पिता

 कथा एक " पिता "  की....!!!

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पिता......!!!

कितना पवित्र शब्द है ना भाईयों ?

एक पवित्र रिश्ता।

सभी के लिए।

मेरे लिए भी,आपके लिए भी।


मगर आज एक भयंकर कथा सुनाता हुं।

पिता की।

मतितार्थ, गर्भीतार्थ समझने की कोशीश करना।

शब्दों की गहराई समझना।


क्योंकी,

इस देश में होता क्या आया है की,

अगर कोई सत्य के लिए जीता है,सत्य के लिए आवाज उठाता है...

तो....???

चारों तरफ से उसे दबाया जाता है।

जीवनभर के लिए,

ऐसे सत्य प्रेमीयों को ऐसा लटकाया जाता है की,

समाज में वह बदनाम भी हो,

जीवनभर वह पछताता भ रहे,

रोता भी रहे,

और उसका संपूर्ण जीवन ही उध्द्वस्त हो।


सही है ना ?

आजादी के बाद ऐसा ही होता आया है ना ?

आपने देखा है।

अनेक महापुरूषों के साथ क्या हुवा है।

ठीक ऐसा ही हुवा है ना ?

मतलब षडयंत्र....!!!


और मैं,

कानूनी दांवपेंच में न फंसकर,

साँप भी मरे,लाठी ना टुटे,

इस हिसाब से हमेशा लिखता हुं।

आज भी लिख रहा हुं।


जैसे,

" आधुनिक शुक्राचार्य " ,

शब्दों का प्रयोग किस मुसिबत में डालेगा ?

एक प्रतिशत भी नही।


अब देखते है....

" पिता .....",

शब्द।


ठगगिरी,भुलभुलैय्या करके,

अपने,

" संतानों ", को,

बेवखुब बनाकर उसकी जींदगी बरबाद बनाने वाला क्या 

" पिता ",

हो सकता है ?

उसके पुतले खडे करके,वह पूजा करने लायक होता है ?


सोचो.....

सभी सत्यप्रेमीयों,

सभी मानवतावादीयों सोचो।

यह पढकर आपके दिमाग में ,करंट लगेगा।

ऐसे भयंकर लोगों के संबंधी केवल और केवल घृणा ही पैदा होगी।


और हम सोचेंगे,

अरे,

ऐसे नालायक के तो हम पुतले खडे करके,नितदिन उसकी पूजा करते आये है ?



कितने बेवखुफ है हम ?


सोचो तो जानो।


अगर कोई ऐसा बुढा पिता,सत्पुरुष का मुखौटा लेकर खडा है,


और,


बुढापे में,

अपने बेटे को,

अ - धर्म ( ❓❓❓ )

का रास्ता दिखाकर उसिमें धकेल देता है,

और उसकी,

छोटीसी, नन्ही सी,प्यारी सी,

परी जैसी कोमल....

केवल आठ साल की बेटी से,

मतलब उसकी पोती से,


शादी करने को कहता है,

और उसके भी आगे,

उस बाप को बेटीपर,

अत्याचार करने को कहता है....

( किताबों को खंगालकर देखो,जो जानबुझकर दबाई रखी है। )


और....


वह बेटा,

अपने " पिता " ,के आदेश पर,

अत्याचार करके,

नन्ही कली का,

जीवन उध्द्वस्त कर देता है....


तो.....❓❓❓

आप उसे,

" पिता " ,

कहेंगे ?


दो गालियाँ ही क्या,

दो जूते ही क्या, 

दो गोलियां ही क्या,

सौ गोलियां चलाने का भी मन होता आप सभी का,

ऐसे दुर्जन,


" पिता " , के खिलाफ।


समझे कुछ ?

या अभी भी अंधे ही हो ⁉

कब तक अंधे बनकर बैठेंगे ?



अंतरात्मा की आवाज़ जगावो।

बरबाद कर दिया ऐसी निती ने,और हमारे अंधेपन ने हमें।


और हम...

बन गये बिल्कुल,

अंधे,बहरे और....

गुंगे।

तीन बंदरों की तरह। 

ऐसी ही स्थिती हो गई हमारी।


और क्या क्या हुवा ?

बहुत कुछ हुवा।

भयानक भी हुवा।

हमारे सौतेले भाई को,

हमारे ही घर में अलग जगह दी।

और....

इसिके साथ ही,

हमारे सौतेले भाई के,

बिवी बच्चों को हमारे घर में भी जगह दी।


और उपर से.....

हमारे घर में भी,

हमसे जादा अधिकार भी दिये।


और...


हमारे ईश्वरी गुणों को,

शुक्राचार्य की तरह,

तहस महस करने की कोशिश की।

और हमारे सौतेले भाईयों को,

राक्षसी गुणों को,

बढाने की अनुमती।


बडा विचित्र दाँवपेंच चलाया रे बाबा।

भयंकर षडयंत्र।


हमारे,

आदर्श,

" पिता " ,

की यही है कर्मकहाणी।


हमें बरबाद करने की।


और हम...

तीन बंदर की तरह

सबकुछ समझते हुए भी,

अनजान बनकर,

शापीत जीवन जीते रहे।

आजतक।

बिल्कुल आजतक।


समझे कुछ ❓❓❓


समझ गये तो जागृत बनो।

अन्यथा,

तीन बंदरों की तरह,

पडे रहो,

सडे रहो।


समाप्ति की ओर....

बढते रहो।

आपसी झगडा,कलह,मतभेद से मरते रहो।

और यह हमारे अंदर का झगडा भी,

हमारे,

महान,

" पिता " ,की ही देन है भाईयों।

जी हाँ,

निती ही ऐसी बनाई है।


लडते झगडते हम समाप्त हो जायें।

और..

सौतेले भाई का परीवार,

बडा होता जाये।


सौतेले भाईयों को बडा करते रहो।

खुद समाप्ति की ओर बढते रहो।


तीन बंदरों की तरह,

आँखें, कान,मुंह,

बंद करके जीओ।


अब हमारे अभेद्य,

" अखंड " ,

घर में ,

हम आज चोर बनकर जी रहे है।


तेजोहीन, नंपुसक बनकर।

अत्याचार का प्रतिकार करना भी हम भूल गये है।

इसिलए अस्तित्व शून्य भी बनते जा रहे है ।

तो....?

आगे ....❓❓❓


भगवान ही जाने।


बाकी..?

अगले लेख में।


तबतक के लिए ,


हरी ओम् 🙏🕉🚩

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विनोदकुमार महाजन

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