राक्षसों का सर्वनाश

 जो दूसरों का जीना

निरंतर, नितदिन हराम

कर देते है,

उसे " राक्षस " कहते है !

उन्मत्त होकर हमेशा उन्माद

फैलाना यही इनके जीवन का

उद्दिष्ट होता है !

चौबिसों घंटे हाहाःकार से

आतंक फैलाकर सभी का

जीना मुश्कील कर देना,

इसी में ही इनको,

" राक्षसी " आनंद मिलता

रहता है !


और ऐसे महाभयानक राक्षस

हर युग में निरंतर पैदा

होते रहते है !


सृष्टि संतुलन के लिए,

मानवता की रक्षा के लिए,

संपूर्ण पृथ्वी से ऐसे राक्षसों का

सदा के लिए, संपूर्ण सर्वनाश

यही एकमेव तथा अंतिम उत्तर होता है !


क्या आज भी संपूर्ण पृथ्वी पर

" राक्षसी हैवानों का "

हाहाःकार मचा हुवा है ?

क्या इनका संपूर्ण धरती से

" संपूर्ण सर्वनाश " यही एकमेव

उत्तर बचा है ???


तो ???

संपूर्ण विश्व के सत्यवादीयों को,

मानवताप्रेमीयों को,

ईश्वरी सिध्दांत माननेवालों को,

ऐसे महाभयावह,राक्षसी

उन्मादियों से बचने के लिए,

एक होकर इनका संपूर्ण सर्वनाश करना ही होगा !


मगर कौनसे राक्षसों के खिलाफ

हमारी " वैश्विक जंग " जारी है ?

यह भी सबसे पहले तय

करना होगा !

और " यशस्वी रणनीती " 

बनाकर यह युध्द हमें

जीतना ही होगा !


विश्व मानव की खुशहाली,

समृद्धि तथा शांति के लिए,

ऐसे सख्त और कठोर निर्णय

सभी को लेने ही पडेंगे !


और " यह दिन भी दूर नही "

बल्की " काफी नजदीक " है !

जिसके द्वारा मानवता को

लगा हुवा " भयंकर ग्रहण "

सदा के लिए " समाप्त "

हो जायेगा !


क्या संपूर्ण विश्व तेज गती से

उसी दिशा की ओर बढ रहा है ?

क्या " वैश्विक ध्रुवीकरण "

आरंभ हो चुका है ?


" क्या ईश्वर भी " संपूर्ण 

सत्यवादीयों को उसी दिशा में

ले जा रहा है ?


क्या " संपूर्ण पृथ्वी से " 

" सभी उन्मादियों का सर्वनाश " 

नजदीक है ?


क्या " प्रलय नजदीक " है ?

या तीसरा वैश्विक महायुद्ध

नजदीक है ?

या फिर,

रामायण, महाभारत के

बाद का तीसरा धर्म युध्द

" कलंकायन " नजदीक है ?


अगर हाँ तो ?

कौन है, " गनमैन ? "

जो ठंडे दिमाग से

सारे आसुरों का और

आसुर साम्राज्य का

सदा के लिए सर्वनाश

कर देगा ?


और कहाँ है ?

और अब क्या.....

संपूर्ण पृथ्वी पर , " आग्नेयास्त्र "

चलेगा ???


शायद यह तो तय है !


" कब ??? "


हरी ओम्

जय जय श्रीराम

हर हर महादेव

----------------------------------

विनोदकुमार महाजन

( लेखांक : - २०१७ )

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस