पत्थरदिल हिंदु

 पत्थरदिल हिंदु ! ! !

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भाईयों,

आज के लेख में एक जबरदस्त वास्तव लिख रहा हुं।

हो सके तो पूरा पढना,हो सके तो चिंतन - मनन करना।


आज का विषय है : -

पत्थरदिल हिंदु !


विषय पढकर चौंकिये मत।

क्योंकी विषय की गहराई वास्तव है।


सोचो,

हिंदुओं का विरोध करनेवाला,

जादा मात्रा में हिंदु।

सावरकरकरजी के सिध्दातों को विरोध करनेवाला,

जादा मात्रा में हिंदु।

आजादी से पहले 

और आजादी के बाद भी। सावरकरजी के उच्च विचारों को उपेक्षित रखनेवाला भी,

जादा मात्रा में हिंदु।


जादा मात्रा में हिंदु।


राजे शिवाजी के,

हिंदवी स्वराज्य में बाधा उत्पन्न करनेवाला,

जादा मात्रा में हिंदु।


और सोचो,

राष्ट्र को खंडित करनेवाले,


लाठीबाबा ( ❓ ) के पुतले खडे करके,उनकी पूजा करनेवाला भी ,

जादा मात्रा में हिंदु ।


समझे कुछ ? या अभी भी अनाडी ही है ?


अब विस्तार से।

देश तो है अनेक देवीदेवताओं का,महापुरूषों का,अवतारी पुरूषों का,ऋषीमुनियों का।


अनेक अद्भुत धर्म ग्रंथों का,शास्त्रों का।


फिर भी इतनी भयंकर धर्म ग्लानी क्यों ?


अनेक मतभेद - मनभेद - मत - मतांतर में बंटे हुए हम हिंदु।

जातीपाती में बंटे हुए और सदैव आपसी कलह ,जातीपाती में लडझगडकर खुद के ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारनेवाले भी हम हिंदु ही है।


अनेक आध्यात्मिक, सामाजिक, राजकीय संगठनों से जुडकर, विनावजह का वाद विवाद उत्पन्न करनेवाले, आपस में लडनेवाले भी हम हिंदु ही।


और रोजीरोटी के लिए ही सोचने वाले,धन वैभव - नौकरी चाकरी के ही बारे में सोचनेवाले,धर्म के प्रती उदासीन रहकर हमारे महापुरुषों के दोष निकालनेवाले

और उसपर भी चर्वीत चर्चा करके,उनकी हँसी मजाक उडाने वाले भी हम ही है।


राजे शिवाजी, स्वामी विवेकानंद, सुभाषचंद्र बोस, सावरकर जैसे अनेक विचारवंत, समाजसुधारक, क्रांतिकारी,

आये और चले गये।


समाज को और समाज मन को जबरदस्त तरीकों से हिलाते रहे।

समाज का आत्मतेज, आत्मसंम्मान बढाते रहे।समाज को नई दिशा देकर,समाज को नीतदन नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए,लगातार कोशिश करते रहे।


मगर उनके अंतरात्मा की आवाज कितने लोगों तक गई ?

कितने लोगों ने स्विकार की ?

कितने लोगों ने उसी दिशा में प्रयत्न किये ?


या फिर,

पत्थर दिल बनकर,

रोजी रोटी में ही अटककर,

धन लालच में फंसकर,

आपस में लड झगडकर,


खुद का,

संस्कृति का,

आत्मसंम्मान का ही नाश करते रहे ?


आज भी राक्षसी तत्व, 

ईश्वरी सिध्दातों पर प्रहार करने के लिए ...नितदिन... दिनरात... तुले हुए है,दिनरात इसके लिए चारों तरफ से कार्य कर रहे है,जमीन के निचे से भयंकर षड्यंत्र बना रहे है ।


हमारे ही महापुरुषों पर,देवीदेवताओं पर,संस्कृति पर आघात कर रहे है।


और हम ?

पत्थरदिल बनकर सोये हुए है।


" उनके खिलाफ " ,( ❓ )

अगर कोई बोलता है तो -

पूरा देश जलाते है।


और हम ?

देवीदेवताओं पर

" उन्होंने " ,( ❓ )

कितने भी प्रहार किए,आघात किए,


तो भी हम,...

पत्थरदिल बनकर,

पैसा कमाने के चक्कर में लग जाते है।आपस में लडते झगडते है।और शक्तीहीन बनते है।

और यही हमारा आत्मसंम्मान समझते है।


अरे बाबांनो,

इसी पत्थरदिल की वजह से,

इसी ठंड और षंढ

मानसिकता की वजह से,


गया पाकिस्तान हाथ से।

गया आफगानिस्तान हाथ से।

गया बांग्लादेश हाथ से।

गया भूतान,नेपाल, मँनमार,श्रीलंका।


और देश के अंदर भी हम आज,अनेक भागों में ,

अल्पसंख्यक बनकर जी रहे है।


और आज भी हम,

फिर भी हम,

पत्थर दिल ?


कुछ तो भी शर्म करो।

भविष्य के बारे में कुछ तो भी सोचो।

संस्कृती पर हो रहे आघात के बारे में कुछ तो भी सोचो।


आखिर हम इतने पत्थरदिल, लापरवाह कैसे बने रे बाबा ?

यह तो कमाल ही कमाल हो गया रे बाबा।


आपस में मतभेद, जातीपाती का बैर।

तेरा महापुरुष बडा या मेरा महापुरुष बडा।

यह देवता ऐसी और वह देवता तैसी।


लडो,झगडो,मरो।


ऐसी भयंकर, ठंडे दिमाग वाली,षंढ जैसी मानसिकता रहेगी तो हमें भगवान भी बचा पायेगा ?

या फिर वह अवतार लेकर आयेगा...

ऐसी विचारधारा लेकर ही बैठे रहेंगे ?


कबतक ? कितने दिनों तक ?

हम पत्थर दिल बनकर,बनेबैठे रहेंगे ?

कबतक हम नंपुसक बनकर जियेंगे ?

हमारा आत्मतेज,

हमारा आत्मसंम्मान,

हमारे अंतरात्मा की आवाज,


कहाँ मर गई ?


अनेक धर्म प्रेमी आज भी आप को हिलाहिलाकर जगाने की कोशिश कर रहे है।

क्या उनको ही आप हँसते हो ?

उनके ही कार्यों में बाधा डालने की कोशिश करते हो ?


उपर से ऐसा करनेपर भी,आसूरीक आनंद से भी आनंदित हो उठते हो ?


आखिर ऐसा क्यों भाईयों ?

ऐसा क्यों विपरीत होता जा रहा है मेरे देश में मेरे भाईयों ?


अनेक राजनीतिक दलों से जुडकर,

अनेक सामाजिक संगठनों से जुडकर,

हम हमारी शक्तीयां क्यों विभाजीत कर रहे है ?


सोचो तो जरा ।

अंतरात्मा की आवाज,

अंतरात्मा की पूकार,

सुनो तो जरा।


क्या अंतरात्मा की आवाज ही मर गई है ?


हमें क्या करना चाहिए ?

हम क्या कर रहे है ?


हमारी संस्कृति, हमारी आन,बान,शान को पुनर्जीवित करने के लिए, हमारी अगली पिढी को वैभवसंपन्न बनाने की कोशिश में लगे हुए,

और इसी कार्य के लिए,

खुद मर मिटने के लिए,

खुद का अस्तित्व खतरें में डालकर,

षड्यंकारीयों के षड्यंत्रों का दिनरात सामना करते करते ,

आगे बढ रहे है....


क्या उन्ही के पैरों में हम पत्थरदिल बनकर बेडियां डाल रहे है ?

उन्ही का विरोध कर रहे है ?

उन्ही के कोशिशों को हँस रहे है ?


तो मेरे प्यारे भाईयों,

आप...

उन्ही को नही हँस रहे हो,

बल्कि,

खुद ही खुद का विनाश कर रहे हो,

यह मेरी बात पक्की समझो।


इसीलिए मेरे भाईयों,मेरे साथीयों,

जागो,उठो,

लडाई झगडा छोडो।

आंतरिक कलह,स्वार्थ मोह छोडो।

अज्ञान छोडो।


रोजी रोटी तो कमाओ ही।

इसके साथ भी धर्म जागरूक अभियान से भी तन,मन,धन से जुड जाओ।


पत्थरदिली छोडो।


और,

संगठित बनो।

सशक्त बनो।

शक्तिशाली बनो।


और हाहाकारी हैवानों पर,जो हमारे ही सर्वनाश के लिए,विविध माध्यमों से तुले हुए है,


उनपर वज्रमूठ बनाकर प्रहार करो।


संभव लगता है या असंभव ?

यह सवाल मुझे मत पुछो।

अपनी अंतरात्मा को पूछो।


और, 

जब आप सभी की अंतरात्मा जगेगी,

तब,

देश में भी और विश्व में भी,

क्रांति की लहर दौडेगी।


तो आप क्या चाहते हो ?

पत्थर दिल बनकर,मुर्दों की तरह पडे रहना ?

या फिर,

दिलवाला बनकर,

ईश्वरी कार्यों को आगे बढाना ?


जागो,मोहन प्यारे।

समय बहुत कठीन है।


हरी ओम्


🕉🕉🕉🚩🚩🚩🕉🕉


विनोदकुमार महाजन।

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