स्थितप्रज्ञ !

 स्थितप्रज्ञ !!

✍️ २३७४


विनोदकुमार महाजन


🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉


सारा सुख दुख

सारा मान अपमान

सारा अमृत जहर

सारा यश अपयश

सारा आनंद क्लेश

सारा पाप पूण्य....


ईश्वर का प्रसाद समझकर

ग्रहण किजिए !

तब...एक मिनट में ही तुम्हारा विचलित मन....

शांत हो जायेगा !!


मगर युंही एक पल में 

मन की धारणा ऐसी

नहीं बन सकेगी !


इसके लिए भी सद्गुरु कृपा

और खडतर तपश्चर्या तो

चाहिए ही चाहिए !


यही स्थितप्रज्ञता है !

यही ईश्वर प्राप्ती भी है !

यही ईशत्व है !

यही दिव्यत्व है !

यही मोक्ष है !

यही जन्म मृत्यु से


मुक्ति भी है !!


मुक्त मैं

अनादी मैं

अनंत मैं


सो ... अहम् 

सो ... अहम्

अहं ब्रम्हास्मी


यही सहास्त्रारचक्र जागृती है !

यही ब्रम्हप्राप्ती भी है !

यही ब्रम्हज्ञान प्राप्ति है !

यही परम शांति का

महाभंडार भी है !!


खुद ईश्वर स्वरूप बन जाना !!


मेरा कुछ भी नहीं है !

मेरा कुछ भी नही था !

सबकुछ ईश्वर का है !

सबकुछ ईश्वरी चरणों पर

सश्रद्ध मन से समर्पित भी है !!


श्रीकृष्ण: शरणं मम 

श्रीकृष्ण: शरणं मम


।। श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।


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