छिपकली और न्यायाधीश

 छीपकली और न्यायाधीश....!

( सो...स्वारी...)

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आज एक कथा सुनाता हुं।संपूर्ण काल्पनिक।

आटपाट नगरी की।कथा पढकर हँसना नही।


तो हुवा युं की,

एक जगहपर अनेक पुरूष समुदाय के लोग इकठ्ठा हुए थे।एक भी औरत वहाँ पर नही थी।

और एक चिज का सौदा चल रहा था।वह चिज भी बडी अजीब थी।

एक छिपकली।वह भी असली नही नकली।मगर हुबहु असली लगनेवाली।

लोग बढचढकर बोली लगा रहे थे।मगर सौदा टुट नही रहा था।

होते होते पूरा मसला न्यायालय तक जा पहुंचा।

न्यायाधीश महोदय के सामने बहस होने लगी।

फिर " ओर्डर ओर्डर ",करके न्यायाधीश महोदय ने सभीको एकबार डाँटा।और विषय की संपूर्ण जानकारी ली।

तो विषय यही था की,सभी पुरूष वह छिपकली लेने पर अडे हुए थे।चाहे कितनी भी कीमत देनी पडे।

क्योंकि वह छिपकली ही ऐसी जबरदस्त थी।


आखिर न्यायाधीश महोदय ने सभी को पूछा,

" आखिर आप सभी को वही एक ही छिपकली क्यों चाहिए ? "


तभी युक्तीवाद करने के लिए एक सद्ग्रहस्थ कटघरे में आये और कहने लगे,

" मिलार्ड,यह छिपकली ही एक ऐसी चिज है की,

ना पतीसे,ना साँस से,ना ससुर से,ना देवर नणंद से,ना अडोस पडोस से डरनेवाली,भगवान को भी नही डरनेवाली, औरत या बिवी....

यह छिपकली देखकर जोर जोर से चिल्लाचिल्लाकर,डर के मारे दूर भाग जाती है।इसिलिए सभी भाई यह छीपकली लेने के लिए अडे हुए है।कीमत चाहे कितनी भी देनी पडे।"


तभी न्यायाधीश महोदय भी जोर से चिल्लाये,

" इस छिपकली के मैं दस लाख देने को तैयार हुं। "

🤔😀😜

आटपाट नगरी की काल्पनिक कथा खतम।

जिसे समझ में आया उनका आभार।जिनको कुछ भी नही समझा उनका भी आभार।

(यह कथा पूर्ण काल्पनिक है।कोई व्यक्ति विशेष से इसका दूर दूर तक कोई संबंध नही है। अगर है तो केवल योगायोग।)


हरी ओम।

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विनोदी पत्रकार,

विनोदकुमार महाजन।

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