धर्म कार्य

 जिसके आँसु पोंछे

वही रूलाते है

मुसिबतों की घडी में

स्वकीय ही पिडाएं

देते है


जिनसे सहायता की

अपेक्षा की वही

गला घोंट देते है


धर्म कार्य में

स्वधर्मीय ही अनेक

विघ्न, बाधाएं डालते है


कलियुग के भयंकर 

माहौल में विश्वासघात का

जहर भी बारबार

हजम करना ही पडता है


फिर भी महापूरूष

अपने दिव्य कार्यों में

जरूर कामयाब ही

होते है


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

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