मेरे देश को मैं मिटने नहीं दूंगा !
क्या ? हिंदू ही...
हिंदुत्व के विनाश का कारण है ?
( लेखांक : - २०७८ )
विनोदकुमार महाजन
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संपूर्ण विश्व पर हिंदुओं का राज था,यह सप्रमाण सिध्द हो गया है !
मगर दुर्देव से आज हिंदुत्व की जो भयंकर क्षती दिखाई देती है,इससे भयंकर आत्मक्लेश तथा आंतरीक दुख होता है !
हिंदुत्व को समाप्त करने के लिए, क्या हिंदुही आगे दिखता है ?
मोदिजी का विरोध दुसरे धर्मीयों की बजाए, जादा मात्रा में,हिंदुही कर रहे है ?
सत्ता, स्वार्थांधता और फ्री की भयंकर लालची विनाशकारी आदत से हिंदु ही हिंदुत्व पर प्रहार कर रहा है ?
मोदिजी अगर सोने का राजमहल भी सभी को बनवा देंगे,अथवा ऐसा भव्यदिव्य सपना देखेंगे...
तो भी क्या लालची और आत्मघाती हिंदु मोदीजी का जी जान से साथ दे सकता है ?
अटलजी के साथ क्या हुवा ?
कितने हिंदुओं ने अटलजी के आदर्श सिध्दांतों का साथ दिया ?
फ्री का लालची, आत्मघाती समाज, अनेक जातीयों में बँटकर आपस में सदैव झगडने वाला समाज,आलसी,अज्ञान समाज,
काँग्रेस, समाजवाद, कम्युनिस्ट, निधर्मीवाद जैसे अनेक मतभेदों में जकडकर,खुद का ही विनाश करनेवाला समाज, दृव्यलालचा और सत्तालोलुप समाज सचमुच में मोदिजी का साथ देकर, राष्ट्र नवनिर्माण कार्य को गती देगा ?
या आपसी अनेक मतभेदों में बिखरकर खुद का आत्मघात कर लेगा ?
प्रश्न अनेक है।
उत्तर ढुंडने की कोशिश करनेपर भी यथोचित उत्तर नहीं मिलता है।
अनेक सालों की आक्रमणकारियों की गुलामी की आदत,स्वाभिमान शून्यता और उससे आनेवाली नकारात्मकता समाज मन को नंपुसक बनाकर खुद की क्षती करने में ही मदमस्त है।
उपर से पाश्चातों का अंधानुकरण और पाश्चातों की बढती गुप्त आक्रमकता।और बढता विनाशकारी, विखारी आतंकवाद।
क्या उत्तर है हमारे पास इन सभी के लिए ?
अनेक सालों से निराशा में घिरे हुए समाज को सदियों की हारने की आदत सी लग गई है ?
मानो मानसिक गुलामी ही स्विकार की है हमने ?
और दुसरी तरफ ...
उन्मादियों की भयंकर गती से चारों तरफ से बढती आक्रमकता।
कैसे बचाओगे खुद को ? खुद के संस्कृति को ? मठ - मंदिरों को ?आदर्श सिध्दांतों को ?
अनेक भूप्रदेश खो दिये है हमने आजतक ऐसी विचारधारा की वजह से।
अनेक जगहों पर मठ मंदिर गिराये गये है।
हमारे देवीदेवताओं का विडंबन किया जाता है,हमारे आदर्श महापुरुषों के सिध्दांतों पर वैचारिक हमले किये जाते है।
और हमारा ही समाज इसका हिस्सेदार बनता है तो ?
और फिर भी हमारा विनाशकारी मौन और भयावह शांति क्या दर्शाती है ?
विपरीत विचारधारा का लांगुलचालन केवल हमारे ही लोग क्यों करते है ? और हमारे महापुरुषों को,साधुसंतों को बदनाम क्यों करते है ?
हमारे ही कुछ लोग।
आखिर हम कहाँ जा रहे है ?
विनाश की ओर ?
संस्कृति भंजकों का साथ हम क्यों देते है ?
सोचो।
गहराई से सोचो।
विश्व पटल पर संस्कृति भंजक धिरेधिरे जीतते आये है।जीतने की उनकी एक सदीयों की रणनीति तैयार है।
हमारे पास उस विनाशकारी आक्रमण की काट क्या है ?
वायुगती से ,गुप्त रूप से,शत्रु और राष्ट्र विघातक शक्तियां प्रभावी होती जा रही है।हर दिन उनकी शक्ति चारों तरफ से बढती जा रही है।
और हम निद्रीस्त ?
उल्टा हमें बचाने की कोशिश करनेवाले महापुरुषों की,मोदी योगीजी की निंदा ?
हमारे ही लोगों द्वारा ?
हमारा समाज बहुसंख्यक होकर भी इतना हीन,दीन,लाचार, क्षतीग्रस्त क्यों हो गया ?
फ्री का लालची क्यों बन गया ?
क्या हमारा स्वाभिमान, हमारा मानसंन्मान मर गया ?
आक्रमणकारी, लुटेरों ने अनेक सालों तक हमें बरबाद करने की रणनीति बनाई।
उनके ही हम चाटुकार क्यों ?
और कितने दिनों तक ?
साथियों,
हिंदुही हिंदुत्व का,हिंदु धर्म का घात कर रहा है ।
क्यों ?
आपसी मतभेद भी विनाशकारी बनते जा रहे है।
क्यों ?
क्या सदियों से हिंदुही हिंदुओं का बैरी बनकर आत्मघात कर रहा है ?
हमारा हिंदु सहयोगी हमें,हमारे धर्म को,हमारे संस्कृति को,हमारे आदर्शों को,हमारे सिध्दांतों को बचाने का दिनरात प्रयास कर रहा है,परिणामों की चिंता किये बगैर, हमें बचाने का सर्वस्व समर्पित करके प्रयास कर रहा है...तो...?
उसकी शक्ति बढाने के बजाय उसको ही हतोत्साहित करने में हम धन्यता क्यों मानते है ?
सोचो,
दूसरे धर्मीय उनके धर्म गुरूओं का,उनके धर्म प्रचारकों का कभी विरोध करते है ? कभी अपमान करते है ?
देखा है आपने कभी ऐसा ?
तो आखिर हमारे ही आदर्श धर्म में ऐसा भयंकर विनाशकारी माहौल क्यों ?
साथियों, हिंदुओं का एक भी देश संपूर्ण विश्व में नहीं है।
हमें इसके बारे में भी बुरा नहीं लगता है।
इसके लिए भी हम संघटीत नही हो सकते है ?
आखिर क्यों ?
क्या वजह है इसकी ?
हम खुद का ही सर्वनाश करने के लिए क्यों तुले हुए है ?
हमारा अस्तित्व बचाने के लिए हम सभी को मतभेद भूलकर, स्वार्थांधता छोडकर, फ्री का लालच छोडकर, सत्ता - संपत्ति का मोह छोडकर एक होना ही होगा।आपसी मतभेद भुलकर हमारी शक्ति बढानी ही होगी।
आक्रमणकारियों के नाम बडे शहरों को,गली,गांव, बस्तीयों को देखकर भी हम इतने मौन और शांत कैसे रह सकते है ?
अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध हमारा खून खौलता क्यों नहीं है ?
या हमारे शरीर में खून ही नहीं बचा है ?
अहिंसा के झूटे मोहमाया के चक्कर में फँसकर हम हमारा आत्मतेज ही खो बैठे है।भयंकर अत्याचार सहते सहते हमारी अंतरात्मा ही मर गई है।आत्मतेज ही समाप्त सा हो गया है।
साथियों,
खुद का स्वाभिमान, आत्मतेज, चैतन्य अब हमें जागृत करना ही पडेगा।अत्याचार के खिलाफ वज्रमुष्टि बनाकर, अत्याचारों पर वज्राघात करना ही होगा।
तभी हम उस ईश्वर की तेजस्वी संतानें कहने के लिए लायक होंगे।
अन्यथा ?
ईश्वर भी हमें नहीं बचा पायेगा।
कहाँ कहाँ और कबतक भागते रहेंगे ? एक दिन तो अत्याचार का और अत्याचारीयों का जमकर विरोध करना ही पडेगा।
हमारे हाथ में आज लोकतंत्र में मतदान का मौलिक हथियार है।उस हथियार से सभी हिंदुत्ववादियों को,उनके विचारों पर चलने वालों को हम सभी को मिलकर, आगे बढाना ही होगा।
तभी विनाश टलेगा।
समय भयंकर कठिन है।
चारों तरफ से गुप्त शत्रु हमारे सर्वनाश के लिए घात लगाकर बैठा है।हमारे बीच में रहकर, हमसे मिठी मिठी बातें करके,वह गुप्त शत्रु हमें फँसाने की निरंतर कोशिश कर रहा है।
जानो,पहचानो।जागो।
पाणी गहरा है।
गहरा संकट देश के बाहर से भी है,अंदर से भी है।और हमारे घरभेदी धर्म द्रोहियों से भी है।
भयंकर विपदाओं की तथा धर्म संकट की घडी में आज हम सब मिलकर,
कसम खाते है....
" मेरे देश को मैं मिटने नही दूंगा।
मेरे देश को मैं झूकने नही दूंगा।"
हर हर महादेव।
जय जय श्रीराम।
हरी ओम्
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