स्थितप्रज्ञ

 आपकी कोई निंदा करें या प्रशंसा...

स्थितप्रज्ञ बनकर दिव्य मंजील की ओर हर पल,हर दिन,हर समय आगे आगे बढते ही रहना चाहिए।

क्योंकि निंदा और प्रशंसा दोनों रूकावटें है।

जिसे पार करके आगे निकलना चाहिए।

हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

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