हिंदू हिंदुत्व से दूर गया है ?
हिंदू हिंदुत्व से सचमुच में दूर गया है... ???
( ले : - २०३० )
विनोदकुमार महाजन
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मुस्लिम समाज, लगभग सभी व्यक्ती, अबाल वृद्ध, स्त्री पुरूष,
सहीत...अपने धर्मों के प्रती चौबीसों घंटे जागरूक रहता है और अपने धर्म पर जी जान से प्रेम करता है। धर्म के लिए मर मिटने को तैयार रहता है।
यही स्थिती लगभग ख्रिश्चन और यहुदियों की।और लगभग सभी धर्मीयों की भी।
संपूर्ण जागतीक विश्लेषण भी इसमें लगभग सत्यता दिखाता है।और यह वास्तव सभी को स्विकारना ही होगा।
लगभग ९० % इसमें तथ्यांश भी है।
मगर हिंदू धर्म अनुयायीयों की क्या स्थिती है ?
१ ) धर्म के प्रती उदासीनता ?
२ ) झूटे समाजवाद पर जादा झुकाव और लगाव भी ?
३ ) अपने देवीदेवताओं के प्रती उदासीनता ?
४ ) अनेक सदियों से अनन्वित अत्याचार सहने के बाद भी खून में बसी हुई अनावश्यक और विनाशकारी शांती ?
५ ) अनेक जातीपाती में बिखरकर आपसी झगडे ,द्वेष, मत्सर ?
६ )हर महापुरूषों को,साधू संतों का भी जातीपाती में बँटवारा ?
७ ) अनेक सालों की मानसिक गुलामी की आदत ?
८ ) स्वाभीमानशून्यता और लाचारी ?
९ ) व्यर्थ का घमंड और अहंकार ?
१० ) फ्री का लालच ?
११ ) अपने ही देवीदेवताओं का,धर्म का मजाक उडाना ?
१२ ) दूसरों को,( विशेषता हिंदू हितों पर विचार करनेवाले को ) निचा दिखाने की वृत्ति ?
१३ ) सदा की बेफिकिरी ?
१४ ) साधुसंतों के प्रती गलत धारणा ?
१५ ) हिंदू धर्म का प्रचार, प्रसार करनेवाले सामाजिक कार्यकर्तांओं के प्रती गलत धारणा,अविश्वास और कमाल की उदासीनता ?
क्या हमारे समाज में लगभग यही उपरी चित्र दिखाई देता है ?
अनेक आक्रमणकारीयों ने अभेद्य हिंदू धर्म को तोडने के लिए षडयंत्र रचाया ? और उसी षडयंत्र में आक्रमणकारी यशस्वी हो गये ?
सक्षम नेतृत्व और आज धर्म पर हो रहे अत्याधिक अत्याचार के कारण वर्तमान स्थिती में हमारा समाज जाग भी रहा है।और वैश्विक स्तर पर संगठीत भी हो रहा है।
मगर कितने प्रतिशत ?
राजकीय मर्यादाओं के कारण कुछ राजनितीज्ञों को खुलकर हिंदू हितों के बारें में बोलना असंभव होता है।
हिंदू हितों के लिए
हिंदुओं को तुरंत न्याय दिलाने के लिए, तथा बहुसंख्यक हिंदू होकर भी,देश के अनेक हिंदुविरोधी अत्याचारी कानून हटाने के लिए,
आज एक " हिंदू करीश्माई "
नेता की सख्त जरूरत है।जो केवल और केवल हिंदू हितों की ही बात कर सकें।
" पाँवरफूल हिंदू लीडर "
जो,
सभी हिंदू संगठनों को,सभी जातीयों को एक धागे में जोडकर, हिंदुओं का आवाज बुलंद करने का कार्य तेजीसे कर सके।
और आज इसकी सख्त जरूरत है।
कौन बनेगा ऐसा सामाजिक व्यक्ती, जो सभी हिंदुओं को एक कर सके और सभी को साथ लेकर आगे बढ सके ?और एक जबरदस्त शक्ती निर्माण कर सके ?
प्रभावी रणनीती, प्रभावी वक्तृत्व, प्रभावी व्यक्तीमत्व द्वारा,
बहुसंख्यक हिंदू समाज को एक करके,
हिंदुराष्ट्र निर्माण कार्य को गती दे सकें ?
जो ... हिंदुओं की मरी हुई आत्मचेतना जगा सकेगा ?
भेदभाव भूलकर सभी हिंदू समाज भगवे के निचे स्वाभिमान से खडा कर सकेगा ? और एक व्यापक जनआंदोलन खडा कर सकेगा ?
आज कितनी गती से और कितने प्रतिशत समाज में जागृती आ रही है ?
परिणाम तो दिखाई दे रहे है,मगर राष्ट्रद्रोहीयों की
" गहरी चाल " को संपूर्ण काट दे सकें और मात दे सकें,ऐसी शक्ती कब खडी होगी ?
अपेक्षित परिणाम और गती प्राप्त करने के लिए कौनसी प्रभावी उपाययोजना करनी पडेगी ?
संपूर्ण देश में और विश्व स्तर पर भी क्रांति की लहर तेज गती से लाकर अपेक्षित परिणाम साध्य करने के लिए, कौनसी निती अपनानी पडेगी ?
लेख जरूर लंबा हो सकता है।मगर सत्य का स्विकार करके,इसका हल निकालने के लिए, हर एक राष्ट्र प्रेमीयों को इस विषय पर चिंतन,मनन,वैचारिक मंथन करना अत्यावश्यक है।
तभी चारों ओर से तेजीसे फैलता हुवा धर्म संकट टलेगा और धर्म पर हो रहे आघात और अत्याचार रूकेंगे ?
सबसे पहले यह देखते है की,हिंदू समाज अपने ही धर्म के प्रती इतना उदासीन क्यों है ?
हिंदू समाज सचमुच में जादा मात्रा में हिंदूत्व से दूर है ?
कितने प्रतिशत हिंदू समाज जागृत है और धर्म के लिए सर्वस्व समर्पण को तैयार है ?
कितने प्रतिशत ऐसे राष्ट्र हित के विचार पढकर कार्यप्रवण होकर, कार्य को गती देकर,समाज को संगठीत बनाने के लिए
तन - मन - धन से समर्पित भाव से प्रयास करेंगे ?
अनेक सालों की मानसिक गुलामी के कारण हिंदुओं की कमर ही तोड दी है।
हिंदुओं के सत्व और तत्त्व पर ही गहराई से,अनेक सालों तक आघात किए गये है।
उनके श्रध्दास्थानों पर अनेक सालों से हमले करके,हिंदुओं का आत्मविश्वास समाप्त करने की निती अनेक अत्याचारी आक्रमणकारीयों द्वारा अपनाई गई है।
और ऐसे अनेक कारणों की वजह से,धर्म के प्रती विनाशकारी उदासीनता फैल गई है।
और धर्म के लिए जान नौछावर करनेवाले राजे संभाजी, गुरूगोविंद सिंह जी,बंदा बैरागी जैसे अनेक शूरविरों को भी भूल गये है ?
आक्रमणकारीयों के अत्यधिक अत्याचार सहते सहते समाज की इतनी भयावह स्थिती बन गई है की,आज भी समाज उस स्थिती से बाहर आने की मानसिकता में नही है।
इसका परिणाम यह हो रहा है की,आज भी अनेक राज्यों में हिंदू धर्म पर और संस्कृती पर अत्याचार करनेवाले राजकीय पार्टीयों को ही,हिंदू ही अनेक चुनावों में जीता रहा है,और आत्मघात कर रहा है।
संस्कृती पर हमले होने के बावजूद भी,देवीदेवताओं को बदनाम करने के बावजूद भी,
विनाशकारी.....
" भाईचारा " ,
निभा रहा है।वह भी अनावश्यक गर्व के साथ।
आखिर ऐसा क्यों ?
कहाँ है हमारा आत्मतेज ?
कहाँ है हमारा स्वाभिमान ?
और ऐसे समाज को जगाना या धर्म के प्रती सकारात्मक बनाना या धर्मावलंबी बनाना,
इसके लिए कौनसी सक्रिय निती अपनानी पडेगी ?
किसी भी हालत में हमें जीतना ही है,यह धारणा लेकर, और
इसके लिए कौनसी तगडी रणनीती बनानी पडेगी ?
भयंकर बुरी स्थिती में फँसे हुए अथवा विनाशकारी चक्रव्यूह में फँसे हुए समाज को किस प्रकार से बाहर निकालना होगा ?
मरे हुए मन के लोगों को कौनसी नवसंजीवनी की बूटी देनी होगी ?
यह भी तय होना जरूरी है।
हर व्यक्ती, हर गाँव, गली,शहर को जगाने के लिए, हर एक व्यक्ती की चेतना जगाने के लिए और उसे अपेक्षित परिणामों में प्रवाहीत करने के लिए, कौनसी तगडी निती अपनानी होगी ?
समाज जागृती अभियान को गती देने के लिए, कार्यकर्ताओं की फौज किस प्रकार से निर्माण करनी होगी ?
और कार्यकर्तांओं के फौज को किस प्रकार का
" प्रशिक्षण ",
देने की अत्यावश्यकता है ?
इसपर मंथन होकर,
कार्य विस्तार के लिए गती देनी पडेगी।
आज बहुसंख्यक हिंदू समाज,
" रोजी - रोटी " कमाने के चक्कर में अथवा धनलालचा अथवा सुखी जीवन की गलत संकल्पनाओं में ऐसा खोया हुवा है की,की धर्म के प्रती विचार करने के लिए उसके पास समय ही नही है।मंदिर जाने के लिए भी समय नही है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है की,पाश्चात्य संस्कृती का अंधानुकरण इतना भयंकर तेजीसे बढ रहा है की,हमारी आदर्श संस्कृती ही हम भूलते जा रहे है।
बडे बडे शहरों से लेकर देहात तक,
" बर्थडे पार्टीयों " का आयोजन धूमधाम से हो रहा है।और दीपक जलाकर, औक्षण करके,आयु:मर्यादा बढाने की कामना करने की जगह पर दीपक बुझाये जा रहे है।वह भी बडे आनंद से।
केक काटे जा रहे है।
❓⁉❓⁉❓⁉
हर घर का,हर संध्या समय का,
" शुभंकरोती " , तो लगभग डूबता ही जा रहा है।
हमारे आदर्श संस्कृती से हम कितने दूर निकल चुके है ?
और तेजीसे विकृत समाज निर्मिती की ओर तेजीसे बढ रहे है ?
बच्चों को दिये जानेवाले, बचपन के आदर्श संस्कार ही समाप्त होते जा रहे है।
तो....?
आदर्श राजा शिवाजी जैसा आदर्श धर्म योध्दा निर्माण करने की अपेक्षा ही समाप्त होती जा रही है ?
यह सब बदलना होगा।
तेज गती से बदलना होगा।
इसके लिए प्रशिक्षित कार्यकर्तांओं की फौज निर्माण करनी पडेगी।
तेज गतीसे।
अभी जो " कार्यकर्तांओं की फौज " , प्रयास कर रही है...
अथवा दिनरात मेहनत कर रही है,मेरे हिसाब से यह प्रयास लगभग ...
ना के....बराबर है।
इसिलिए अपेक्षित परिणामों में देरी हो रही है,अथवा योग्य परिणाम गती से नही मिल रहे है।
संपूर्ण देश में और संपूर्ण विश्व में " क्रांती की तेज लहर " लाकर,अपेक्षित परिणाम लाने के लिए, वायुगती पकडनी अत्यावश्यक है।
तभी एक सामर्थ्यशाली शक्ती के रूप में ,
" सामुहिक सामर्थ्यशाली समाज निर्माण होगा। " ,
और एक शक्ती उभरकर आयेगी, और अपेक्षित परिणामों की ओर जायेगी।
" क्विक एक्शन फोर्स " द्वारा हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का कानूनी तौर पर और सशक्त कानून बनाकर, तुरंत निपटारा किया जायेगा।
इतना तो निश्चित है की मृतप्राय समाज को आज नवसंजीवनी की नितांत आवश्यकता है।
अंदर बाहर से धर्म संकट गहरा है।धर्म संकट पर विजय हासिल करने के लिए, हर जगहों पर,
फिरसे " तक्षशिला,नालंदा "
खडे करने पडेंगे।
देशविदेशों में भी।
और भी अनेक विषय है,अनेक मुद्दे भी है,जिसपर मैं विस्तृत विवेचन करना चाहता हुं।मगर समय की मर्यादाओं के कारण और लेखन सीमा के कारण, लेखन को यही विराम देता हुं।
शेष अगले लेखों में लिखने का प्रयास करूंगा।
जाते जाते एक मनोगत व्यक्त करता हुं,
मेरे लेख अनेक देशों में,अनेक मान्यवर, महात्मा पढते है।यह मेरा सौभाग्य भी है।
उसमें से कोई महात्मा मुझे अगर,
" वैश्विक क्रांति की लहर " निर्माण करने के लिए यथायोग्य सहयोग करना चाहते है तो कृपया मुझसे संपर्क करें।
अगर मुझे ,
" अपेक्षित साधनों की " ,
पूर्ती होगी, अथवा किसी महात्मा द्वारा तुरंत की जायेगी, तो निश्चित रूप से मैं वैश्विक क्रांती की लहर लाकर,सत्य की जीत करने में...
" सौ प्रतिशत सक्षम रहुंगा। "
आगे ईश्वर की इच्छा।
" सत्य की जीत हो।
सत्य सनातन की जय हो।
हिंदुत्व की आवाज बुलंद हो।
विश्व विजेता हिंदू धर्म हो।
धरती पर ईश्वरी राज्य की संकल्पना पूरी हो। "
हर हर महादेव।
हरी ओम्
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【 सामाजीक चेतना जगावो अभियान को बुलंद करो 】
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