते है !अथवा समाज द्वारा शब्दों के बाण सहने पडते है !


जिनको उनकी घोर मुसिबतों कि घडी में मानसिक आधार दिया वह भी आधार देने के बजाए दूरसे तमाशा देखते रहते है !


【 हिंदू धर्म के पिछे हटने का, पतन का यही सबसे महत्वपूर्ण कारण है !

दूसरों के प्रती विनावजह की इर्षा,जलन,द्वेष, मत्सर ,विशेषतः जो धर्म कार्य में खुद को तन - मन - धन से,संपूर्णतः झोंक देते है....

उनके साथ...

हमारे ही धर्म के लोग कैसा आचरण करते है ?


सावरकर जी के प्रती हमारे समाज के कितने प्रतिशत लोगों में सहयोग की भावना थी ?

यह विशेष संशोधन का विषय है !


सौ के सौ प्रतिशत हिंदू समाज सावरकर जी के पिछे खडा होता तो देश की आजकी स्थिती विदारक नही होती !


सावरकर जी की हिंदुराष्ट्र की सत्य संकल्पना कितने प्रतिशत हिंदुओं ने स्विकार की ? कितने प्रतिशत हिंदुओं ने सावरकर जी का साथ दिया ?

साथ देने के बजाए कितने प्रतिशत हिंदुओं ने सावरकर जी का विरोध किया ?

और कितने प्रतिशत हिंदुओं ने आत्मघात  भी कर लिया ?

जिसके जहरीले परिणाम आज हिंदू भुगत रहा है !


और यह आत्मघात की कु - रीती हमारे समाज में कितने दिनों तक चलती रहेगी ?

धर्मावलंबी समाज बनाने के लिए अगर ईश्वर भी स्वर्ग से आयेगा...

तो कितने प्रतिशत हमारे ही हिंदू भाई उसका स्विकार करेंगे ?

या ईश्वर को भी वापिस स्वर्ग को उल्टा भगाएंगे ?

सावरकर जी जैसे महात्मा को भी यहाँ आजादी के पहले भी और आजादी के बाद भी हतोत्साहीत किया गया....

तो यहाँ की आत्मघाती समाज रचना पर कौन और कैसे भरौसा करेगा ?

और यह बात भी भयंकर चिंताजनक है !


तो आखिर सावरकर जी का साथ भी सभी हिंदुओं ने क्यों नही दिया ?

उल्टा हरबार सावरकर जी का बारबार दमन हमारे ही समाज द्वारा जादा मात्रा में किया गया !

और षड्यंत्रकारी,देशविघातक शक्तियों के पुतले इस देश में खडे हो गये !


ऐसा क्यों ?


ख्रिश्चन अथवा मुस्लिम ऐसा नही करते है !

अपने धर्मावलंबीयों को वो मुसिबतों की घडी में हर प्रकार की सहायता करते है !


इसिलिए उनका वैश्विक स्तरपर धर्म बढता गया ! और हमारा धर्म घटता गया !


धर्म के प्रती आत्मीयता का अभाव ! और उदासीनता !


हमारे ही लोग हमारे ही महापुरूषों पर कुल्हाडी मारते रहते है !

आखिर ऐसा क्यों ?

हमारे ही समाज की सत्य के प्रती,आत्मीयता न होकर,

असत्य आचरण करनेवालों के लिए हमारी आत्मीयता क्यों ?


आज भी यह सिलसिला जारी है !

सत्यवादीयों की घोर उपेक्षा और असत्यवादीयों को झूला !


बाकी धर्मावलंबी उनके धर्म के प्रती सदैव जागरूक रहते है,और हमारे समाज के लोग धर्म के प्रती हमेशा उदासीन रहते है !

यही महत्वपूर्ण फर्क है !


और यह वास्तव सभी को स्विकारना ही होगा ! और इसपर हल ढूंडना ही होगा ! 】


खैर !

आज का लेख का यह महत्वपूर्ण विषय नही है !

आत्मीयता....!!!

यही आज के लेख का विषय है !


जिसकी आत्मीयता ही मर गई,वह हमारे प्रती क्या आत्मीयता दिखायेंगे ? और उन्हें आत्मीयता दिखाने से भी क्या फायदा ?

और ऐसे व्यक्तियों को दिव्य प्रेम की परीभाषा भी क्या समझेगी ?


विषय मेरा हो या आप सभी का !सभी के लिए आत्मीयता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है !


और आत्मीयता में ही दिव्य प्रेम की आत्मानुभूती भी होती है !

और ईश्वर भी हमेशा दिव्य प्रेम का सदैव भूका होता है !


मंदिर में जाकर दो रूपये चढाने से ईश्वर प्रसन्न नही होता है !

उसे तो संपूर्ण समर्पित भाव से ह्रदय का फूल समर्पित करेंगे, तभी ईश्वर प्रसन्न होता है !

और समर्पण भाव के लिए भी आत्मीयता... ईश्वर के प्रती समर्पण भाव, उच्च कोटी का प्रेमभाव ही महत्वपूर्ण होता है !


खुद की कमाई से मंदिर में दान करना, अथवा गरीबों की सहयता करना,अथवा दूसरों के मुसिबतों में उसको आधार देने से हमारा आत्मबल जरूर बढता है !यह भी आत्मीयता का ही एक भाग है !

इसिलिए दिया हुवा दान कभी व्यर्थ नही जाता है !


मगर मंदिर में जाकर कुछ रूपया दान करेंगे और ईश्वर त्वरीत प्रसन्न होकर आशीर्वाद देकर, तुरंत करोडपती बनायेगा ...

यह धारणा गलत है !

और यह आत्मियता नही बल्की स्वार्थ भाव होता है !


आत्मीयता से हमारे अंदर प्रेमभाव उत्पन्न होता है,और यही प्रेमभाव हमें दिव्यप्रेम की ओर ले जाता है ! 

और दिव्य प्रेमभाव ही हमें ईश्वर तक ले जाता है !

इसके लिए संपूर्ण समर्पण और इसके लिए आत्मियता महत्वपूर्ण होती है !


आत्मियता सभी सजीवों में होती है !पशुपक्षीयों को भी आत्मीयता, हमारा सच्चा प्रेम समझता है !

पशुपक्षीयों को प्रेम, आत्मीयता दिखायेंगे तो...पशुपक्षी भी हमारे साथ बातें करते है,उनका सुखदुःख हमें बताते है,हमारे साथ बोलते है यह दिव्य अनुभूती हमें जरूर मिलेगी !


पशुपक्षीयों पर पवित्र,निरपेक्ष, सच्चा प्रेम करेंगे तो पशुपक्षी भी हमारे साथ उतना ही पवित्र प्रेम करते है,इसकी अनुभूती भी हमें मिलेगी !

मगर इसके लिए भी उनके प्रती आत्मीयता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है !


आत्मीयता का नाटक करके जाल बिछाना...

यह बात भी पशुपक्षी जानते है !इसिलिए मनुष्यों पर पशुपक्षी कभी भरौसा नही करते है !

बल्की मनुष्यों से सदैव दूर ही भागते रहते है !


पशुपक्षीयों पर जो प्रेम करता है,ईश्वर जरूर उसकी सहायता करता है ! और ऐसे व्यक्ती ईश्वर से भी तुरंत नाता जोड सकते है !


पेडपौधे भी हमारे साथ बातें करते है,उनका सुखदुःख बताते है ! यह आत्मानुभूती तथा आत्मानंद का महत्वपूर्ण विषय है !

पशुपक्षीयों को,पेडपौधों को भी सुह्रदयी इंन्सानों को देखने से अत्यानंद होता है ! और क्रूर, हत्यारे, ह्रदयशून्य इंन्सानों को देखकर, उनको भी दुख होता है !


आखिर आत्मतत्त्व उन सभी सजीवों में भी है ना !

देह अलग,मगर ?

सभी का आत्मा एकसमान !

और सभी सजीव एक ही ईश्वर की सब संतान !


इसिलिए सभी के साथ आत्मीयता के नजरों से देखेंगे,

तो हमें भी आत्मीयता ही मिलेगी !


मगर आसुरीक सिध्दांत वालों का सूत्र भयंकर होता है ! उनको आत्मीयता, आत्मानुभूती, दिव्य प्रेम, दिव्यत्व इससे कुछ लेनादेना नही होता है !

इसिलिए ऐसे लोगों से सदैव दूरी बनाये रखना,अथवा सदा के लिए, ऐसे आसुरीक सिध्दांत वाले लोगों से दूर चले जाना ही हमारे लिए हितकारी होता है !


स्वार्थी, अहंकारी लोगों से आत्मीयता की अपेक्षा करना भी गलत है ! और ऐसे लोगों से प्रेम, दिव्यत्व ऐसी अपेक्षा करना भी गलत है !


इसिलिए आत्मीयता केवल उन्हीं को दिखाईये,जो हमारे सद्गुणों की कदर करता है,हमारे आत्मियता के बदलें में हमें भी आत्मीयता दिखाता है , हमपर सच्चा, पवित्र, निष्पाप, निष्कपट,निरपेक्ष प्रेम करता है !


सदैव सज्जनों से नफरत करनेवाले, क्या खाक आत्मीयता दिखायेंगे ?


आत्मीयता स्नेह भाव बढाती है !

और नफरत दूरीयाँ बढाती है !


आपको क्या चाहिए ?

आत्मीयता या नफरत ?

यह आपको तय करना है !


हरी ओम्

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