संपूर्ण लेखांक भाग ३३

 [4/30, 11:59 A: एक कुत्ते से संवाद...।

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मुझे हमेशा सजीवों से संवाद करने की आदत है।

तो एक दिन मैंने ऐसे ही एक कुत्ते से संवाद किया।

तो इस प्रकार से संवाद रहा।

वैसे तो कुत्ते बहुत इमानदार होते है।अगर रास्ते का कुत्ता भी हो तो वह भी कभी इमान नही छोडता है,या चंद लालच में,पैसों के लालच में कभी इमान बेचता नही है।

सिर्फ़ एक बार किसी कुत्ते को अगर एक रोटी भी सिर्फ़ एक रोटी भी दी तो वही कुत्ता जीवनभर हमसे बेईमानी करना दूर,हमें हर पल बडे प्रेम से बाते करता रहता है।और जीवनभर केवल प्रेम ही करता रहता है।

तो मैंने बस्स युं ही थोडा सा संवाद किया उससे।

जो इस प्रकार रहा।

मैंने उसको पूछा,

" क्या चल रहा है ?"

उसने उत्तर दिया, बडा रंजक और सत्य भी ।

कुत्ता बोला,

" बस्,मजे में हुं।ना इंन्सानों जैसी मुझे कभी चिंता सताती है।ना कभी भविष्य को लेकर,बिवी बच्चों के लिए चिंतित रहता हुं।

ना घर चाहिए, न बंगला,न गाडी।न सोना,न चांदी।ना रूपया पैसा चाहिए, ना ऐशो आराम।न पंच पक्वान्न चाहिए, ना सोने की थाली।

इसीलिए हमेशा मस्त रहता हुं,खुश रहता हुं।अपने ही मस्ती में मस्त होकर जीता हुं।

ना बिवी चाहिए, ना बच्चे।और ना ही उनके भविष्य की चिंता।

न मोक्ष चाहिए, न मुक्ति चाहिए।न स्वर्ग चाहिए, न आत्मज्ञान चाहिए, न ब्रम्हज्ञान चाहिए।

रास्ते पर रहना,रास्ते पर ही सोना।रास्ते पर ही खाना,पिना।मस्त मस्त जीना।

ना सत्ता संपत्ति का लालच है,ना किसी का धन हडपने की योजनाएं बनाना है।

भगवान ने ,कुदरत ने जैसा जनम दिया, वैसा मस्त होकर,बडे आनंद से जीता हुं।ना कभी मृत्यु की चिंता या डर सताता है,ना ही कभी अगला जनम क्या होगा इसपर सोचता हुं।

प्रारब्ध गतीअनुसार भगवान जो भी अगला देह देगा,उसी में फिर से मस्त रहुंगा, सिर्फ मानव योनी छोडकर।"


मित्रों, उसकी दिव्य बाणी,उसका दिव्य ज्ञान सुनकर सचमुच में मैं हैरान रह गया।

फिर मैंने आगे उसको एक और प्रश्न किया,

" अरे,इंन्सान तो कभी कभी स्वार्थ के लिए हैवान भी बन जाता है।अपने भी कभी कभी लालच में धोका देते है।इमान भी बेचते है।अगर किसी को एक लाख क्या,एक करोड़ भी दिए तो भी लालच में आकर कभी धोका देगा,घात करेगा,विश्वास घात करेगा, इसका कभी कोई भरौसा नही है।

मगर तु तो कुत्ता होकर भी इमानदारी से जीवनभर रहता है।सिर्फ़ एक रोटी भी तुझे दी,तो तु जीवन भर याद रखता है,और उसपर आत्मा का सच्चा, पवित्र प्रेम ही करता है।

इसकी वजह क्या है..?"

मेरे ऐसे कहने पर उस कुत्ते ने मेरी तरफ देखा,थोडासा मुस्कुराया।और मेरी तरफ देखते देखते वहाँ से चला गया।

मेरी तरफ देखने का और उसकी मुस्कुराहट का मैं अभीतक उत्तर ढुंड रहा हुं।

शायद आप में से कोई उत्तर देगा।


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/3, 5:51 AM] : कथा एक साधु की...।

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अंधेर नगरी में अनेक विद्वानों के साथ, सत्पुरुष -पुण्यवंतों के साथ, साधुसंतों के साथ बारबार अत्यधिक जघन्य अत्याचार किए गए।

कई साधुसंतों को षड्यंत्र द्वारा जेलों में भेज दिया गया,कही साधुओं की गौमाता सहित हत्या की गई।

सत्य को दबाया गया।


भयंकर क्रुर राक्षसी राज्य लाने के लिए अनेक अती भयावह कुटनितिक योजनाएं बनाई गई।


कथा है आटपाट नगरी के अंधेर राज की।

भयंकर अत्याचार होने के बावजूद भी फिरसे, बारबार साधुसंतों ने इस देवभूमि पर जनम लिया।


ऐसा ही एक महान साधु आ गया।समाज में उसका करिश्मा छा गया।

संस्कृति की पुनर्स्थापना होने लगी।लोग मदिरालय जाने के जगह पर मंदिर जाने लगे।वृत त्यौहारों का जमाना आने लगा।

जातियवाद समाप्त होने लगा।देश विदेश से,सभी धर्मों के लोग मतभेद भुलकर आपसी भाईचारा बढाकर,संस्कृति पूजक,ईश्वरवादी बनने लगे।

पान-तमाकू-मावा-गुटखा,सिगार, मांसाहार कम होने लगा।

संपूर्ण समाज आदर्श सिद्धातों की ओर,रामराज्य की ओर बढने लगा।

आसुरिक संपत्ति, आसुरिक राज्य में फिर तबाही फैलने लगी।


और फिर एक बार,

घात हुवा-भयंकर षड्यंत्र हुवा।और साधु को.....

अंदर कर दिया गया।

कमाल की बात हो गई।जीस समाज पर संस्कारों के बीज बोये जा रहे थे,वही समाज भी फिर एक बार संभ्रमित हुवा।और सच्चाई पर शक करने लगा।संशयवादी बन गया।

जो सच्चे थे,वह सब काफी हताश,निराश हो गए।


हुवा यंव की,एक छोटिसी लडकी ने आरोप लगाया,

" कुछ साल पहले मेरे साथ युं हुवा,त्यों हुवा।"

ना सबूत ना गवाह।

अंधेर नगरी का अजब कानून।अरे,ऐसा भी कभी हो सकता है ?

हो सकेगा ?

कुछ सालों बाद आरोप।बिना सबुत, गवाह के आरोप स्विकार करना।

बडा विचित्र, अजीब लगता है ना सुनकर ?


संस्कृति बढाने की सजा उस साधु को अंधेर नगरी में मिल गई।

इतना ही नही,उस साधु के बेटे पर ही ठीक ऐसा ही षड्यंत्र।फिरसे वही लडकी की बहन।वही कहानी।

कुछ साल पहले...डँश..डँश...

फिर ना सबुत, ना गवाह।

और अंधा कानून।

और बेटे को सजा।


अरे भाईयों, सुनकर-पढकर बडा विचित्र लगता है ना ?


अनेक साधुओं के साथ बारबार ठीक ऐसा ही हो गया है,हो रहा है।

आश्चर्य की बात यह है की,ऐसे अंधेर नगरी में अगर कोई व्यक्ति सत्पुरुषों के साथ ऐसा गंदा आरोप पंधरा सालों बाद भी लगायगी,तो वह आरोप, एक प्रतिशत भी सच्चाई न होकर भी,सबूत-गवाह न होकर भी सिधा उस तपस्वी, पुण्यात्मा को बिना सोचे समझे-गुनहगार शाबित करके,अंदर भेज दिया जायेगा।

बडा विचित्र है ना यह भी ?

पर करे तो क्या करें ? आखिर मामला तो अंधेर नगरी का है।यहाँ पर सत्य की अपेक्षा करना,और न्याय माँगना उचित होगा ?

सोचो,

समझो,

जागो।

ईश्वरी अवतार आकर हमें बचायेगा,ऐसी प्रतिक्षा मत करो।

अंधेर नगरी में बहुत पाणी बह चुका है।

सच्चाई पहचानो।


( यह कथा आटपाट नगरी की है और संपूर्ण रूप से काल्पनिक है।किसी व्यक्ति या समूह से इसका कोई दूर दूर से भी संबंध नही है।)


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/5, 7:18 AM]: जब सद्गुरू की कृपा होती है।

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मनुष्य देह का सर्वोच्च सार्थक केवल और केवल सद्गुरु कृपा ही होता है।यही जीवन का अंतिम सत्य और अंतिम साध्य भी है।

परम सद्गुरु कृपा से उस व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है।

और नरदेह का उद्देश्य भी यही है।

चौ-याशी लक्ष योनी अज्ञान में भटककर जब आत्मा मनुष्य योनी में प्रवेश करता है,तब अंतिम खोज तथा मनुष्य जन्म का अंतिम उद्देश्य प्राप्ति में लग जाता है।

और इसीलिए सद्गुरु की आवश्यकता होती है।

जब सद्गुरु कृपा होती है तो उस व्यक्ति को आत्मज्ञान, ब्रम्हज्ञान भी प्राप्त होता है।और वही पवित्र आत्मा ईश्वरी शक्ती से एकरुप हो जाता है।

यही आत्मा परमात्मा का मिलन है।

और यही जीवन की उच्च स्थिति अथवा समाधी अवस्था भी होती है।ऐसी स्थिति में वह पावन आत्मा स्थितप्रज्ञ बन जाता है।

सुखदुख के आगे निकल जाता है।और जीवन का केवल एक ही मकसद रहता है,ईश्वरी कार्य।और ईश्वरी सिध्दांतों की ,मानवता की जीत,और हैवानियत की हार।

मगर इसिमें वह जीवात्मा अटकता नही है।फिर भी ईश्वरी सिध्दांतों की जीत के लिए, लगातार कोशिश में रहता है।सुखदुख,यशअपयश,मानअपमान की चिंता किए बगैर।

स्वार्थ, मोह,अहंकार उस पवित्र आत्मा से सदैव दूर रहते है।

खुद की इच्छा का या अस्तित्व का प्रश्न ही नही रहता।ऐसे महात्मा ईश्वरी शक्ति से पूर्ण एकरुप हो जाते है।


जीवन की नैया तूफान में,चक्रावात में फँस जाए या भँवर में फँसकर डुब जाए,या फिर सद्गुरु इच्छा और ईश्वरी इच्छा से सभी सुखों की,राजऐश्वर्य की प्राप्ति हो जाए,यश-किर्ती मिले दोनो समसमान रहते है।

ना सुख की अभिलाषा है,ना दुख की चिंता है।

अगर ऐसा व्यक्ति राजऐश्वर्य में रहता है,और अगर सद्गुरु का आदेश मिल जाए,की...

सब राजऐश्वर्य छोडकर जंगल में चला जा।

तभी भी ऐसे व्यक्ति एक पल का भी विचार किए बिना,सद्गुरु इच्छा के लिए सबकुछ छोड देते है,अर्थात झूटी माया त्याग देते है।

और इसे ही असली बैराग्य भी कहते है।सद्गुरु इच्छा के सामने खूद के देह की या प्राणों की भी पर्वा, फिकर नही रहती है।

रामदास स्वामी के शिष्य कल्याण स्वामी का ठीक ऐसा ही उदाहरण है।


और ऐसे गुरु -शिष्य, भक्त-भगवान की जोडी युगों युगों तक प्रसिद्ध भी रहती है,और आत्मशक्ति द्वारा, चैतन्य शक्ति द्वारा जीवित भी रहती है।

जैसे की,

राम -हनुमान,

कृष्ण-अर्जुन,

रामदास स्वामी-कल्याण स्वामी,

राधा-कृष्ण,

मिरा -कृष्ण।

आत्मे दो,देह एक।

मगर ऐसा दिव्यत्व, ऐसा दिव्य प्रेम, ऐसा स्वर्गीय प्रेम, ऐसा ईश्वरी प्रेम बहुत ही कम देखने को मिलता है।


और जीसे भी ऐसा दिव्यत्व प्राप्त होता है,उसका जीवन धन्य होता है।

यही जीवन का उद्देश्य, सफलता और नरदेह का ईश्वरी प्रायोजन भी है।

ऐसे सद्गुरु के दिव्य प्रेम से तो मेरा जीवन सफल हो गया।

पंचमहाभूतों का यह देह निमित्तमात्र ,मात्र बन गया।कर्ता करविता मेरे सद्गुरु तथा ईश्वर बन गया।


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/14, 10:46 AM] बंगाली बाबा...! ! !

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आजकाल अनेक जगहों पर,बसों में,ट्रेनों में बंगाली बाबाओओं के पोस्टर दिखने लगे है।

लोगों को फँसाकर पैसा निकालने का यह एक आसान तरिका बन गया है।

ऐसे बंगाली बाबांओं पर जादा ध्यान देने की जरूरत आई है।क्योंकी अनेक भोलेभाले लोग ऐसे बंगाली बाबाओं के चक्कर में आ रहे है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी हो रही है की,अनेक अधर्मी तथा असुरी लोग हिंदु जैसे नाम धारण करके,साधु-बाबा-महाराज बनकर लोगों को ठगा रहे है।इसी वजह से जो सच्चे साधु है वह भी ऐसे नाम बदलने वाले बाबांओं के कारण बदनाम हो रहे है।

जैसे की राजनिती में भी अनेक ठग हिंदुओं का नाम धारण करके हिंदुओं को और संपूर्ण हिंदुस्थान को फँसा रहे है।

जैसे की बैनर्जी,गाधी,कन्हैया कुमार,नेहरु,केजरीलाल जैसे अनेक तोतया हिंदुओं को फँसा रहे है।

अगर इसमें सच्चाई भी है तो ऐसे महाठगियों की कानुनी जाँच होना अती आवश्यक भी है।और जाँच में सच्चाई निकली तो ऐसेठगों पर सख्त कानुनी कार्रवाई होना या उनकी संपत्ती, धन जप्त करके,उनका पद भी रद्द करके,ऐसे नकली लोगों को तुरंत सलाखों के पिछे कर देना चाहिए।

ऐसे नाम बदलकर देश को,देशवासियों को,समाज को फँसानेवालों का पर्दाफाश होने की आवश्यकता है।

शायद कोई शोधपत्रकार आर.टी.आई.के अंतर्गत ऐसे महाठगियों का पर्दाफाश करके,उनको सजा दिलायेगा ऐसी उम्मीद करता हुं। 


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/15, 11:24 AM]: इस देश में डर...

क्यों लगता है ?

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कुछ फिल्मों के लोग कहते है की,

इस देश में डर लगता है।

जानबुझकर ऐसा बयान देनेवालों को मेरे व्यक्तीगत प्रश्न है।शायद ,डर लगनेवाले जरूर उत्तर देंगे।

(1)हिंदुस्थान यह एक ऐसा देश है जहाँ पर पाकिस्तान या दुसरे मुस्लिम देशों से भी,सभी धर्म-पंथीय, मुस्लिम जादा सुरक्षितता महसुस करते है,और यह सच्चाई भी है।

(2)जिनको इस देश में डर लगता है,वहाँ के नागरिक डर लगनेवालों पर भी प्रेम करते है,उनकी फिल्मे देखते है,फिल्मे सुपर हिट भी बनाते है,और डर लगनेवालों की झोलियाँ रूपयों से भर देते है।

(3)डर लगनेवाले,"हिंदु आतंकवाद",शब्द कहनेपर भी हिंदु डर लगनेवालों पर बिना भेदभाव करके प्रेम करते है।तो भी इनको डर क्यों और कैसे लगता है यह मेरी समझ में नही आता है।

(4)डर लगनेवालों को हिंदु सरपर लेकर नाचते है,

फिर भी इनको डर कैसे लगता है ?

और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न,

(5)अगर इनको सचमुच में इतना डर लगता ही है ,तो भी इस सहिष्णु देश में क्यों रहते है ??तुरंत देश छोडकर कोई सुरक्षित देश में या पाकिस्तान में क्यों नही चले जाते?

वहाँ जानेपर इनको सच्चाई जरूर समझ में आयेगी।

(6)यहाँ के समाज की भयंकर निंदा करनेपर भी बडे आराम से इस देश में ही रहनेपर इनको शरम क्यों और कैसे नही आती है ?

(7)इनका इतना भयंकर गीरा हुवा वक्तव्य सुनकर भी यहाँ के सहिष्णू देशवासी इनसे फिर भी प्रेम करते है,इनकी फिल्मे देखते है,पैसों से मिलनेवाली सभी सुखसुविधाएं,ऐशोआराम की जिंदगी देते है।

फिर भी इनको डर क्यों लगता है ?

इतने नीच,कृतघ्न और गिरे हुए तो जानवर भी नही होते है।जानवरों को भी सच्चा प्रेम समझता है।और ये...?

और अगर समझो की,

इतने गिरे हुए लोगों पर सचमुच में इस देश के समाज ने बहिष्कार किया तो क्या करेंगे?

इनकी फिल्मे देखना बंद किया तो क्या करेंगे?

आर्थिक फायदा बंद किया तो क्या करेंगे?

कहाँ जाओगे,क्या खाओगे ?

नमकहरामों,जिस थाली में खाते हो,उसी थाली में छेद मत करो।

नही तो समाज तो क्या,समय और भगवान भी क्षमा नही करेगा।

असुरी सिध्दांतों को छोडकर ईश्वरी सिध्दांत और मानवता का स्वीकार करो।

दृष्टि साफ करो।और सहिष्णु समाज की ओर एक अच्छी नजरों से देखो।

फिर...

आपको...

डर...

नही सताएगा।

इस देश का,इस समाज का खाकर इस देश को,और देशवासियों को गाली मत देना।

डर लगनेवालों,

एक बार नही सौ बार सोचना।सच्चाई का स्विकार करना और सच्चाई में ही जीना।


क्या यह वास्तव, कडवी सच्चाई मंजूर है ?


हरी ओम।

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जागृत पत्रकार,

विनोदकुमार महाजन।

[5/16, 1:39 PM]  POWER OF MEDITATION 

(Power of Beej Mantra) 


इन मंत्रों से रातों रात होता है चमत्कार


>बीज मंत्र पूरे मंत्र का एक छोटा रूप होता है जैसे की एक बीज बोने से पेड़ निकलता है उसी प्रकार बीज मंत्र का जाप करने से हर प्रकार की समस्या का समाधान हो जाता हैं. अलग- अलग भगवान का बीज मंत्र जपने से इंसान में ऊर्जा का प्रवाह होता हैं और आप भगवान की छत्र-छाया में रहते हैं.


बीज मंत्र के लाभ

>अपनी समस्याओं के निवारण हेतु बीज मंत्रों का जप करना चाहिए। इसका चमत्कारी प्रभाव होता है और तुरंत लाभ मिलता है।


>बीज मंत्र हमें हर प्रकार की बीमारी, किसी भी प्रकार के भय, किसी भी प्रकार की चिंता और हर तरह की मोह-माया से मुक्त करता हैं. अगर हम किसी प्रकार की बाधा हेतु, बाधा शांति हेतु, विपत्ति विनाश हेतु, भय या पाप से मुक्त होना चाहते है तो बीज मंत्र का जाप करना चाहिए.


1. दीर्घायु : व्यक्ति को लम्बी आयु की प्राप्ति होती हैं. 

2. धन : व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है.

3. परिवार का सुख : व्यक्ति पारिवारिक सुखों से तृप्त होता है.

4. शत्रु का नाश : व्यक्ति की शत्रु पर जीत होती है.

5. जीवन शांति : व्यक्ति जीवन में शांति का अनुभव करता हैं.


>जो लोग किसी कारणवश मंत्रों का जप नहीं कर सकते हैं या अन्य कोई भी उपाय करने में असमर्थ हैं उन्हें अपनी समस्याओं के निवारण हेतु बीज मंत्रों का जप करना चाहिए। इसका चमत्कारी प्रभाव होता है और तुरंत लाभ मिलता है। बीज मंत्रों के जप के लिए कोई विशेष विधि-विधान की पालना करनी आवश्यक नहीं है, केवल मात्र सच्चे मन और श्रद्धा से भगवान पर विश्वास रखते हुए जप करें। कुछ ही दिनों में आपको प्रत्यक्ष चमत्कार दिखाई देगा। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ आवश्यक बीज मंत्रों के बारे में


>सभी बीज मंत्रों के अक्षर गूढ़ संकेतों से परिपूर्ण होते हैं जिनका अर्थ मंत्रशास्त्र से जाना जा सकता है जैसे भगवान गणेश का बीजमंत्र


> बीज इस प्रकार जापे जाते हैं- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं,हलीं, त्रीं,क्ष्रौं, धं,हं,रां, यं, क्षं, तं.


>मूल बीज मंत्र

मूल बीज मंत्र "ॐ" होता है जिसे आगे कई अलग बीज में बांटा जाता है- योग बीज, तेजो बीज, शांति बीज, रक्षा बीज l


> दूं  (दुर्गा बीज मंत्र )

जिसका अर्थ है : हे माँ, मेरे सभी दुखों को दूर कर मेरी रक्षा करो. दुर्गा बीज मंत्र का उच्चारण करने से दुर्गा माँ ज़िदगी में आई हर रुकावट पर विजय हासिल करने में मदद करती हैं.


> क्रीं (काली बीज)

क्रीं, मंत्र शक्ति या काली माता का रूप होता हैं. सभी प्रमुख तत्वों जैसे आग, जल, धरती, वायु और आकाश पर विजय पाने के काली माता बीज मंत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली होता हैं. सभी शत्रुओं का नाश करने में भी ये मंत्र सफल होता हैं.


>गं (गणपति बीज)

इसमें ग्- गणेश, अ- विघ्ननाशक एवं बिंदु- दुखहरण हैं। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है- विघ्ननाशक श्री गणेश मेरे दुख दूर करें। इस मंत्र के जप से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है और पैसा आने लगता है।


>श्रीं (लक्ष्मी बीज)

इसमें श्- महालक्ष्मी, र्- धन संपत्ति, ई- महामाया, नाद- विश्वमाता तथा बिंदू- दुखहरण हैं। इसका अर्थ है- धन संपत्ति की अधिष्ठात्री माता लक्ष्मी मेरे दुख दूर करें। इस मंत्र के प्रयोग से सभी प्रकार के आर्थिक संकट दूर होते हैं, कर्ज से मुक्ति मिलती है और शीघ्र ही धनवान व पुत्रवान बनते हैं।


>क्लीं (कृष्ण बीज)

इसमें क- श्रीकृष्ण, ल- दिव्यतेज, ई- योगेश्वर एवं बिंदु- दुखहरण है। इस बीज का अर्थ है- योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर करें। यह मंत्र साक्षात भगवान वासुदेव को प्रसन्न करने के लिए है। इससे व्यक्ति को अखंड सौभाग्य मिलता है और मृत्यु के उपरांत वह बैकुंठ में जाता है।


>हं (हनुमद् बीज)

इसमें ह्- हनुमान, अ- संकटमोचन एवं बिंदु- दुखहरण है। इसका अर्थ है- संकटमोचन हनुमान मेरे दुख दूर करें। बजरंग बली की आराधना के लिए इससे बेहतर मंत्र नहीं है।


>” ह्रौं ” (शिव बीज)

 इस बीज का अर्थ है- भगवान शिव मेरे दुख दूर करें। इस बीज मंत्र से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इससे व्यक्ति पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं और रोग, शोक, कष्ट, निर्धनता आदि से मुक्ति मिलती है।


>ऐं (सरस्वती बीज)

ऐ- सरस्वती, नाद- जगन्माता और बिंदु- दुखहरण है। इसका अर्थ है- जगन्माता सरस्वती मेरे दुख दूर करें। इस बीज मंत्र के जप से मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है और विद्या, कला के क्षेत्र में व्यक्ति दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता चला जाता है।


> दं (विष्णु बीज)

जीवन में हर प्रकार के सुख और एश्वर्य की प्राप्ति हेतु इस बीज मंत्र द्वारा भगवान श्री विष्णु की आराधना करनी चाहिए |ल

[5/17, 1:50 PM]  भगवान के लिए...!

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हम सभी खुद के लिए,बिवी बच्चों के लिए जीते है।

बचपन में पढाई,जवानी में उद्योग-ब्यापार में ,धन कमाने मेंऔर बुढापा दुख-दर्दो में बित गया।

ना भगवान का नाम लिया ना जाप किया ना फुरसत निकालकर धर्मकार्य किया।खाया-पिया-मौज किया-ऐशोआराम किया।चार पैसे कमाये,बिवी बच्चों में जीवन निकल गया।

और युंही देखते देखते जीवन हाथ से निकल गया।

तो भगवान के लिए,भगवत् कार्य के लिए, संस्कृती-संस्कारों के लिए क्या किया..???

जैसा आया वैसा चला गया।भगवान के लिए क्या किया ?

किडे मकौडे भी पैदा होते है और मर जाते है।ठीक इसी तरह से जीवन गँवायाँ,जीवन व्यर्थ गया।

दुर्लभ मानवी देह मिलनेपर भी भगवान को याद ना किया।

इसिलिए हे प्राणी,

रट ले प्रभु का नाम।

कर ले जीवन का उध्दार।

मनवा रे...!

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विनोदकुमार महाजन।

[5/17, 1:55 PM] : बडे विचित्र होते है सिध्दपुरूष...!

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कभी मौन रहते है,तो कभी चिल्लाते है,कभी एकांत में रहते है तो कभी जोर से बाते करते रहते है।

कभी नंगे साधु बनकर घुमते है,तो कभी चिल्लम भी फुँकते है।कभी किसी को गाली भी देते है,तो किसी का जानबुझकर अपमान भी करते है।

कभी गुप्त रूप में रहते  है,तो कभी प्रकट रूप में शक्तिमान बनकर ईश्वरी कार्य बढाते है।

इनको ना नाम की,धन की,वस्त्रों की,प्रतिष्ठा की जरूरत होती है।ना नाम पैसा कमाने की अभिलाषा होती है।

कभी किसी के बदन पर थुकते है,तो कभी किसी को ईश्वरी-स्वर्गीय पवित्र प्रेम दिखाते है।

बडे विचित्र होते है सिध्दपुरूष।

इनको जानना,पहचानना भी बडा मुश्कील कार्य होता है।

इसिलिए इनको अवलिया कहते है।जो मन में आया वही करते है।

ऐसे अनेक संत-साधु-सत्पुरुष-महात्मा-दिव्यात्मा खुद की पहचान छुपाते है।अहंकार शुन्य बनकर ईश्वरी कार्य गुप्त रूप से बढाते है।

ऐसे सिध्दपुरूष बडे विचित्र होते है।

गुप्त रूप से,सुप्त रूप से ईश्वरी कार्य कर रहे ऐसे अनेक पुण्यात्माओं को ,सिध्द पुरूषों को मेरे कोटी कोटी प्रणाम।

हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/17, 1:56 PM] भगवान कहते है....!

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भगवान कहते है,

संपूर्ण ब्रम्हांड पर,चराचर पर मेरा सदैव, नित्य, सनातन वास्तव्य था,है और आगे भी रहेगा।

रही पृथ्वी की बात।तो यहाँ पर भी मेरा ही राज्य था।मगर न जाने क्यों कलियुगी भयानक इंन्सान ने मुझे ही चुनौती दी।मुझे,मेरे सत्य को,मेरे सत्य सनातन को,मेरे संस्कृति को तबाह करने की कोशिश की।

अनेक जगहों पर मेरे मंदिर भी गिराये,और सत्य को,मैंने बनाई हुई संस्कृति को,जमीन के निचे दफनाकर असत्य की हैवानियत और उसका नंगानाच शुरू हो गया।

कृष्ण अवतार में मैं गाय को माता मानकर उसकी पूजा करता था,उस गौमाता की खुलेआम हत्याएं करके उनके खून की नदियाँ बहाई जा रही है।

हे हैवानियत भरे राक्षसी इंन्सान मैं तेरा यह चार दिन का सारा खेल निराकार रूप से देख रहा हुं।

जब मैं उग्र बनूंगा तब तेरा सारा यह हैवानियत भरा खेल मैं समाप्त कर दुंगा।

मैं पापियों का नाश करने के लिए, अधर्म का नाश करने के लिए, कब आऊंगा, कब अवतरित हो जाउंगा और कार्य पूरा करके,धर्म की पुनर्स्थापना करके,फिर से स्वर्ग को कब वापिस लौट जाऊंगा, इसका किसिको पता भी नही चलने दुंगा।

इतना तो पक्का तय है की,मैं आउंगा, जरूर आऊंगा।पापियों का कर्दनकाल बनकर मैं आउंगा।

मैं गीता का वचन जरूर निभाउंगा।

उन्मत्त, उन्मादी इंन्सान.......! 

संभल जा।


भगवान कहते है...

सत्य को,

सत्य सनातन को,ईश्वरी सिध्दांतों को,

जो भी ललकारे गा...

उसका अंत मैं कर दुंगा।

युगों युगों से यह मेरा खेल....

चलता रहा है।

आगे भी चलता रहेगा।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/18, 5:49 PM] : शुद्ध आचरण...

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अखंड ईश्वरी चिंतन से आचरण शुध्द होता है।और आचरण शुध्द होनेपर आत्मशुध्दी हो जाती है।आत्मशुध्दी होने से ईश्वरी साक्षात्कार होने लगते है।

और धिरे धिरे सो...हं का ज्ञान होने लगता है।

गुरूमंत्र का जाप,प्राणायाम, ओमकार प्राणायाम द्वारा आत्मचेतना जागृती होने लगती है।और वह आत्मा पावन आत्मा या सिध्दपुरुष बन जाता है।और धिरे धिरे ईश्वरी शक्ति से एकरूप हो जाता है।

मनुष्य जन्म का यही अंतीम साध्य होता है।निरंतर साधना से इसका सही ज्ञान होकर,ब्रम्हज्ञान प्राप्ति हो जाती है।और अनेक सिध्दियां भी मिल जाती है।


अब देखते है आत्मशुद्धि क्या है।जब मैं देह नही आत्मा हुं,और युगों युगों से मैं ईश्वरी इच्छा से चैतन्य मई हुं ऐसा जब महसूस होने लगता है,तब आत्मशुद्धि होने लगती है।

मतलब उस प्राणी के आचार विचार शुध्द होने लगते है।

जैसे दुसरों के धन पर कभी भी हक ना बताना,या किसिका धन ना डुबाना।किसी का अगर एक रूपया भी हमारे पास रहता है तो वह पुण्यात्मा तुरंत उस आदमी का एक रूपया भी तुरंत वापिस कर देता है।उसकी यह धारणा बन जाती है की,अगर मैंने किसिका एक रूपया भी डुबोया,तो मुझे अगला जनम लेकर वह एक रूपया वापिस देना ही होगा।

माँसाहार, मदिरा प्राशन,झूट बोलना,किसी को फँसाना या किसी का धन डुबाना ऐसी गंदी बातों से वह पवित्र आत्मा हमेशा दूर रहता है।

परस्त्री से हमेशा दूरी रखना या किसी स्त्री की हवा भी नही लगने देना यही सब बाते आत्मशुद्धि में होती है।

व्यर्थ की बाते न करना,निरंतर साधना करते रहना,हमेशा मौन और एकांत में रहना,हो सके तो मनुष्य बस्तियों से दूर रहना,जैसे की जंगलों में रहना।

इसिलए सिध्दपुरुष हमेशा हिमालय में ही वास्तव्य में रहते है।क्योंकि मनुष्यों समुहों में रहनेपर अनेक विकार, वासना,लालसा,मोह,अहंकार निर्माण हो सकते है।

आत्मशुद्धि होने के लिए ही गंध,माला,टिका लगाना,मुर्तीपूजा,मंदिरों में जाना,तीर्थयात्रा करना,तिर्थस्नान जैसे कर्म करने पडते है।मगर जब आत्मशुद्धि हो जाती है तो ऐसे उपरी उपचारों की कोई भी जरूरत नही रहती है।आत्मशुद्धि और आत्मजागृती होनेवाला व्यक्ति अपने ही धून में,अपने ही मस्ती में और अखंड ईश्वरी चिंतन में रहती है।उसे ना योगक्षेम की चिंता रहती है,और नाही धन कमाकर ऐशोआराम की जिंदगी जिने का मोह रहता है।

मनुष्य जीवन में आत्मशुद्धि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।और इसीलिए शुध्द आचरण की जरूरत होती है।


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/21, 6:20 AM] : प्रेम चाहिए या पैसा ??

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जिसे सच्चा, पवित्र, ईश्वरी प्रेम चाहिए उसको पैसों का हिसाब किताब छोडना पडेगा।

क्योंकि भगवान भी ऐसे ही प्रेम के सदैव भुके रहते है।भगवान भी ऐसा देखते है की,मुझपर अखंड और निस्वार्थ प्रेम करनेवाला भक्त कब मिलता है।

इसिलए ईश्वरी कृपा प्राप्ति के लिए सबकुछ नौछावर करने की हमेशा तैयारी रखनी चाहिए।चाहे सुख हो या दुख,ईश्वर को कभी भी भुलना नही चाहिए।भगवान हमेशा समर्पित प्रेम करनेवाले भक्त पर ही असली प्रेम करता है,और उसी भक्त पर ही सदैव कृपा भी करता है।और जीसपर सदैव ईश्वरी कृपा रहती है,वह व्यक्ति सदैव आनंदित ही रहता है।

मेरा तेरा,धन वैभव,सुख दुख ,मोह माया सबकुछ छोडकर केवल और केवल ईश्वरी चरणों पर ही जो भक्त अपना जीवन और सबकुछ समर्पित करता है,उसीपर ही भगवान की कृपा होती है।

सदैव भगवान को माँगनेवाले, मेरा तेरा कहनेवाले, स्वार्थी, अहंकारी लोगों को भगवन् कृपा और भगवत् प्रेम कभी भी नही मिल सकता।

इसीलिए अगर किसिको अगर धन,वैभव,पैसा ही चाहिए तो उन्होंने भगवत् कृपा की अपेक्षा करना ठीक नही रहेगा।और जिसको केवल भगवत् कृपा,ईश्वरी प्रेम चाहिए उन्होंने धन प्राप्ति या धन से मिलनेवाली सभी सुविधाओं की अपेक्षा छोड देनी चाहिए।इसिलए ईश्वरी कार्य करने  की अपेक्षा करनेवालों को सुखों की अपेक्षा छोडकर केवल और केवल ईश्वरी चरणों पर सबकुछ, पूरा जीवन समर्पित करना चाहिए।

तभी आत्मशुद्धि भी होगी और ईश्वरी कृपा भी होगी।और जब ईश्वरी कृपा होगी तब नामुमकिन भी मुमकिन में बदल जायेगा।और संपूर्ण जीवन भी बदल जायेगा।

भव्य दिव्य जीवन बन जायेगा।और यह केवल समर्पित प्रेम से ही साध्य होगा।

स्वार्थी, अहंकारी, शक्की ,झगडालू लोगों पर भगवत् कृपा कभी भी नही हो सकती।और ना ही ऐसे लोगों के जीवन में कभी बहार भी आ सकती है।

इसिलए सोचो,आपको प्रेम चाहिए या पैसा ? ?

पैसा मागोगे तो भगवत् कृपा और ईश्वरी कृपा कभी भी नही होगी।

और अगर केवल और केवल प्रेम ही मागोगे तो ईश्वर प्राप्ति के रास्ते आसान हो जायेंगे।


मगर आज बहुतांश लोगों को ना भगवान चाहिए, ना भगवत् कृपा चाहिए।बस् केवल धन चाहिए और धन से मिलनेवाली सभी सुविधाएं चाहिए।वह भी तुरंत और कम श्रम में या फिर श्रम किये बगैर ही।और इसीलिए ही आज मानव समुह दुखी है।

ना भगवान चाहिए,ना भगवत् कृपा चाहिए। ना लक्ष्मी चाहिए।ना समर्पित प्रेम चाहिए।चाहिए तो केवल पैसा,रूप्पेय्या।चाहे पाप का हो या पुण्य का।या फिर चाहे अच्छे मार्ग का हो या बुरे।

केवल पैसा ही चाहिए।

क्या यही कलियुग का माहौल है ?और ऐसे ही अती भयंकर माहौल की वजह से रिश्ते नाते समाप्त होते जा रहे है ?समर्पित पवित्र ईश्वरी प्रेम लुप्त होता जा रहा है ?


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/21, 6:20 AM]  पत्रकारों को आत्मरक्षा के लिए शस्त्र परवाना की जरूरत है।

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वास्तव में सत्य के रास्तों पर चलना ही अती कठिन है।क्योंकि जो सत्य के रास्ते से चल रहा है उसको अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पडता है।तलवार की धार पर चलने जैसा यह कार्य होता है।इसिलए अनेक सत्य वादियों को हमेशा अनेक प्रकार के संकटो का सामना करना पडता है।स्वकीय, समाज,आप्त ईष्ट भी हमेशा ऐसे सत्य वादियों के विरुद्ध होते है तथा सत्य वादियों को बदनाम करने का मौका ढुंडते रहते है।

और पत्रकार हमेशा सत्य के रास्ते पर चलने वाले ही होते है।और इसिलए पत्रकारों को हमेशा अनेक संकटों का सामना भी करना पडता है।

दुष्टों से बचने के लिए तथा आत्मरक्षा के लिए देवी देवताओं को भी सदैव शस्त्रसंपन्न ही रहना पडा है।

इसीलिए श्रीकृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र है,रामजी के हाथ में धनुष है,महादेव के हाथ में त्रिशूल है,हनुमानजी के हाथ में गदा है,माताजी के हाथ में तलवार है।

अगर देवीदेवता भी शक्तीसंपन्न और शस्त्रसंपन्न रहते है तो हर सत्य वादियों को और विशेषत:हर पत्रकारों को हमेशा शस्त्रसंपन्न ही रहना चाहिए।दुष्ट दुर्जनों का क्या भरौसा ?भगवान भी दुष्टों पर विश्वास नही करते।तो हम क्यों और कैसे भरौसा करें दुष्टों पर ?

इसीलिए हर पत्रकारों को केंद्र सरकार द्वारा तुरंत शस्त्रपरवाना भी मिलना चाहिए।और शासनद्वारा ही योग्य शस्त्र भी मिलना चाहिए।

सत्य-असत्य का,सज्जन-दुर्जन का का यह भयंकर विपरीत खेल सृष्टि के आरंभ से ही शुरु है,और सृष्टि के अंत तक शुरू ही रहेगा।

ईश्वर की अगाध लिला।दो विरूद्ध शक्तीयों का कभी भी न समाप्त होनेवाला संघर्ष।


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/27, 11:16 AM] निष्क्रिय सज्जन...!

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जी हाँ साथीयों, निष्क्रिय सज्जन।यह एक भयंकर समस्या है समाज में।

भयंकर बीमारी।

सज्जनों को हमेशा सजग और सतर्क होकर सत्य की रक्षा,धर्म की रक्षा करनी ही होगी।

कर्मण्य,अकर्मण्य के झूटे विवादों में मुझे दिलचस्पी नही है।और नाही निष्क्रिय सज्जनों के प्रती अनादर है।

फिर भी,

सज्जन व्यक्ति आत्मोद्धार तो करती है मगर समाज के लिए कुछ नही करती है।सबकुछ ईश्वर पर छोड देती है या फिर हर एक के अपने अपने कर्म गतीपर या प्रारब्ध गती पर छोड देती है।

फिर भी मेरा कहना है की सज्जनों ने कभी भी निष्क्रिय नही रहना चाहिए।सदैव सक्रिय रहना चाहिए।

अगर श्रीकृष्ण धर्मरक्षा के लिए शस्त्र ( सुदर्शन )हाथ में नही उठाते,अगर राजे शिवाजी आसुरिक संपत्ति के विरू हाथ में तलवार नही उठाते( अथवा गांधीजी के तत्वानुसार अहिंसा धर्म का पूर्ण स्वीकार करते तो क्या राजे शिवाजी को औरंगजेब क्षमा करता ?तो फिर गांधीजी को, शिवाजी राजे को भटके हुए देशप्रेमी... कहने का अधिकार कतई नही है...गांधीजी का यह एक तो आधुरा तत्वज्ञान था?

या फिर और कुछ...?

यह संपूर्ण विषय संशोधन का तथा विस्तृत लेखन करने का है।

खैर,यह विषय संपूर्ण अलग है )

या फिर मोदिजी राजनीति में नही आते...तो...?

तो क्या होता...?

सब अधर्म ही अधर्म, और पाप का महाभयंकर अंधियारा।

हाहाकार मच जाता।


इसीलिए सज्जनों ने हमेशा सक्रिय रहना ही चाहिए।अधर्म का विरोध करना ही चाहिए।और अगर समय की माँग है तो हाथ में शस्त्र धारण करना ही चाहिए।

( जैसे की ईश्वर को भी अहिंसा का त्याग करके शस्त्र उठाना पडा था )

और आज लोकतंत्र में सबसे शक्तिशाली हथियार है लेखनी।अधर्म का विरोध करने के लिए जबरदस्त शक्तिशाली हथियार।


यथोचित बुध्दि के बल पर समय समय पर,अधर्म का विरोध करना ही चाहिए।

एक उदाहरण देता हुं,

कश्मीरी हिंदु सज्जन ( पंडित )अगर भागने के बजाय अगर एक होकर हाथ में शस्त्र उठाते और मरने मारने पर तुले होते तो...क्या कश्मीरी पंडितों को आज त्राही माम् होकर,दस दिशाओं में सैरभैर होकर भटकना पडता ?

और विश्व के कोने कोने से जहाँ जहाँ से हिंदु भागा है,वहाँ पर आज अधर्म का अंधियारा होता?संस्कृति की तबाही होती?मंदिर गिराए  जाते?


आक्रमणकारियों से जादा दोष मैं निष्क्रिय सज्जनों को देता हुं।क्योंकि अगर एक सज्जन अगर सक्रिय होकर और शक्तीसंपन्न होकर दस सज्जनों को संगठित और सक्रिय तथा शक्तिशाली बनाता है तो...वह दस सज्जन और हजारों.. लाखों सज्जनों को सक्रिय एवं सतर्क बनाते है।

उदासिनता और निष्क्रिय सज्जनता की वजह से हमारे धर्म की,सत्य की आजतक अतीभयंकर क्षती हो चुकी है।

इसीलिए निष्क्रिय सज्जनों को तथा किताबी पंडितों को मैं नम्रतापूर्वक आवाहन करता हुं की,

राष्ट्र रक्षा,

धर्म रक्षा,

सत्य की रक्षा,

कुदरती कानून की रक्षा,

ईशत्व की रक्षा,

के लिए... निष्क्रिय सज्जनता का त्याग करके सक्रिय सज्जन बनना ही होगा।

हिंदु धर्म को,संस्कृति को,देवीदेवताओं को,सत्य को अगर कोई जानबूझकर बदनाम करने की मुहिम चला रहा है तो ताबडतोड उस अधर्मी को,निष्क्रिय सज्जनता का त्याग करके मुंहतोड,करारा जवाब देना ही चाहिए।


बैराग्य यह उच्च कोटी की अवस्था होती है।मगर उच्च कोटी का बैरागी अगर निष्क्रिय रहकर खुले आँखों से अधर्म और पाप को मौन होकर देखता है,तो यह भी अधर्म को बढावा देने की ही बात होती है,और अधर्म को बढावा देना भी मेरे विचारों से भयंकर पाप ही है।


कुटनीति द्वारा अधर्म को बढावा देने के लिए, विषेश निती द्वारा अगर सज्जनों को निष्क्रिय बनाने की योजना जीस समाज में बनाई जाती है,जैसे की हमारे ही देश में आजतक ऐसी घिनौनी साजिश की गई,और साधुसंतों को झूटे मामलों में फँसाया गया,अटकाया -लटकाया गया,और सज्जन शक्ती को निष्क्रिय बनाने की,और अधर्म का अंधियारा फैलाने की जी जान से इस देश में जानबूझकर कोशिश की गई है।इसीलिए अगर कोई सज्जन निष्क्रिय हो गया है,

यह बात मैं मानता हुं,सत्य को स्वीकार भी करता हुं।

मगर इसके बावजूद भी करपात्री जी जैसे अनेक महान तथा सक्रिय साधुओं ने भी अपनी जान की पर्वा किए बगैर धर्म की तथा सत्य की रक्षा की है,अथवा इस कार्य के लिए अपने जान की भी पर्वा नही की है।


और मुझे...

नवराष्ट्र तथा ईश्वरी राष्ट्र निर्माण कार्य के लिए, ऐसे ही सक्रिय सज्जनों की अपेक्षा है।


स्वामी विवेकानंद जी भी एक उच्च कोटी के योगी होकर भी,निष्क्रिय सज्जनता के बजाय सक्रिय सज्जनता का स्वीकार करनेवाले ही महान योगी थे,इसमें कोई संदेह नही है।

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत् गीता में क्रियायोग अथवा हटयोग का वर्णन किया है।इसकी सिध्दियाँ प्राप्त होते ही कुछ सज्जन अथवा साधु हिमालय में चले जाते है या फिर निष्क्रिय सज्जन बनकर समाज में ही रहते है।

और अक्कलकोट स्वामी,रामदास स्वामी,गजानन बाबा जैसे महान सिध्दपुरुष तथा हटयोगी समाज में ही रहकर सामाजिक उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते है।


जड विषय को ,

" चैतन्य...",में लाने की तथा इसके द्धारा अधर्म के अंधियारे को कम करने की इस लेख द्वारा कोशिश की गई है।

बाकी सब पठन करनेवालों पर ही छोड देता हुं।

छोटेसे लेख में जादा आषय लिखने की कोशिश की है।इसपर अनेक भाषाओं में,जागतीक स्तर पर किताबें लिखकर,सर्वधर्मीय समाज में चेतना जागृती तथा सत्य ज्ञान द्वारा सभी को...


" प्रेमपूर्वक तथा सत्य ज्ञान देकर...


घरवापसी का....

मेरा निरंतर प्रयास रहेगा।"


इस कार्य के लिए ना मुझे अनुयायी चाहिए, ना शिष्य।मगर तेजस्वी समाज निर्मिती के लिए,

तेजस्वी और धधगते अंगारे जैसे ,

युवक चाहिए।

संपूर्ण विश्व के सभी देशों में,और हर देश के कोने कोने में सक्रिय सज्जनों की तथा तेजस्वी युवकों की फौज खडी करनी है।

इस कार्य के लिए आप सभी का,


भी


प्रेमपूर्वक, तन-मन-धन से पूरा सहयोग एवं समर्थन मिलेगा ऐसी आशा करके,

लेखनी को पूर्ण विराम

देता हुं।


हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[5/30, 6:58 AM]  हिंदुओं का धन,

हिंदुओं के ही काम आये...।

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हिंदु समाज हमेशा सहिष्णू और भाईचारे में विश्वास रखनेवाला होता है।इसिलिए सदैव हमेशा सभी पर शुध्द एवं निरपेक्ष प्रेम तथा सहयोग करता आया है।

मगर अब बहुसंख्यक हिंदु देश में हिंदु समाज सच्चाई के बारे में सोच रहा है।

जैसे की हम सरकार को टैक्स देते है।उसी टैक्स के धन का उपयोग केवल और केवल समाजहित तथा देशहित के लिए ही किया जाना चाहिए।

जैसे की,

अगर यह धन किसी अन्य समाज के विकास के लिए जाता है तो ठीक है।

मगर,अगर यह धन अगर विकास के नाम पर पाकिस्तान प्रेमियों के जेब में जाता है तो हम इसका जमकर विरोध करेंगे।क्योंकी आखिर यह धन पाकिस्तान हमारे ही खिलाफ बम-बारूद खरिदने के लिए ही प्रयोग करेगा।

जैसे की कुछ ( 1 )पाकिस्तान प्रेमी फिल्म स्टार हमारे पैसों के बल पर बडे होते है,और पाकिस्तान की सहायता करते है,और उपर से सहिष्णू हिंदु समाज को ही , "हिंदु आतंकवादी ",कहते है तो यह बात अती भयंकर भी है और संतापजनक भी है।

( 2 )हमारा धन उनको सभी सुविधा देने के लिए तथा उनकी जनसंख्या बढाने के लिए और उनकी आबादी प्रचंड गती से बढाने के लिए जाता है,और इसिसे हमारे अस्तित्व को,हमारे भविष्य को,हमारी अगली पिढी के लिए खतरा बन जाता है तो...

हमारे पसिने की कमाई का और जो टैक्स के रुप में जाता है उसी धन का हमारे ही विनाश के लिए हम कतई प्रयोग में लाने नही देंगे।इसका हम संगठीत शक्ती बढाकर जमकर विरोध ही करेंगे।और हम सभी का यह नैतिक अधिकार भी है।

( 3 )अगर हमारे मंदिरों में जमा होनेवाला धन विकास कार्यों के नाम पर अगर पाकिस्तान प्रेमियों के जेब में विकास काम के नाम पर  जाता है तो क्या हम यह तमाशा खुले आँखों से देखते रहेंगे?

इसिलिए या तो हमारे मंदिरों के,धार्मिक संस्थानों का धन एक तो केवल हमारे ही विकास कार्यों के लिए होना जरूरी है।या फिर हिंदु धार्मिक स्थलों का नियंत्रण सरकार मुक्त होना चाहिए।

या फिर सभी धार्मिक स्थानों का नियंत्रण सरकार के हाथ में होना चाहिए।और सभी जमा होनेवाला धन देश के विकास कार्यों में आना चाहिए।

केवल हिंदु मंदिरों के धन पर सरकार का नियंत्रण, और दुसरों को उनका धन उनके ही विकास कार्यों के लिए करने का पूरा अधिकार,

यह दोहरी निती तुरंत बंद होनी चाहिए।

जैसे ,हमारे धन पर सभी का अधिकार।और उनके धन पर केवल उन्हीका ही अधिकार। यह कैसे चलेगा ?

हम सहिष्णू भी बन गए,अती सहिष्णू भी बन गए।मगर अगर हमारी सहिष्णुता हमारे ही विनाश पर तुली हो रही हो ,जैसे की हमारे धन से पाकिस्तान प्रेमियों को प्रोत्साहन मिलता है..या मिलता रहेगा तो...

हमें इसपर गौर से सोचना होगा,चिंतन करना होगा,हल निकालना होगा।और तुरंत कार्यान्वित भी करना होगा।

हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[6/1, 5:42: 🕉 हिंदुओं का अंतरराष्ट्रीय संगठन !🚩🚩🚩🚩🚩🚩

विश्व के हर कोने में हिंदु बसा हुवा है।सभी हिंदुओं को तेजीसे एक करके ईश्वरी सिध्दांतों के अनुसार और सत्य सनातन के अनुसार सृष्टि चक्र का नियमन हो तथा सभी मानव जाती का कल्याण हो,पशुपक्षियों का रक्षण हो,ग्बोबल वोर्मींग,तेजी से बढता हुवा सृष्टि का असंतुलन, पृथ्वी, पाणी,वायु इसी पर तेजी से बढ रहे प्रदुषण को रोककर, मानवी समुदाय तथा पेड जंगलों की रक्षा, पशुपक्षियों सहित सभी जीवजंतुओं का कल्याण, रक्षण इसी महान उद्देश्यों से यह आध्यात्मिक, मानवतावादी समुह बनाया गया है।

ईश्वर पर,ईश्वरी सिध्दांतों पर,ईश्वरी कानून पर,इंन्सानियत पर,कुदरत के कानून पर,पशुपक्षियों पर,गौमाता पर ,आपस में प्रेम-भाईचारा रखने वाले सभी मत-पथ-पंथ-जाती-धर्म-सांप्रदाय-समुह के व्यक्ति इस ईश्वरी संगठन में जुड सकते है,और ईश्वर ने दिया हुवा मनुष्य जन्म का उद्देश्य सार्थक कर सकते है।सत्य सनातन में रूची,आस्था, प्रेम रखने वालों का,निष्कपट व्यक्तियों का इस समुह में सहर्ष स्वागत है।


हरी ओम।

🕉✅✅✅

🚩🚩🚩🚩🚩


विनोदकुमार महाजन।

[6/1, 11:46 PM]  वायनाड...!

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मेरे एक मित्र तथा मानवता आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री.मुकेश शर्माजी ने मुझे वायनाड पर एक अच्छा लेख लिखने को कहा।मेरा यह परम सौभाग्य है ऐसा मैं मानता हुं।

वास्तव में अमेठी और वायनाड में विचित्र ध्रुवीकरण देखने को मिलता है।गले में जनेऊ, रूद्राक्ष माला,ललाट पर तिलक लगानेपर भी,और मंदिर मंदिर घुमने पर भी काँग्रेस का पारंपरिक मतदार संघ,अमेठी में राहुल गांधी हार गए।

मतलब साफ है।मतदाता अब जाग चुका है।और असलियत जान रहा है।अगर मतदाता को कोई स्वाँग रचाकर फँसाने की कोशिश करता है तो,मतदाता तुरंत असलियत पहचान जाता है।और जागरूक लोकतंत्र में ऐसा होना भी आवश्यक भी है।

अब वायनाड पर चलते है।

राहुल गांधी जी ने मंदिर मंदिर घुमने पर भी वहाँ के विशिष्ट समाज ने राहुल गांधी को नकारा नही तो अपनाया भी,और भारी बहुमतों से जीत भी करवाई।

प्रधानमंत्री श्री.नरेन्द्र मोदिजी ने केरल के लिए क्या नही किया ?

बाढपिडितों को राहत देने से वहाँ का समाज राष्ट्रप्रेम में जुडने के लिए, तथा मुख्य राष्ट्रीय प्रवाह में आकर विकसित होने के लिए, अनेक योजनाएं कार्यान्वित की।

क्या फायदा हुवा?राष्ट्रीय प्रवाह में आना दूर, मोदिजी को भी नकारा गया।

क्यों...?

आखिर यह मानसिकता क्या दर्शाती है ?

तो आखिर यह सवाल उठता है की,हम किसिको भाई समझकर उसको कितना भी प्रेम, मान,संन्मान क्यों न दे,वह समय आनेपर हमारे प्रेम को,ईशत्व को पैरों तले कुचल ही देता है।यही वास्तव है।और यही केरल में भी हुवा है।

इसिलए किसिको अगर हम सहिष्णु बनकर कितना भी फायदा करने की कोशिश करें,अथवा मानवता, भूतदया,ईश्वरी सिध्दांत सिखाने की कोशिश करे,कितनी भी योजनाएं दे,

हमारे साथ अमानवीयता,धोकाधड़ी ही होगी।

जब तक कोई असुरी सिध्दांतों को छोडकर ईश्वरी सिध्दांतों का स्विकार अगर कोई नही करता है तो उसे मनवता की,भाईचारे की,दिव्य प्रेम की,सहयोग की अपेक्षा करना गलत ही होगा।मैं ऐसे समाज को दोषी नही ठहराता हुं,बल्कि उनकी गलत विचार धारा का विरोध करता हुं।

वायनाड तो एक उदाहरण है।संपूर्ण देश में और संपूर्ण विश्व में भी ऐसी ही विचारधारा देखने को मिलती है।

और यही वजह है की,संपूर्ण विश्व में तेजी से ध्रुवीकरण हो रहा है।

सत् और असत् का यह कडा संघर्ष भविष्य में अतीभयंकर तथा उग्र रूप धारण भी कर सकता है।

इसिलिए दो विरुद्ध शक्तियाँ संपूर्ण विश्व को तीसरे जागतीक महायुद्ध की तरफ ले जा रही है।

इसकी केवल और केवल एक ही वजह है....

कृतघ्नता.....।

हरी ओम।

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विनोदकुमार महाजन।

[6/4, 6:02 AM] शक्तीमान मोदीजी...!

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जी हाँ भाईयों,

शक्तीमान मोदीजी !

पिछले पाँच सालों में प्रधानमंत्री बनकर मोदिजी ने एक विशिष्ट रणनीति के अनुसार अभी के लोकसभा चुनाव में जो जबरदस्त जीत हासिल की है वह अभिनंदनीय है।

इस जीत के लिए मोदिजी को अनेक रूकावटें, कसौटियां तथा कठोर अग्नीपरिक्षाओं का सामना करके,अनेक चुनौतियों को स्वीकार करके जीत हासिल करनी पडी।इसिलए यह जीत अतिशय महत्वपूर्ण तथा ऐतिहासिक भी है।

कल्पना कीजिए की,अगर गठबंधन जीतता तो क्या हो जाता ?मात्र कल्पना से ही बदन पर रोंगटें खडे हो जाते है।रूह काँप उठती है।

क्योंकि सनातन संस्कृति पर अनेक सालों से आक्रमणकारियों से लेकर,अंग्रेज तथा आजादी के बाद अनेक भ्रष्ट सरकारों ने,अती भयावह हमले करके,संस्कृति तबाह करने की अनेक रणनितियाँ बनाई थी।और मोदिजी के जीत के बाद इस महाभयंकर षड्यंत्र को और षड्यंत्रकारीयों का पूरा सफाया हो चुका है। सबक मिला है।इसिलिए यह जीत ऐतिहासिक तौर पर अतिशय महत्वपूर्ण है और नया युग आरंभ होने का शुभ संकेत भी है।


मोदिजी की इस जबरदस्त जीत पर मैंने भी ग्यारह अप्रैल का पहला चुनावी चरण पूरा होने के बाद भाजपा सरकार भारी बहुमतों से सरकार बनायेगी,इसपर तेरा अप्रैल को ही विस्तृत लेख लिखा था।जो तेईस मई को तंतोतंत सटीक भी निकला।

चुनावी विष्लेशण का मेरा लेख बिल्कुल सही साबित हो गया।

उसी लेख के अंत में मैंने लिखा था,मोदिजी के इस विजय के बाद हिंदुस्तान विश्वगुरु की ओर तेजी से बढेगा।

मैंने यह भी लिखा था की,अगर मतदान का प्रतिशत ठीक इसी तरह से रहा तो बिजेपी चारसौ पार भी करेगी।मगर कुछ कारणवश या अनेक कारणों से धिरे धिरे मतदान का प्रतिशत घट गया और इसी वजह से सिटों का नुकसान भी हुवा।

फिर भी भारी बहुमतों की जीत का मेरा सौ प्रतिशत का दावा सही निकला।

कुछ संस्थायें सर्वे के बाद ही एक्जिट पोल दिखाती है।मगर मैंने तो लोगों में जो बदलाव का नवचैतन्य देखा था,वही मेरी जागृत लेखनी द्वारा उतार दिया।


इस जीत के बाद मोदिजी शक्तीमान मोदिजी तथा पाँवरफुल मोदिजी तथा मोदिजी की सरकार ,शक्तीमान सरकार बन गई है।

मोदिजी की जगह अगर अन्य कोई भी भाजपा का ही राष्ट्रीय तथा लोकप्रिय नेता होता तो भी ऐसा जबरदस्त करिश्मा मुमकिन नही था।यह सच्चाई सभी को स्विकारनी ही पडेगी।

मोदिजी की आध्यात्मिक शक्ती,सच्चाई, लगन,अपार मेहनत, लोगों में नवसंचार तथा नवउत्साह निर्माण करके,लोगों में राष्ट्रप्रेम जगाने में मोदिजी शत प्रतिशत यशस्वी बन गए है।


अब मोदी सरकार की अगली चुनौतियों के बारे में विस्तार से देखते है।

आजादी के बाद की साठ सालों से भी जादा सालों की गंदगी,अंग्रेज तथा अत्याचारी,लुटेरे मुगलों की गंदगी साफ करना तो अगले पाँच सालों में बहुत ही कठिन कार्य है,मगर तीव्र इच्छाशक्ति के सामने नामुमकिन भी नही है।और अब मोदिजी सभी अंगों से शक्तीमान तो बन ही गये है।इसीलिए अब कुछ नामुमकिन भी नही है।

अनेक बडी बडी चुनौतियां सामने है।कश्मीर, केरल,बंगाल जैसे अनेक राज्यों की जटिल समस्याएं, धारा 370 तथा 35 A,राममंदिर निर्माण, जनसंख्या नियंत्रण कानून, प्रचंड गती से बढती पाणी समस्या तथा वायु,जल,जमीन पर प्रचंड गती से बढता प्रदुषण यह सभी मुद्दे अतिशय महत्वपूर्ण है।और ईश्वरी कृपा से मोदिजी सभी मुद्दों पर अगले पाँच सालों में जरूर यशस्वी ही होंगे।क्योंकि पिछले पाँच सालों में मोदिजी ने एक जबरदस्त रणनीति के तहत जो जमीनी तौर पर काम किया है,वह काम अब रंग लायेगा।


मोदिजी शक्तीमान कैसे बन गए इसपर भी थोडीसी चर्चा करते है।

( 1 )विकास कार्यों की वजह से -जैसे की,

" सबका साथ,सबका विकास ",

जैसे दिव्य मंत्र से समाज मन में एक नई उम्मीद, नई आशा ,नई उमंग जग गई।और अनेक तेजीसे होते विकास कार्यों की वजह से यह उम्मीद, आशा विश्वास में बदल गई।और इसी वजह से देहात से लेकर बडे शहरों तक समाज जागृती का माहौल बढ गया।

( 2 )सर्जिकल स्ट्राइक, एअर स्ट्राइक जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों की वजह से संपूर्ण देश में राष्ट्रचेतना, राष्ट्रभक्ति की जबरदस्त लहर निर्माण करने में मोदिजी यशस्वी हो गए।

( 3 )अंबानी जी को मोदिजी ने प्रोत्साहित करके जीयो डाटा सभी को भारी मात्रा में उपलब्ध कराया, इसकी वजह से प्रिंट तथा इलैक्ट्रोनिक मिडिया के बगैर सोशल मिडिया का एक जबरदस्त, शक्तिशाली नेटवर्क निर्माण हो गया।जीसपर लोग खुलकर बाते करने लगे,सच्चाई पर बहस करने लगे।और प्रिंट तथा इलैक्ट्रोनिक मिडिया का प्रभाव या दुष्प्रभाव कम होकर समाज मन में जागृती की लहर आ गई।

इसीलिए मोदिजी ने कहा है की,

"सोशल मिडिया यह एक राष्ट्रीय रक्षा का शक्तिशाली संरक्षक कवच है।"

मोदिजी का यह वाक्य अतिशय महत्वपूर्ण भी है।

( 4 )जाती धर्म का बंधन तोडकर, सभी जाती धर्मों का विश्वास जीताने तथा उनकी असंघटीत शक्ती एक करने में,और सभी को राष्ट्रप्रेम के लिए एक करने में मोदिजी यशस्वी हो गए।

( 5 )संपूर्ण समाज को एक षड्यंत्र द्वारा तोडकर व्होट बैंक बनाकर राज करने की विरोधियों की कुनिती पर मोदिजी ने प्रहार किया है।और तोडफोड की राजनीति तथा रणनीति पर मोदिजी ने प्रहार करके सभी असंघटीत समाज को संघटित करने में मोदिजी की निती काम में आ गई है।

(6 )सबसे महत्वपूर्ण बात,

देशवासियों का विश्वास जीताने में,और विरोधियों की षड्यंत्र कारी कुनिती को तहस नहस करने में मोदिजी जबरदस्त यशस्वी हो गए।

इतनी भयंकर,अराजकिय देश की स्थिति में ठंडे दिमाग से अवलोकन करके उसपर विजय प्राप्त करना यह कोई आसान काम नही था।

अतिशय जटिल, क्लिष्ट तथा चुनौती भरा कार्य था।और यह सभी चुनौतियों का स्वीकार करके उसपर विजय प्राप्त करके,मोदिजी आज...

सौ प्रतिशत यशस्वी हुए है।

इसीलिए मैं उनको ना ही बाजीगर कहुंगा,

ना ही सामान्य व्यक्ति कहुंगा,

ना की यह आदमी है,ना ही शख्स है।

मेरी नजरों से तो 

यह पुण्यात्मा,

देवदूत है,

युगपुरुष भी है,

और नामुमकिन को मुमकिन में बदलनेवाला,

ईश्वरी कृपा प्राप्त,

महापुरुष, महात्मा भी है।

ऐसे उच्च कोटि के बैराग्य पूर्ण, तपस्वी, निस्वार्थ, प्रखर राष्ट्रप्रेमी,पुण्यवान...

युगपुरुष को,

मेरा,

कोटी कोटी प्रणाम।

अब देश,

" शक्तीमान मोदिजी ",

के हाथ में है।

जो कहते है,

" ना मैं देश को झुकने दुंगा,ना मैं देश को मिटने दुंगा।"

इसीलिए मेरे प्यारे सभी देशवासियों,

अब हम सभी के,

" अच्छे दिन ",

आरंभ हो चुके है।

भयभीत समाज को,

आधार देने के लिए,

संस्कृति भंजकों को उत्तर देने के लिए,

ईश्वरी प्रायोजन,

हो चुका है।

इसिलए अब अज्ञान समाज, मानसिक गुलाम समाज, बाहर आकर,

सौ प्रतिशत समाज,

भविष्य में अब....

अकबर दी ग्रेट...

नही बोलेगा।

बल्की,

" शिवाजी द ग्रेट ",

ऐसा ही बोलेगा।

गर्व से बोलेगा।


जय हिंद।

वंन्दे मातरम्।

जयतु हिंदु राष्ट्र।


हरी ओम।

( बहुत लंबा चौडा लेख पूरा पढने के लिए,

आभार।)

~~~~~~~~~~~~

अंतरराष्ट्रीय,

आध्यात्मिक पत्रकार,


विनोदकुमार महाजन।

[6/4, 8:35 PM]  शिवाजी,

द ग्रेट...!

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इस संस्कृति संपन्न देश में महानायक, वीर शिवाजी योद्धा है,शूर है,शेर भी है।

संस्कृति रक्षा के लिए क्रूर, अत्याचारी मुगलों को,अधर्मियों को, राजे शिवाजी ने चुन चुनकर मारा।पापियों को दंडित किया।

इसिलए इस देश में,

शिवाजी द ग्रेट 

यही सत्य है।

पृथ्वीराज चौहान द ग्रेट,

महाराणा प्रताप द ग्रेट,

गुरू गोविंद सिंह द ग्रेट,

संभाजी द ग्रेट।

ऐसा ही यहाँ का इतिहास है।यही सच्चाई भी है।


तो फिर यहाँ पर...

अकबर द ग्रेट,

औरंगजेब द ग्रेट,

टिपु द ग्रेट,

तैमूर द ग्रेट....

क्यों और कैसे बन गए?

किसने बनाए ?

गलत इतिहास क्यों और किसने सिखाया ?

असली इतिहास क्यों नही बताया गया ?

हम भी इतने अंधभक्त बन गये,अज्ञान बन गए,मानसिक गुलाम बन गए की,

बिना हिचकिचाहट से हमने,

अकबर को ग्रेट बनाया।

सैफ अली खान अपने बेटे का नाम एक लुटेरा,

तैमूर रखता है हम,

उसी तैमूर को सरपर लेकर नाचते है।

हम इतने अस्तित्व शून्य कैसे बन गए ?

दूषण ही हमें भूषण लगने लगे,और भूषण ही दुषण लगने लगे।

आक्रमणकारी,लुटेरे, हत्यारे, मंदिरों को तोडऩे वाले,संस्कृति भंजकों को हम सर पर लेकर क्यों नाचने लगे ?

या फिर हम षड्यंत्रकारीयों का शिकार बनकर हमारा, हमारी संस्कृति का अस्तित्व ही खो बैठे ?


डिस्कवरी ओफ इंडिया में,

नेहरू,

महान राजे शिवाजी को लुटेरा कहता है,

हम क्यों सहते गए ?

गांधीजी राजे शिवाजी को,भटका हुवा देशप्रेमी कहते है।तो भी हम मौन और शांत क्यों बैठे रहे ?

आक्रमणकारियों को महान तथा प्रखर राष्ट्रभक्तों को छोटा दिखानी की होड में हम क्यों निस्क्रीय बन गए ?

हम अत्याचार क्यों सहते गए ?

सोचो,जागो।

सत्य को पहचानो।

अपना अस्तित्व, अपना भविष्य उज्ज्वल बनवाने के लिए,

हिंदु राष्ट्र निर्माण,

कार्य में बढचढकर हिस्सा लो।

अब के बाद, आक्रमणकारी,अत्याचारी,लुटेरा, हिंदुओं का हत्यारा, संस्कृति भंजक,मुर्तीभंजक,मंदिरों को गिराने वाला...

अकबर द ग्रेट..

नही होगा।

बल्कि,

आक्रमणकारियों को ,गद्दारों को,बेईमानों को,पापियों को,

चुनचुनकर मारने वाला,

धर्म रक्षा के लिए,

गद्दारों को सबक सिखाने वाला,

हमारा आदर्श, हमारा सर्वस्व,

देश और धर्म की आन - बान-और शान,

राजा शिवाजी ही,

इस देश में,

सदैव,

ग्रेट रहेगा।

इसीलिए आज से और अभी से हम सभी मिलकर,

बडे गर्व से,आनंद से कहेंगे।

शिवाजी द ग्रेट।


हरी ओम।

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क्रांतिकारी पत्रकार,

विनोदकुमार महाजन।

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