एक एक पाणी के बुंद के लिए
एक एक पाणी के बुंद के लिए.......! ! !💧
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मेरे मित्र श्री.देवेंद्र व्होराजी ने मुझे पाणी समस्या पर एक लेख लिखने को कहा,इसीलिये यह लेख का प्रायोजन।
दिनबदिन पाणी की समस्या भयंकर अक्राल विक्राल रूप धारण कर रही है।प्रचंड गती से जनसंख्या बढती गई।और उसके दुष्परिणाम स्वरूप जंगल,पेड कटते गए।
निसर्ग पर प्रेम करनेवाला इंन्सान स्वार्थी बन गया।और इसी स्वार्थांधता की वजह से आज जंगली प्राणी,पशुपक्षियों का जीना ही हराम हो गया।
और पशुपक्षी,जंगली प्राणी सैरभैर हो गए।उनका आश्रयस्थान,उनका दाणापाणी भी इंन्सानों ने छीन लिया।और बुंद बुंद पाणी के लिए, इंन्सान ने पशुपक्षियों को तरसाया।
और आज ईश्वरी प्रकोप से....वही इंन्सान, बुंद बुंद पाणी के लिए तरस रहा है।
ईश्वर, कुदरत,निसर्ग हमें कभी क्षमा नही करते।हमने जो दिया है वह हमें वापिस लौटाकर ही देता है।जो बिज हमने बोया है,वैसे ही फल हमको मिलते है।
और आज वही हो रहा है।
क्या जरूरत थी इंन्सानों को प्रचंड गती से जनसंख्या बढाने की?क्या जरूरत थी गौमाता को भी काटकर खाने की?क्या जरूरत थी वहसी,हैवान बनने की ?क्या भगवान ने हमें दुसरा खाना नही बनाया था ?तो फिर ऐसा विपरीत क्यों ?
और अब वही स्वार्थी इंन्सान भगवान को ही कोस रहा है ?
यह तो हद हो गई।
जंगल कटते गए,और धिरे धिरे पर्जन्य मान घटते गए।स्वार्थी इंन्सान ने पशुपक्षियों के घरों पर,जंगलों पर भी कब्जा किया, और माँ धरती भी धिरे धिरे इंन्सानों की तरह रूक्ष बनती गई।
आज का जलसंकट भयंकर ही नही अती भयावह है।और इसका उत्तर नही है।
इसी वजह से ग्लोबल वोर्मींग जैसा संकट आज पृथ्वी पर तेजी से बढ रहा है।निसर्ग संतुलन समाप्त हो रहा है।अती उष्मा से मानव ही नही तो हर सजीव परेशान है।उपर से वाहनों का कार्बन डाय मोनाक्साईड,फिर बढता औद्योगिकीकरण और उसके द्वारा बढता वायुप्रदुषण।सेंद्रिय खेती को त्यागकर,रासायनिक खेती की वजह से जमीन भी प्रदुषित।मतलब जमीन,पाणी,वायु...सभी पर इंन्सानों की गलती की वजह से प्रदूषण।और इसका परिणाम, इंन्सानों में तेजी से बढती अनेक बिमारियाँ।
एक समय था की,नदी नाले में भी लोग हर समय नहाने को जाते थे।धिरे धिरे नदीनाले भी सुख गए।कुवें भी सुख गए।पाचसौ क्या,हजार फिट जमीन में बोअरींग करने पर भी पाणी नही मिल रहा है।
बुंद बुंद पाणी के लिए इंन्सान तरस रहा है।और दुखपूर्ण बात यह है की,इतना होने के बाद भी इंन्सान सुधर नही रहा है।
अब जरूरत है सख्ती से कठोर निर्णय लेने की।
( 1 )सबसे पहले गौहत्या बंद करों।गौमाता का श्राप कितने दिनों तक लेते रहेंगे?कितने दिनों तक पाप का अती भयानक आतंक करते रहेंगे ?
( 2 )दुसरी बात जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए विश्व स्तरपर तुरंत सख्त कानून बनाओ।
( 3 )तीसरी बात सामुहिक यज्ञ,होम हवन बढाओ।जीस की वजह से ओझोन तेजी से बढेगा।और निसर्ग संतुलन बनाने में मदद होगी।कठोर बनता जा रहा ईश्वर, निसर्ग, कुदरत भी थोडा दयालु होगा।
( 4 )प्रचंड गती से,सख्ती से पेडों की संख्या बढाओ।शासकीय स्तरपर इसके लिए अनेक क्रियाशील योजना बनाओ।किसानों को भी आर्थिक फायदा देकर वृक्ष लगाना,संवर्धन, संगोपन के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
( 5 )विविध माध्यमों द्वारा जनता जनार्दन को भी वृक्ष संवर्धन के लिए प्रेरित करना होगा।उनको इस ईश्वरी कार्यों के लिए अगर कुछ आर्थिक फायदों की बात की गई तो भी वृक्षसंवर्धन तेजी से होगा।
( 6 )जो भी वृक्ष बचे हुए है उनकी जी -जान से हिफाजत करना।
( 7 )इंन्सानियत, प्रेम, भाईचारा, संस्कृति,संस्कार बढाने के लिए, सहिष्णुता बढाने के लिए, ईश्वर निर्मित सत्य सनातन का महत्व लोगों को समझना।पशुपक्षी,पेडजंगलोंपर,ईश्वर पर,इंन्सानियत पर प्रेम करने वाली अनादी -अनंत विश्व में महान हिंदु संस्कृति का तेजी से संपूर्ण विश्व में प्रचार, प्रसार करना।
(8 )स्वैराचारी,हैवानियत भरे,हाहाकार भरे,उन्मादी इंन्सानों को तुरंत सख्ती से काबु में लाकर,ईश्वर के प्रती,उसके कानून के प्रती सजक बनाना।और इसके लिए बुराईयों पर विजय प्राप्त करने के लिए कठोर और तुरंत सख्त कानून बनाना।
क्या यह कार्य कोई मनुष्य को मुमकिन होगा,या फिर हमें ईश्वरी अवतार की प्रतिक्षा करनी होगी ?
कार्य कठिन जरूर है,मगर नामुमकिन नही है।तीव्र इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी नामुमकिन नही है।
अगर राजा सही है तो प्रजा का भी जरूर कोई दाईत्व जरूर है।और अगर बढते विश्व प्रकोप से बचना है तो यह दाईत्व तुरंत निभाना भी होगा।
।।ओम तत् सत्।।
।।हरी हरी: ओम।।
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विनोदकुमार महाजन।
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