अहम् ब्रम्हास्मी

 अहम् ब्रम्हास्मी....


दोनोँ आँखें बंद करके

जब हम आज्ञाचक्र में स्थिर

होकर ध्यान लगाते है तो

क्या दिखाई देता है ?


ह्रदयस्थ हमारा दिव्य आत्मा

आत्मा का दिव्य तेजोवलय

और वही आत्मा अखंड

निराकार ब्रम्ह से जूडा हुवा है !


और वही ब्रम्ह संपूर्ण ब्रम्हांड से

संपूर्ण चराचर से

संपूर्ण सजीवों से केवल

एक ही धागे से जुडा हुआ है !


मतलब हमारी आत्मा भी

संपूर्ण ब्रम्हांड से

संपूर्ण सजीवों से निरंतर

जुडी हुई है !


मतलब आत्मरूप से

चैतन्य रूप से हम सभी

एक ही है !

तो भेद है कहाँ ?

आप सभी मेरे अंदर समाए

हुए हो और मैं भी आप सभी

के अंदर समाया हुआ हुं !


मेरी,हम सभी की दिव्य आत्मा

निरंतर उस ब्रम्हशक्ती से

जुडी हुई है !


सो...अहम् सो...अहम्

अहंम् ब्रम्हास्मी


पिंडी सो ब्रम्हाडी

ब्रम्हाडी सो पिंडी

हम सभी की आत्मा निरंतर

उस ब्रम्हशक्ती से जुड़ी हुई है !

ब्रम्हांड में व्याप्त पंचमहाभूत

और हमारे अंदर के पंचमहाभूत

सब एकरूप !

भेद है कहाँ ?

संपूर्ण ब्रम्हांड में हम सभी

निरंतर व्याप्त है !


आत्मा प्रारब्ध गती के अनुसार

पंचमहाभूतों के देह निरंतर

बदलता रहता है !

युगों युगों से !


कभी राम बनके, कभी शाम बनके !

एक ही आत्मा के अनेक रूप !


मुझमें भी राम,तुझमें भी राम !

मैं भी राम,तू भी राम !

हम सभी का एक ही आत्माराम !


धन्य है मेरी सनातन संस्कृती

जो सभी को निरंतर एक ही

सूत्र में बाँधने का दिव्य ज्ञान

देती है !


ऐसा दिव्य ज्ञान....

" दूसरी ? तरफ ? 

मिल सकेगा ? "

हरगिज नही !


आधे लोग ? अधूरे लोग ?

मानवता का क्या कल्याण करेंगे ?

सजीवों का क्या कल्याण करेंगे ?

हरगिज नही !


इसिलिए आवो सब मिलकर

दिव्य सनातन से नाता

जोडते है !

असत्य का त्याग करके

सत्य का स्विकार करते है !


जय सत्य सनातन हिंदू धर्म की !

का दिव्य उद्घोष संपूर्ण धरती पर

सहर्ष, निरंतर बढाते है !


( पृथ्वी निवासी संपूर्ण मानव समूह को,संपूर्ण सजीवों को मनोगत समर्पित ! )


हरी ओम्


विनोदकुमार महाजन

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