हिंदुओं तेजस्वी बनो

 *मुर्दाड हिंदुओं, जानवर भी जीवन जीतें है...,तुम तो इंन्सान हो।* 

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ईश्वर निर्मीत चौ-यांशी लक्ष योनियों में मनुष्य प्राणी सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है।और बाकी सभी सजीव प्राणीमात्र एक चाकोरीबध्द जीवन जीकर मर जाते है।उनके जीवन का कोई उद्देश्य नही होता है और नाही लक्ष होता है।


 *जानवर भी* 

चार दिन जीते है और चार बच्चे पैदा करके मर जाते है।उनको धर्म, संस्कृति, देश इसके बारें में कुछ लेनादेना नही होता है।


 *ठीक इसी प्रकार से*

 कुछ मनुष्य भी जानवरों जैसा निरर्थक जीवन जीकर मर जाते है।उनके जीवन का भी ना कुछ उद्दीष्ट होता है और नाही कोई लक्ष।चार पैसे कमाना,चार बच्चे पैदा करना और मर जाना।

बस्स....

ठीक ऐसा ही जीवन अनेक इंन्सान जीते है।

 *निरर्थक।* 


वास्तव में संपूर्ण ब्रम्हांड, संपूर्ण सृष्टि और उसीसे निर्माण होनेवाला जीव सनातन से ही जूडा हुवा है।क्योंकि यह सृष्टि चक्र ईश्वरी इच्छा के अनुसार निरंतर चलता रहता है।इसीलिए सभी प्राणीमात्र भी सनातनी ही है।


केवल चोटी जनेऊ धारण करनेवाला,गंध माला पहननेवाला ही सनातनी होता है ऐसा समझना अज्ञानता का लक्षण है।


खैर,

यह विषय संपूर्ण अलग होने के नाते इस विषय पर विस्तृत लेखन अन्य लेखों में करूंगा।


 *आज का विषय मृतप्राय हिंदु समाज।* 


उपरी विषय के अनुसार संपूर्ण मानवसमुह ही सनातनी है।मगर जैसे जैसे समय बितता गया,सैध्दांतिक कारणों से मनुष्य समुह का बँटवारा होता गया।और अलग अलग मत,प्रवाह, सिध्दांत, पथ,पंथ,धर्मों का निर्माण हुवा।


और ईश्वरी सिध्दांतों को,कुदरत के कानून को सही मायने में समझने वाला केवल एक ही धर्म बच गया ऐसी धारणा बन गई।


 *और वह धर्म हिंदु धर्म बन गया।* 


वास्तव में निराकार ब्रम्ह ही सभी का मूलाधार भी है और इसीमें भी एकेश्वरवाद प्रभावी है।

और होते होते साकार निराकार ब्रह्म का निर्माण भी ईश्वरी इच्छा अनुसार सृष्टि संचालन एवं संतुलन के लिए होता गया।और धिरे धिरे अनेक मत,पथ,पंथ,मतप्रवाह का निर्माण होता गया।

अर्थात सभी का मूल सिध्दांत तो एक ही है।साकार निराकार ब्रम्ह, ईश्वरी सिध्दांत, कुदरत का कानून और सनातन धर्म अर्थात हिंदु धर्म।

उपशाखाएँ कुछ कारणों से बनती गई,बढती गई।


 *मगर मैं सभी को केवल और केवल सनातनी ही मानता हुं।* 


फिर इसमें ईश्वरी सिध्दांतों पर चलने वाला मनुष्य समुह और राक्षसी सिध्दांतों पर चलने वाला समाज ऐसा विभाजन हो गया और उसमें द्वंद्व चलता रहा।और इसी दो ईश्वर निर्मित दो विरुद्ध धाराओं का द्वंद्व भी युगों युगों से चलता आया है।


 *सब ईश्वर की माया।* 


अब आते है,ईश्वर प्रेमी, कुदरत के सिध्दांतों पर चलने वाले,मूल सनातन संस्कृति का सिध्दांत स्विकारनेवाले मनुष्य समुह पर।

यह समुह कभी भी तत्वों के साथ सम़झौता नही करता है। *और सिध्दांतों के लिए मर मिटने को भी हमेशा तैयार रहता है।* 


और यही जीवन का असली उद्देश्य भी है।


 *खाना पिना मौज करना, ऐषोआराम करना,

यह जीवन का उद्देश्य कभी भी नही हो सकता।* 


अब रही बात मृतप्राय समाज की।जो संस्कार, संस्कृति के धन को भूल गया है।देव,देश,धर्म को भूल गया है।सनातन को ईश्वरी सिध्दांतों को भूल गया है।मतलब अपने अस्तित्व को ही भूल गया है।


 *अपने मूल रूप को ही भूल गया।* 


खावो पिवो ऐश करो।यही इनके जीवन का उद्दीष्ट होता है।


चार पैसे कमावो,चार बच्चे पैदा करो...

यही इनके जीवन का एकमात्र मकसद होता है।

और इसीको मृतप्राय समाज कहते है।


और दुर्दैव से हमारे हिंदु समाज में आज ऐसे अनेक मृतप्राय व्यक्ति व्यर्थ जीवन जी रहे है।इनके जीवन में ना कोई लक्ष होता है ना कोई मनुष्य जन्म का उद्दीष्ट होता है।


 *जानवर भी जीते है और मर जाते है।ऊनका कोई उद्दीष्ट नहीं होता है।* 


और ऐसे जानवर जैसे व्यर्थ जीने वाले समाज को धर्म, देश, देव,संस्कृति, संस्कृति के बारें में कुछ लेना देना भी नही होता है।


उलटा ऐसे ही मरे हुए लोग हमारे ही धर्म का,संस्कृति का,देवीदेवताओं का मजाक करते है,उन्हे अपमानित करते है 

तो.....?


 *असंस्कृत समाज का निर्माण तो होगा ही।और यही समाज*


 आसुरीक सिध्दांतों की ओर झुकेगा और आसुरीक सिध्दांतों पर चलने वाले समाज का समर्थन भी करेगा।


 *और यही सबसे बडी और भयंकर समस्या है।* 


ऐसा समाज केवल मरा हुवा नही है तो सुसंस्कारित समाज को भयंकर पिडा,यातना देनेवाला तथा आसुरीक समाज को बल देनेवाला होता है।


 *और ऐसे समय में धर्म कार्य, देव,देश कार्य करना भयंकर मुश्किल अथवा पिडादायक होता है।* 


हमारे ही लोग हमारे ही खिलाफ काम करते है....

और आसुरीक संपत्ति को बल देते है तो....


 *वह समाज अध:पतन की ओर तथा विनाश की ओर तेजीसे बढता है।* 


और अनेक शताब्दियों से हमारे साथ ऐसा ही होते आ रहा है।और परिणाम स्वरूप हम पिछे पिछे हटते जा रहे है।भागम् भाग कर रहे है।और आसुरीक संपत्ति वाले आक्रामक होकर,ईश्वरी सिध्दांतों पर ही हमले कर रहे है।


 *परिणाम ???* 


 *संपूर्ण विश्व में एक भी हिंदु राष्ट्र नही है।* 


और यही धर्म ग्लानि है।

और हमें यही धर्म ग्लानि मिटानी है।


चारों तरफ वायु गति से फैलती हुई आसुरीक सिध्दांतों का विरोध और इनका सर्वनाश इतना आसान नहीं है।


 *इसके लिए सामाजिक, सामुहिक यशस्वी निती बनाकर आगे बढना होगा।* 


 *मुर्दाड हिंदुओं की चेतना जगानी होगा।

उनका स्वाभिमान,आत्मतेज जगाना होगा।* 


यह कार्य आसान नहीं है।लेख लिखने से या व्याख्यान देने से कुछ साध्य नही होगा।

जो इसी ईश्वरी कार्य के लिए तन,मन,धन से समर्पीत भाव से कार्य कर रहे है,उनको गती देने के लिए अथक प्रयास करने होंगे।


आखिर में मृतप्राय, मुर्दाड हिंदुओं को एक ही बात कहुंगा,


मुर्दाड हिंदुओं,जानवर भी जीते है।इसी प्रकार से निरर्थक जीवन मत जीवो।


 *किडे मकौड़े भी पैदा होते है और मर जाते है।ऐसा निरर्थक जीवन जीने से अच्छा है...* 


धर्म, देव, देश,संस्कृति, संस्कार के लिए जियेंगे तो ही सही मायने में मनुष्य जन्म का उद्दीष्ट साध्य होगा।

बाकी आपकी मर्जी।


ऐसे हजारों लेख लिखकर सभी को जगाने का एक छोटासा प्रयास तो मैं कर रहा हुं।


 *उठो हिंदुओं, आत्मतेज जगावो।* 


और हिंदु धर्म की जीत के लिए

हिंदु राष्ट्र निर्माण के कार्य को संपूर्ण सहयोग करो।


 *कम से कम ऐसा कार्य करनेवालों के पिछे अपनी सारी ताकत लगा दो।* 


तो सारा काम आसान हो जायेगा।


हरी ओम्

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 *विनोदकुमार महाजन*

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