हिंदुत्व शब्द का विष्लेषण

 हिंदुत्व शब्द का विष्लेशण ...!

~~~~~~~~~~~~

हिंदुत्व एक उच्च कोटी की जीवनपध्दती है।जिसमें संपूर्ण मानवजाति सह संपूर्ण सजीवों का पालन,संरक्षण अभिप्रेत है।पेड जंगलों सहीत सृष्टि का संगोपन, संवर्धन, सृष्टि संतुलन करने तथा कल्याण करने के लिए ही हिंदुत्व की विचारधारा सभी को प्रेरित करती है।

इसिलए हिंदु केवल धर्म नही है तो उच्च कोटी के,सुसंस्कारित समाज द्वारा सर्वसमावेशक आदर्श जीवनपध्दती है।ईश्वरी आराधना द्वारा,आत्मोद्धार के साथ सभी सजीवों का कल्याण ही यह जीवनपध्दती सिखाती है।और मानवता की पूजा भी हिंदु संस्कृति सिखाती है।और मानवी समुह को सभी सजीवों का पालकत्व भी स्विकारने को कहती है।

किसी जीव की हत्या करने से पहले,सभी प्राणियों में आत्मतत्व दिखाती है।

और सभी के अंदर के आत्मा को ईश्वरी अंश ही देखने को कहती है।

इसीलिए हिंदु संस्कृति में " सर्वाभुती भगवंत ",

मानती है।अथवा,

" जे जे दिसे भूत,ते ते मानिजे भगवंत ",

इतने उच्च कोटि के विचार भी जताती है।

इसीलिए गाय भी हमारी माता है,और गाय में तेहतीस कोटी देवताओं का वास होता है...

यह केवल धारणा नही है तो उच्च कोटी की श्रद्धा भी है।इसिलए नाग भी हमारी देवता है।

आत्मोध्दार से लेकर ब्रम्हांड का ज्ञान,

तथा " नर का नारायण बनना " भी...केवल हिंदु धर्म ही सिखाता है।

इसीलिए संपूर्ण पृथ्वी पर उच्च कोटि की आदर्श पध्दती, प्रेम,भाईचारा, इंन्सानियत,पशुपक्षियों पर निरपेक्ष प्रेम केवल हिंदु धर्म ही सिखाता है।

और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की,यह संस्कृति ईश्वर निर्मित है।कोई धर्म संस्थापक नही होते है।जब संस्कृति पर संकट आता है तो अनेक बार अवतारी पुरूष प्रकट होकर,संस्कृति को धर्मग्लानी से बचाते है।और खुद ईश्वरी कार्य करनेपर भी बडप्पन ईश्वर को देते है।और खुद को निमित्त मात्र बताते है।

यहाँ पर तो पत्थरों को भी पूजा जाता है।मतलब कण कण में है भगवान।

आत्मा का ज्ञान, जन्म पूनर्जन्म का ज्ञान,ब्रम्हांड का ज्ञान केवल हिंदु धर्म ही सिखाता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यह जीवनपध्दती अनादी- अनंत काल से चलती आ रही है।और यह सृष्टि चक्र का अविरत हिस्सा भी है।

इसीलिए संपूर्ण विश्व में हिंदु जीवनपध्दती ही सर्वोच्च तथा आदर्श जीवनपध्दती है।जिसमें सभी का केवल कल्याण ही अपेक्षित है।

मतलब ईश्वरी सिध्दांतों को बढावा देनेवाली तथा स्वार्थी, हैवानियत भरे,आसुरिक, राक्षसी सिध्दांतों को विरोध करनेवाली यह संस्कृति है।

क्योंकि ईश्वरी सिध्दांत सभी का कल्याण करते है तो आसुरिक सिध्दांत भयंकर तबाही फैलाते है।

इसीलिए महाराष्ट्र के महान योगी तथा कृष्णावतारी श्रेष्ठ संत ज्ञानेश्वर महाराज,

ज्ञानेश्वरी में,

पसायदान लिखते है।

और...

" जो जे वांछील तो ते लाहो " कहते है।इसके भी आगे जाकर ज्ञानेश्वर जी कहते है...

" विश्व - स्वधर्म,

सुर्ये पाहो।"

मतलब जहाँ जहाँ पर सूर्य की किरणें पहुंचेगी, वहाँ वहाँ पर,भागवत् धर्म, अर्थात सनातन धर्म अर्थात हिंदु धर्म पहुंचने की या फिर पहुंचाने की अपेक्षा करते है।

सबसे महत्वपूर्ण बात,

अनादी अनंत काल से इसी धर्म में ही अनेक देवीदेवता,अवतारी पुरूष, महापुरुष, सिध्दपुरूष, हटयोगी, ऋषि मुनी,साधुसंत,सत्पुरुष,तपस्वी, त्यागी हजारों की संख्या में बार बार जन्म लेते है,अवतरित होते है।इतनी जबरदस्त शक्ती और महती इसी धर्म की है।

और जब आसुरिक संपत्ति ऐसे महान, आदर्श हिंदु संस्कृति पर प्रहार करता है तो दुख तो होगा ही ना ?

और कुछ गद्दार जयचंद स्वार्थांधता के कारण,सत्ता संपत्ति के लिए लालच में आकर,आदर्श संस्कृति पर प्रहार करनेवालों का साथ देते है तो...?

इसीलिए अब संस्कृति भंजकों का पूरा बिमोड होकर,संस्कृति पूजकों की अंतिम जीत होना अनिर्वार्य भी है,जरूरी भी है।


अब आते है,

हिंदु शब्द पर...।

कोई कहता है हिंदु शब्द ही गलत है।अथवा अंग्रेजों द्वारा यह शब्दप्रयोग जानबूझकर किया है।धर्म ग्रंथों में हिंदु शब्द का उल्लेख नही है।

यह एक जानबूझकर किया हुवा छल है।केवल हिंदु धर्म और संस्कृति को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है।

कोई कहता है,हिंदु शब्द के बजाय सनातन शब्द का उपयोग होना चाहिए।

अब सनातन को भी मर्यादित अर्थों से अथवा नजरों से देखा जाता है तो अज्ञान लोगों पर तरस आता है।

सनातन का अर्थ क्या लगाया जाता है देखो...

चोटी रखनेवाला, या कर्मठ पूजापाठ करनेवाला, या केवल जातिभेद करनेवाला, श्रेष्ठ कनिष्ठ बोलनेवाला, और केवल ईश्वरी चिंतन करनेवाला आस्तिक।

यह गलत धारणा है।

देहतत्व में रहकर ,आत्मज्ञान तथ आत्मोध्दार होनेपर ऐसे किसी भी बंधन या उपाधी की जरूरत ही नही रहती है।

सनातन मतलब, अंतिम ईश्वरीसत्य।

जो अनादी अनंत काल से चलता आया है,जो ईश्वराधिष्ठीत है।और जो परमात्मा का ज्ञान देकर,आत्मा को भी परमात्म तत्व से निरंतर,अखंड,युगानयुगे,अनादी अनंत काल से,जुडा रहता है,वही सनातन है।और यही हिंदु धर्म की सिखाता है।

जैसे की सूर्य एक है,मगर उसकी किरण अनेक है,ठीक इस प्रकार से,भगवान एक है,और आत्मरूप से अनेक देहतत्व में रहकर भी उसी सूर्यकिरणों की तरह हम सभी उस भगवान से निरंतर जुडे हुए है।

और यही सनातन है।


मगर मैं कहता हुं,आखिर झगडा ही क्यों ?

विनावजह का झगडा करके,शक्ती का व्यय करने से क्या मिलेगा ?

इतना तो सर्वानुमति से पक्का तय है की,

एक उच्च कोटी की,आदर्श जीवनपध्दती अपनाकर सभी के हितों के बारें में सोचनेवाली संस्कृति ही हिंदु संस्कृति है।और जिसमें ईश्वरी अधिष्ठान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।परोपकार, दया,क्षमा,शांती,सभी का कल्याण, प्राणिमात्रों का कल्याण, सभी सजीवों का कल्याण जिस संस्कृति को सदैव अपेक्षित है वह संस्कृति निश्चित रूप से महान भी है,सर्वश्रेष्ठ भी है।सर्वसमावेशक भी है।सर्वकल्याणकारी भी है।

और युगों युगों से चलती भी आ रही है।और संपूर्ण जगत् का कल्याण भी यह महान ईश्वरी संस्कृति सिखाती है।


इसिलए ऐसे महान संस्कृति में मेरा जन्म हुवा,अनेक देवी देवताओं के पूजा पाठ का अवसर मुझे मिला,ऐसे आदर्श, अनादी अनंत संस्कृति में मुझे जन्म मिला,

जहाँ पर संस्कारों का कभी भी समाप्त नही होनेवाला धन है,धर्म ग्रंथों का जहाँ पर भंडार है,

ऐसी दैवीय संस्कृति में,आदर्श धर्म में मैं पैदा हुवा इसका मुझे अखंड और अत्यधिक आनंद है।

सद्गुरु की और ईश्वर की और कौनसी कृपा चाहिए ।?


धन्य है मेरा,

हिंदु धर्म।

धन्य है मेरी संस्कृति।

धन्य है मेरी सनातन संस्कृति।

और धन्य है वो सभी पवित्र आत्मे जिन्हे,

ईश्वरी इच्छा से हिंदु धर्म में ही जन्म मिला।


हरी ओम।

-------------------------------

विनोदकुमार महाजन।

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस