दुसरों को पिडा देनेवाले दुष्ट आत्माएं

 दुसरों को पिडा देने से पहले....!

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जो लोग विनावजह दुसरों को पिडा देते है,विषेशत: दुष्ट लोग,

उनको मेरे लेख पर एक बार नही सौ बार सोचना होगा।

समझो जीस प्रकार से ऐसे व्यक्ति दुसरों की बदनामी करना,उसपर झूटे आरोप लगाना,परेशान करना ऐसे निंदनिय दुष्कर्म करते है...

ठीक उसी प्रकार से उन दुष्टों को किसी दुसरे व्यक्ति ने दुख दिया, पिडा दी,विनावजह बदनामी की,अपमानित किया,झूटे आरोप लगाये...

तो?तो क्या ऐसी दुष्टात्माएं ऐसे आरोप सह सकेगी ?

समाज में ऐसी ही विकृती की वजह से,गुनहगारी बढती है।

अगर कोई किसी को जानबूझकर अपमानित करता है तो अपमानित व्यक्ति प्रतिशोध की आग में जलता है,और मौके की तलाश में रहकर, बदला लेता है।इसीलिए समाज में अनेक प्रकार की विकृतियां भी जन्म लेती है।


प्रतिशोध की ज्वाला तो अनेक सजीवों में देखने को मिलती है।छोटिसी चींटी को भी किसी ने पिडा दी तो चींटी भी पिडा देनेवाले को उल्टा काटती ही है।


रामायण और महाभारत में भी प्रतिशोध की ज्वाला प्रदिप्त थी।यह असुरी और ईश्वरी गुणों का द्वंद्व भी है।

इसीलिए कभी भी किसिको जानबूझकर या अज्ञानतावश अपमानित नही करना चाहिए।

समाज में अनेक लोग ऐसे भी होते है की,दुसरों की बात सुनकर, उसको ही यकीन मानते है।सच क्या-झूट क्या,सही कौन-गलत कौन इसकी शहनिशा किये बगैर ही,दुसरों के दिलों पर कुठाराघात करते है।

आजकल तो सज्जनों का मजाक उडाने में कुछ पापात्माओं को बहुत आनंद मिलता है।

मगर... गलती से भी संत,सत्पुरुष, महात्मा इनको पिडा नही देनी चाहिए।

क्योंकि उन महात्माओं में कोई दिव्य पुरूष, दैवी शक्तीसंपन्न महात्मा या अदृष्य ईश्वरी शक्तीसंपन्न सिध्दपुरूष भी हो सकता है।और उसके दिल दुखाने से,उसके श्रापमात्र से सभी प्रकार का राजऐश्वर्य या ऐश्वर्य धिरे धिरे लुप्त हो जाता है।और उस पापात्मो को अपमानित नारकीय जीवन का जीवनभर सामना करना पडता है।

इसे ही बूमरैंग भी कहते है।

एक बुमरैंग की कथा है।एक पापी दुष्टात्मा, एक तपस्वी, पुण्यात्मा को विनावजह बहुत पिडा,तकलीफ देता था।

ढोंगी,लबाड ऐसा कहता था।

और एक दिन...

वह पापत्मा एक गाडी के निचे आकर,एक्सिडेंट होकर,बेमौत मर गया।

भगवान की अजब लिला।

यही सच्चाई है,वास्तव है।इसिलए वयस्क आदमी हमेशा कहते है की,दिव्य पुरूषों के सामने,संतोंके सामने हमेशा लीन ही रहना चाहिए।लीन रहे ना रहे,कम से कम उस पुण्यात्मा को कभी भी अपमानित नही करना चाहिए।

अगर वह महात्मा, संत अगर श्राप भी नही देता है...स्थितप्रज्ञ होने के कारण शांत रहता है तो...अद्भुत शक्तिद्वारा प्रत्यक्ष कालपर भी विजय प्राप्त करनेवाले महासिद्ध योगी भी होते है।और खुद भगवान अपने ऐसे उच्च कोटी के भक्त का अपमान कभी भी सहन नही करते है।उस दुष्टात्मा को तुरंत या उसके पापों के घडे पूरे होने के बाद,

दंडित करते ही है।

और पुरानी कहावत भी है की,

भगवान की लाठी की आवाज नही आती है।


इसीलिए भाईयों, अगर कोई किसिको विनावजह पिडा,तकलीफ, यातना,दुख,कष्ट दे रहा है तो उस पापात्मा के पाप में सहभागी मत बनो।ऐसे दुष्टात्मा का जमकर विरोध करो।और संतों का,सत्पुरुषों का आशिर्वाद प्राप्त करो।

सही क्या-गलत क्या,सच क्या-झूट क्या...

यह सभी जानने,पहचानने को भगवान ने हमें बुध्दि दी है।नरदेह भी मिला है।

गाय-भैंस, कुत्ते-बिल्लियां भी सच्चा और झूटा आदमी जानती पहचानती है।

और नरदेह का भी यही ईश्वरी प्रायोजन है।सच और झूट पहचानकर, सच का साथ देने में ही जीवन का सार्थक भी है।


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

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