कितने दिनों तक
कितने दिनों तक???
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रोहिंग्या, बांग्लादेशी तथा पाकिस्तानी घुसपैठियों को हम कितनें दिनों तक और क्यों पालते पोसते रहेंगे?
हमारा अनाज, हमारा टैक्स का पैसा हम देशवासी क्यों उनको दे देंगे,जब हमारे देश में हमारा ही जीना मुश्किल हो रहा है तो...ऐसी विनाशकारी ताकतों को,राष्ट्र द्रोही ताकतों को हम क्यों पालपोसकर बडा कर रहे है?
जो ताकतें निरंतर हमें ही बर्बाद करनेपर सदैव तूले हुए है?
हिंदुस्थान में रहकर,पाकिस्तान जिंदाबाद के नारें लगाने वालों की,खुलेआम गाय काटनेवालों का हम कदापी साथ नही देंगे।
रोहिंग्या, बांग्ला तथा पाकिस्तानी घुसपैठियों को तुरंत बाहर निकालने का सख्त कानून तुरंत बनाने की अती आवश्यकता है।
हमारे देश के अर्थकारण पर पडनेवाला भार,अब हमें जल्दी खतम करना ही होगा।
हमारे देश में रहकर, हमारा ही खाकर, हमें नेस्तनाबूद करने का सपना देखने वालोँ का साथ हम क्यों दे रहे है?
और..
हमारे ही देश में,
जैसे की,कश्मीर, केरला,पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों से हम भागने पर मजबूर क्यों हो रहे है?हमारे ही देश में हमारे ही भाई निराधार-निराश्रित बनकर, दर दर की ठोंकरें क्यों खा रहे है?मेरे कश्मीरी पंडितों को,निराश्रितों को..कौन और कब न्याय देगा?नरकयातनामय जीवन जीनेवालों को..ऐसे हमारे भाईयों कोहम न्याय क्यों नही दे रहे है?
कब तक?कब तक?कब तक?यह सिलसिला चलता रहेगा?कबतक हम अती अन्याय-अत्याचार सहते रहेंगे?
क्यों?
इसिलिए घुसपैठियों को तुरंत बाहर निकालने का सख्त कानून बनावो,और हमारे विस्थापित कश्मीरी पंडितों को..तुरंत न्याय देने की,उन्हे फिर से उनके मुल्क में बसाने की,निती अपनावो।
हमारे टैक्स का एक एक पैसा हम हमारे निराश्रित भाईयों को ही देना चाहते है,विस्थापितों को फिर से बसाने के लिए ही देना चाहते है।
उनका संपूर्ण विकास करने के लिए ही देना चाहते है।
अब हमारे टैक्स का...मतलब हमारा हक का एक पैसा भी,छदाम भी..घुसपैठियों के विकास के लिए करना हम नही चाहते है।
सो...
हमारा हक का धन...
सिर्फ और सिर्फ हमारे ही विकास के लिए काम में आएं।
ना की गद्दार, देशद्रोही घुसपैठियों के विकास के लिए।
क्या हमारा धन,हमारा पैसा...
हमारे बर्बादी के लिए...
और....पाकिस्तान प्रेमीयों के विकास के लिए काम आयें...
यह बात हमें मंजूर है???
सोचो,जागो,जानो,पहचानो।
तरसते-तडपते हमारे भाईयों को न्याय दों,गद्दारों को कानून से ही दंडित करों।
मेरे विचार सही या गलत आप ही बतावो।
हरी ओम।
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-- विनोदकुमार महाजन।
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