अपयश का जहर

 सबसे महाभयानक होता है....

अपयश का जहर !!!

लेखांक : - २०२७


विनोदकुमार महाजन

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सबसे महाभयानक अपयश का जहर होता है साहब !

हर क्षेत्र में यश मिलना इतना आसान नही होता है !

बहुत पापड बेलने पडते है !

अनेक चुनौतीयों का सामना करना पडता है !

अनेक मुश्कीलें पार करनी पडती है !

प्रारब्ध, संचित को भी हराना पडता है !

अनेक मुकाम,अनेक डगर पार करने पडते है !

अनेक विपदाओं का आपदाओं का सामना करना पडता है !

बारबार अपयश,अपमान, मनस्ताप, मानहानी, आत्मक्लेश का सामना करना पडता है !

अनेक आर्थिक मुसिबतें झेलनी पडती है !

बहुत जालीम जहर हजम करने पडते है !

जहर के अनेक सागर पार करने पडते है !

बारबार खून के आँसू भी पिने पडते है !

स्वकीय, समाज का भी भयंकर अवरोध सहना पडता है !

अनेक रूकावटें पार करनी पडती है !


भयंकर तप भी करना पडता है !


ईश्वर भी भयंकर कठोर अग्नीपरीक्षाएं,सत्वपरीक्षाएं लेता है !

नशीब भी भयंकर परीक्षाएं लेता है !

नियती भी बारबार रूलाती है !


तभी जाकर कोई,

लाखों में एखाद महात्मा दिव्य मंजील तक,ध्येय तक,कार्यसफलता तक पहुंच जाता है !!!


सावरकर, सुभाषबाबू जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?

राजे शिवबा, राजे संभाजी जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?

महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?

गुरूगोविंद सिंह,राणी लक्ष्मीबाई जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?

श्यामाप्रसाद मुखर्जी, करपात्री महाराज जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?


याद करों सभी के भयंकर दिन और हजारों चुनौतीयों को !


अनेक महापुरुष, सिध्दपुरूषों ने

अनेक साधुसंतों ने,महंतों ने,

अनेक क्रांतिकारी, समाजसुधारकों ने....

बारबार कितने भयंकर दुखदर्द झेलें ?


और कितने के नशीब में....

अपयश को पार करके

यश हासिल हुवा ?

कितने अपने मंजील तक पहुंचे ?


इसीलिए साथींयों,

हिंदुराष्ट्र निर्माण,

अखंड भारत,

अथवा,

हिदुमय विश्व ,

के निर्माण के लिए अखंड प्रयासरत रहनेवालों को कितनी भयंकर चुनौतीयों का सामना करना पडेगा ?


मूगल, अंग्रेज,काले अंग्रेजों की मानसिक गुलामी करने की आदत सी लगने वाले,निद्रीस्त समाज को,हिलाहिलाकर जगाने से....

समाज की ...

" चेतना जगाव अभियान " से,

सचमुच में अंतीम मंजील मिलेगी ?

या फिर,

अपयश को समाप्त करके,

यशप्राप्ती के लिए,

साक्षात ईश्वरी वरदान ही प्राप्त करना पडेगा ?


संकल्प से सिध्दीयों तक पहुंचने के लिए....

क्या करना पडेगा ?


और हम सभी सत्यप्रेमी,ईश्वर प्रेमी,मानवता प्रेमी,

विश्वमानव को,

हम सभी पुरूषार्थी यों को...

क्या करना पडेगा ?


हम सभी हमारी दिव्य मंजील तक पहुंचकर रहेंगे ?


जी हाँ,

हम सभी हमारी दिव्य मंजील तक पहुंचकर ही रहेंगे !

यश हासिल करके ही रहेंगे !


क्यों ???


क्योंकी ईश्वर भी यही चाहता होगा !

यूग भी बदल रहा है !

समय भी करवट बदल रहा है !


हर क्षेत्र में वैश्विक उथल पुथल आरंभ हो गई है !


तो...???

यश पक्का है !

सौ प्रतिशत !


इसीलिए साथीयों,

चलो दिव्य मंजील की ओर !

बिना थके,बिना हारे....

चलो ध्येयपूर्ती की ओर !


अपयश का भयंकर जालीम जहर पार करके,

चलो....

भव्यदिव्य यशस्वीता की ओर !

समय हमारा इंतजार कर रहा है !


हरी ओम्

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