राष्ट्र हित सर्वोपरी।
राष्ट्रहित सर्वोपरी....।
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जी हाँ भाईयों,
राष्ट्रहित सर्वोपरी।
फिर से एकबार दोहराता हुं,
राष्ट्रहित सर्वोपरी।
कितने प्रतिशत भारतीय इस विषय पर सोचते है ❓
अत्यंत महत्वपूर्ण विषय।
राष्ट्र के लिए।
राष्ट्र निर्माण के लिए।
राष्ट्र नवनिर्माण के लिए।
राष्ट्रप्रेम यह विषय भी कुछ लोगों के लिए,निंदा का विषय बन गया है।
इसिलिए कुछ,
नमाकहराम,गद्दार, बेईमान, राष्ट्रविघातक,
जहरिले साँप,
इस देश में रहकर,
इस देश का नमक खाकर,
हमारे टैक्स के पैसों से पलकर,
उल्टा हमें ही ज्ञान देते है,
" भारत तेरे तुकडे होंगे..।।।।"
वा रे वा नमकहरामों, बेईमानों, गद्दारों, आस्तिन के साँपों।
और हम ऐसे बेइमान,गद्दारों को तुरंत कानूनी सख्त सजा देने के बगैर,
दूर से खडे होकर मजा देखते है।
तमाशा देखते है।
हमारे अंदर का,
बेईमानों के खिलाफ खून खौलता नही है।
यही है हमारा देशप्रेम ?
यही है हमारा राष्ट्रप्रेम?
सोचो,
राजे शिवछत्रपती के समय में अगर कोई बेईमान, गद्दार,
भारत तेरे तुकडे होंगे...
जैसी गंदी,राष्ट्रद्रोही घोषणा देता...
तो राजे शिवछत्रपती क्या उसको माफ करते ?
हरगीज नही।
तुरंत उसके हाथपैर काटने का आदेश भी देते और तुरंत अमल भी करते।
धधगती आग,
धधगती ज्वाला,
धधगता लाव्हा।
इसे कहते हे ईश्वरी तेज।
तेजस्वी नारसिंव्ह का उग्र रूप।
इसे कहते है राष्ट्रप्रेम।
इसे कहते है राष्ट्रभक्ती।
और,
इसे कहते है,
राष्ट्रहित सर्वोपरी।
और हम ?
मुर्दाड बनकर,मुर्दाड मन से नितदिन अत्याचार सहते रहते है।
उल्टा बेईमानों को ही सरपर लेकर नाचते है।
भारत तेरे तुकडे होंगे....
कहनेवाला नमकहराम,
आराम की,ऐशोआराम की जींदगी जीता है।
टिवी पर,हमारे नाक के उपर खुलेआम टिवी पर डिबेट करता है।राष्ट्रप्रमीयों के खिलाफ गलत टिप्पणी करता है।
और हम ?
दूर से तमाशा देखते है।
टिवी डिबेट देखते है।
क्या यही हमारा ईश्वरी तेज है ?
आत्मघातकी।
हम क्या करते है ?
क्या करते आये है ?
खावो पिवो,ऐश करो।
बच्चा पैदा होता है तो,
भारतीय उच्च संस्कृती को भूलकर,
शुभंकरोती कल्याणम्...
जैसी महान संस्कृती को भूलकर,
काँन्हेन्ट में भर्ती किया जाता है।
हमारे आदर्श देवीदेवता,
हमारी महान संस्कृती,
हमारे महापूरूषों के पराक्रम, ईतीहास भूलता है।
बचपन संस्कारों के अभाव से व्यर्थ गया।
धिरे धिरे पढाई करता है।
नौकरी धंदा ढुंडता है।
चार पैसे कमाता है।
शादी करता है।
दो बच्चे पैदा करता है।
उनकी पढाई करके उनको भी धन कमाने के लालच में परदेश में भेजता है।
खुद घुट घुटकर मरता है।
धिरे धिरे बुढ्ढा होता है।
और...
एक दिन....
मर जाता है।
वा रे वा पठ्ठों।
तो आखिर तुने देशप्रेम के लिए,
देशहित के लिए ,
क्या किया प्राणी ?
हँसते हँसते फाँशी पर जाकर हमें आजादी देनेवालों का सपना हमने ऐसा ही पूरा किया ?
या उनके सपनों को भी तिलांजली दी ?
किस उद्देश्य से वह महत्माएं फाशी पर गए होंगे ?
भूल गए हम वह ईतिहास ?
भूल गये हम सुवर्ण दिन ?
क्यों भाईयों क्यों ?
अरे , सावरकर जी ने हमें आजादी देने के लिए कितने परिश्रम किए ?
कितने दुख दर्द झेले हमारे लिए ?
क्या हम सब भूल गये ?
याद करो उनका वह भयंकर, भयानक,
कालापानी।
क्या हो गया है हमें ?
भूल गये हम सुभाष बाबू को ?
भूल गये हम बलिदानियों को ?
भूल गये हम उनकी अंतरात्मा की आवाज को ?
ऐसे महान नररत्न हमारे देश में पैदा हुए और हम उन्ही को भूल गये ?
उन्ही के त्याग,बलिदान को भी भूल गये ?
इतने नतद्रष्ट और स्वार्थी हम क्यों और कैसे बन गए ?
हमारे अंदर का अग्नी,खून कहाँ है ?
बेईमान, गद्दार राष्ट्रद्रोहीयों को तुरंत दंडीत करने का कानून हम तुरंत क्यों नही बना सकते है ?
क्यों ऐसे जहरिले साँप खुलेआम हमारे देश में घुमते है ?
उपर से ऐशोआराम की जींदगी जीते है ?
और हम ?
मानवता की माला जपकर,
सहिष्णु बनकर,
सर्वधर्म समभाग की आड में,
ऐसे बेईमान, गद्दारों से भाईचारे का नाता रखते है ?
हँसी मजाक से,
ऐसे गद्दारों के इंटरव्ह्यू टिवी पर देखते है ?
उनको डिबेट के लिए आमंत्रित करते है ?
अरे जिन बेईमानों की जगह जेल में रहनेलायक ही है,
उनको ही हम क्यों बडा कर रहे है ?
क्यों उनको टिवी डिबेट को बुलाकर,
उनको सरपर लेकर नाच रहे है ?
हमारे देवीदेवताओं को बदनाम करनेवालों को तुरंत कानूनी तौर पर दंडीत करने के बजाए,
हम तमाशाई बनकर तमाशा देखते है ?
कहाँ मर गया हमारा तेज ?
राष्ट्रहित सर्वोपरी
समझकर जिन्होने खुद का जीवन नौछ्यावर किया,
जो हँसते हँसते फाशी पर लटक गये,
जिन्होने अपना जीवन दाँव पर लगा दिया,
होली कर दी होली उन्होंने खुद के जीवन की।
उनका संन्मान हम क्या इस प्रकार से बढा रहे है ?
खावो पिवो ऐश करो के रूप में ?
मुर्दाड बनकर ?
आखिर कौनसा भयंकर जहरीला साँप हमें सूंघ गया है की,
हम इतने तेजोहीन बन गए है ?
उठो तेजस्वी ईश्वर पूत्रों,
तेजस्वी वीरपूत्रों।
माँ भारती और माँ धरती पर
लगे पाप के कलंक को
धो डालने के लिए
संगठीत बनो।
तेजस्वी बनो ।
शक्तिशाली बनो।
माँ भारती और माँ धरती तुम्हे पुकारती है।
समय तुम्हे पुकारता है।
हर राष्ट्रप्रेमी तुम्हे पुकारता है।
विनोद और अजय की दिव्य जोडी भी तुम्हे पुकारती है।
उठो।
हरी ओम् ।
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विनोदकुमार महाजन।
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