रिश्तेनाते
इस जनम का रिश्तानाता !?
✍️ २३८३
विनोदकुमार महाजन
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वास्तव में ,पंचमहाभूतों का देह धारण करके , हमारे आसपास रहनेवाले को रिश्तेनाते कहते है !
और यही रिश्तेनाते सुखदुखों में एक दूसरों का आधार बनते है !
मगर वास्तव में क्या यही हमारे असली रिश्तेनाते होते है ?
जब तक हमारा जन्म है , तबतक ही यह रिश्तेनाते होते है ! देह त्यागने के बाद कैसे रिश्तेनाते ?
देह त्यागने के बाद कौन कहाँ जायेगा ? कौनसी योनी में जायेगा ? कौनसा देह धारण करेगा ? या फिर मोक्ष के लिए जायेगा ? यह हमें पता नहीं चलता है ! और नाही देह बदलने के बाद उसे हम पहचान भी सकते है !
मगर सिध्दपुरूष , महासिध्दयोगी जरूर ऐसे रिश्तेनातों को पहचानते है !
अनेक देह बदलने के बाद भी !
कौन कौनसा देह धारण करके आयेगा और हमारा पिछले जनम का ऋणानुबंध पूरा करके यह बात साधारण व्यक्ति नहीं समझ सकता है !
और जन्म जन्मांतर तक ऐसा सिलसिला लगातार चलता ही रहता है !
कुत्ते ,बिल्ली ,गाय ,भैंसे भी हमारे साथ रहकर पिछले जन्म का ऋणानुबंध पूरा करते है !
तो मूलभूत प्रश्न यह ,रहता है कि ,
इस मनुष्य देह का उद्देश्य क्या है ? और अंतिम सत्य क्या है ?
यह पंचमहाभूतों का देह नश्वर है ! मगर हमारे अंदर का आत्मतत्व ही ईश्वर है ! और ईश्वरी तत्वों की खोज और ईश्वर प्राप्ति ही हमारे जीवन का अंतिम उद्दीष्ट भी है ! और यही अंतिम सत्य भी है !
नर का नारायण बनना और नारायण बनकर , ईश्वर निर्मित सृष्टी में , उसी ईश्वर का कार्य निरंतर करते रहना ही , मानवी देह का ईश्वरी प्रायोजन है !
मगर हम सभी यह ईश्वर का प्रायोजन ही भूल जाते है !
और जन्म जन्मों तक देह बदल बदलकर भटकते रहते है !
और सत्य से सदैव दूर भी रहते है ! स्वार्थ ,मोह ,अहंकार ,लालच जैसे पिंजड़े में हम आजीवन कैद रहकर जिते है , और जीवन का मूल उद्देश्य ही भूल जाते है !
और आजीवन एक झूठे भ्रम में और माया में फँसकर जीवन बरबाद कर देते है !
अंतिम सत्य ईश्वर है और यही ईश्वर जन्मजन्मांतर तक हमारे साथ रहता है , यही अंतिम सत्य हम भूल बैठते है !
और झूठे रिश्तेनातों के मोहमाया के मायाजाल में फँसकर जीवन बरबाद कर देते है !
मेरे रिश्तेनाते , मेरा धनवैभव यही मायाजाल और मृगजल में फँसकर जीवन व्यर्थ बरबाद कर देते है !
और मनुष्य देह का मूल ईश्वरी प्रायोजन ही भूल बैठते है !
वास्तव में हमारा यह मानवी देह अमुल्य तो है ही ,साथ ही नर का नारायण बनकर , उसी ईश्वर का कार्य करते रहना ही , और उसी ईश्वर के बनाये गये सत्य के रास्ते पर चलकर और ईश्वरी सिध्दांतों को बढावा देनेवाले सत्य सनातन धर्म का कार्य आजीवन करते रहना ही हमारे जीवन का ईश्वरी प्रायोजन होता है !
और यह अंतिम सत्य केवल और केवल हिंदु धर्म ही सिखाता है !
मगर दुर्दैव से , लगभग अनेक प्रतिशत हिंदु ही जीवन का मूल उद्देश्य और ईश्वरी प्रायोजन भूल जाते है ! और रास्ता भटककर जीवन व्यर्थ गँवाते है !
और हिंदुत्व का तथा सत्य सनातन धर्म का कार्य करने में भी हिचकिचाते रहते है !
मैं देह नहीं , मैं अनादी अनंत आत्मा हूं , यही महत्वपूर्ण बात भूलकर , देहतत्व में अटककर ही व्यर्थ जीवन बरबाद कर देते है !
और यही कारण है की ,
ईश्वर निर्मित सत्य सनातन धर्म
संपूर्ण धरती पर पिछे हटता जा रहा है !
मगर अब ऐसा नहीं होगा !
सत्य की जीत होगी !
होकर रहेगी !
संपूर्ण धरती पर , सत्य सनातन की ही अंतिम जीत होगी !
और जल्दी ही होकर ही रहेगी !
और धरती पर केवल और केवल ईश्वर निर्मित सत्य सनातन धर्म ही बचेगा !
और यह क्षण भी दूर नहीं है !
अधर्म का और उन्मादी अधर्मीयों का हाहाकारी और विनाशकारी अंधेरा भी हटेगा !
और सत्य सनातन धर्म का संपूर्ण धरती पर सुर्योदय भी होगा !
होकर ही रहेगा !
क्योंकि ईश्वर जब ठान लेता है ,
तब वह करके ही दिखाता है !
साम - दाम - दंड - भेद निती अपनाकर !
कृष्णनिती से !
और शायद किसी को माध्यम बनाकर भी !
यह माध्यम आप में से भी कोई हो सकता है ! अथवा शायद मैं भी हो सकता हूं !?
मगर इसके लिए और सत्य को पहचानने के लिए ,
दिव्यत्व चाहिए , दिव्य दृष्टि भी चाहिए !
सत्य सनातन धर्म की जय हो !!
हरी ओम्
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