वाणी में सच्चाई चाहिए
*शब्दों की ताकद और अनुभूती की शक्ती ! ! !*
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हमारे शब्दों में वजन होना चाहिए।ताकद होनी चाहिए।हम जो बोलते है वही कर दिखाने की हिम्मत भी चाहिए।तभी समाज में किमत, प्रतिष्ठा बढती है।
इसिलिए मराठी में एक कहावत है,
" *बोले तैसा चाले त्याची वंदावी पाऊले "*
मगर होता क्या है की,इंन्सान विनावजह की बडबड करता रहता है,और कृती शून्य होती है।
ऐसे व्यक्तीयों को केवल बडबोले के नाम से ही पुकारते है।केवल बडी बडी बाते करना।
मैं ऐसा करूंगा, मैं वैसा करूंगा।
बाष्कळ बडबड।
ऐसे व्यक्तियों से समाज या व्यक्ती धिरेधिरे दूर चला जाता है।और ऐसा बडबोला व्यक्ती अगर कोई बात सही भी कहता है,तो उसपर कोई विश्वास भी नही करता है।
निश्चल और मौन होकर जो कृती करता है,बोलता कम और कार्य जादा ऐसे व्यक्तीयों पर ही समाज जादा विश्वास करता है।
कभी कभी कुछ लोग, व्यक्ति ऐसा होगा,तैसा होगा,जैसी फिजूल बाते करते रहते है।मगर अनुभूति शून्य होती है।तभी समाज भी ऐसे व्यक्तीयों से दूर चला जाता है।लोगों को अनुभूति आने के लिए शब्दों में ताकद और वजन होना चाहिए।
खूद ईश्वर भी सहायक बनकर उसका शब्द झेलकर पूरा कर सके,ऐसी शब्दों में ताकद अथवा वजन चाहिए।और इसको ही अनुभूति कहते है।अगर लोगों को प्रचिती नही मिलती है,कुछ अनुभूति नही मिलती है,तो उस वक्तव्य का अथवा वाणी का क्या उपयोग ?
कठोर साधना द्वारा जिसको आत्मानुभूति मिलती है वही व्यक्ति समाज को भी शायद अनुभूति दे सकते है।
इसीलिए भाईयों,
निश्चल और मौन होकर अपनी मंजिल की ओर बढते रहना और लोगों को कार्य प्रवण बनाकर, समाज को आगे ले जाना ही श्रेष्ठ एवं उचित होता है।
व्यर्थ की गप्पेबाजी, हवाबाजी एक दिन परेशानियों में और फजीहत में डाल सकती है।
इसीलिए
जो बोलता है...वही और उसी समय के अनुसार कर दिखाने की हिम्मत रखता है,समाज में केवल उसी की ही किमत बढती है।
मैं आप सभी को नम्र निवेदन एवं आवाहन करता हुं की,
संपूर्ण पृथ्वी पर ईश्वरी सिध्दांतों की सदा के लिए, जीत के लिए,
हिंदुस्तान को विश्व गुरू बनाने के लिए, और इस देश को हिंदुराष्ट्र बनाने के लिए,
विविध मार्गों से कार्य रत होकर,
निश्चल और मौन होकर,धिरे धिरे,एकेक कदम हर दिन मंजिल की ओर बढना होगा।बढना चाहिए।
बुलंद हौसले लेकर, अनेक मुसीबतों का,रूकावटों का सामना करते करते आगे बढना ही होगा।
राक्षसी, उपद्रवी शक्तियां बारबार हमारे रास्ते में बाधाएं, विघ्न डालने की कोशिश करते रहेंगे।उनके उद्दीष्टों को कृष्ण निती के अनुसार, धिरे धिरे निरस्त करके,एकेक कदम आगे बढना चाहिए।
यह लेख ,मौन होकर ईश्वरी कार्य तेजिसे आगे बढाने वाले
तथा केवल बडबोले,
दोनों प्रकार के मित्रों को समर्पित करता हुं।
दोनों प्रकार के मेरे अनेक मित्र
*आत्मचिंतन*
करके,मेरे कार्यों में तुरंत सहयोग करेंगे ऐसी उचित आशा करता हुं।
हरी ओम्
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*विनोदकुमार महाजन*
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