लढता जा
आगे बढो
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मनुष्य जन्म का उद्देश्य क्या है ?
खाना,पिना,मौज मस्ती करना,
पैसा कमाना,ऐश करना,
शादी करना,चार बच्चे पैदा करना,
केवल इतना ही है ?
हरगीज नही।
किडे मकौडे भी जन्म लेते है,
और मर जाते है।
आत्मज्ञान, आत्मकल्याण,सजीवों का कल्याण,
और नर का नारायण बनकर,
सृष्टि का कल्याण करना,
यही मनुष्य जन्म का उद्दीष्ट तथा अंतीम साध्य होता है।
ध्येय और ध्येयपूर्ती।
संकल्प और सिध्दी।
उच्च ध्येयासक्ती और अंतीम ध्येयप्राप्ती।
हरदिन, नितदिन, हरपल इसी दिव्य संकल्प की ओर बढाना चाहिए।
आगे बढना चाहिए।
मुझे पता है,
अनेक रूकावटें आयेगी।
अनेक कष्ट झेलने पडेंगे।
अनेक अपमान होंगे।
जानबूझकर अपमानित, हतोत्साहित, प्रताडित किया जायेगा।
समाज, स्वकीय भी हँसेंगे, नितदिन नई नई बाधाएं डालेंगे।
आपको येनकेन प्रकारेण समाप्त करने की कोशीश करनेवाले, हरपल,पगपग मिलेंगे।
अनेक बार,बारबार अपयश का जहर भी हजम करना पडेगा।अपमान, निंदा भी सहनी पडेगी।
नाराजी,उदासी,व्याकुलता, हतबलता आयेगी।
बेचैनी आयेगी।
चारों तरफ से मुसीबतों की आग भी लगेगी।
दुनिया भी तरसायेगी,तडपायेगी।
कोई सहारा नही मिलेगा।
नारकीय जीवन का सामना भी करना पडेगा।
मनुष्य रूपी अनेक जहरीले साँप,बिच्छू भी काटने की कोशिश करेंगे।
मनुष्य रूपी सैतान,हैवान, राक्षस भी जीना मुश्किल कर देंगे।
मनुष्य रूपी भूतप्रेत,अतृप्त आत्माएं भी तडपायेगी।तरसायेगी।
जिनपर सच्चा प्रेम किया वह भी धोके देंगे।
नियती,नशीब, प्रारब्ध भी कठोर परीक्षा लेगा।भयंकर, भयानक अग्नि परीक्षा लेगा।
आग ही आग।
चारों तरफ मुसिबतों की आग।
चारो तरफ जहर के सागर।
और दशदिशाओं में केवल अकेले को ही लडना पडेगा।
जिनके लिए जान हथेली पर लेकर लडे,जिनको ह्रदय निकालकर दिया,दिव्य प्रेम किया,
वह भी संकट की खडी में तुम्हारा साथ नही देंगे।
उल्टा भयंकर पिडा,नरकयातनाएं, आत्मक्लेश देंगे,पग पग पर,पलपल रूलायेंगे,
तमाशा देखेंगे, दूर भाग जायेंगे, आपपर पत्थर फेकेंगे, शत्रु को भी जाकर मिलेंगे, उनके साथ मिलकर हमारे खिलाफ षड्यंत्र भी करेंगे....
इसी का नाम दुनिया है।
इसी का नाम दुनियादारी है प्यारे।
मैंने अनुभव किया है।
तो भी....
हिम्मत नही हारना है दोस्तों।
हिम्मत से लडना है दोस्तों।
मंजिल को ओर बढना है।
हिम्मत से लडना है।
नितदिन आगे आगे बढना है।
चाहे आने दो कितनी भी मुसिबतें,
चाहे लगने दो कितनी भी चौतरफा मुसीबतों की आग,
चाहे आने दो कितने भी भयंकर जहर के सागर,
चाहे आने दो सामने कितने भी साँप,अजगर.....
लडना है....
केवल लडना है....
केवल और केवल लडना ही है प्यारे।
हिम्मत से लडना है।
नियती के साथ भी,
नशीब के साथ भी,
प्रारब्ध के साथ भी।
जायेंगे यह भी बुरे दिन।
आयेगा मेरा भी एक दिन।
मिलेगी मुझे मेरी दिव्य मंजिल एक दिन।
हौसला बुलंद रखना है।
हिम्मत से आगे बढना है।
बढते रहना है।
मंजिल की ओर बढना है।
आगे बढ प्राणी आगे बढ।
आगे बढ मनुष्य आगे बढ।
आगे बढ दोस्त आगे बढ।
आगे बढ मित्र आगे बढ।
आगे बढ प्यारे आगे बढ।
मैं हुंना।
मैं हुं ना तेरे पिछे।
मैं हुं ना तेरे साथ।
क्यों चिंता करता है ?
क्यों परेशान होता है ?
क्यों रोता है ?
आगे बढ......।
ऐसी ईश्वर की दिव्य ध्वनि नितदिन, हरपल हमारे कानों में गुंजनी चाहिए।
और श्रद्धा उच्च होगी तो....
ऐसी दिव्य ध्वनि तो जरूर सुनाई देगी।
मुझे तो सुनाई देती है।
और आपको...???
कोशिश तो करो ऐसी।
जरूर कामयाबी मिलेगी।
आगे क्या लिखूं ?
आगे बढ।
बढता जा।
ईश्वर के लिए।
ईश्वरी सिध्दांतों के लिए।
कुदरत के कानून की रक्षा के लिए।
और....
हैवानियत की हार के लिए।
राक्षसी सिध्दांतों की हार के लिए।
लढता जा।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन।
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