मैं आग में अकेला लडता था।

जब मैं आग में जलता था।
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जब मैं आग में जलता था,
तो दुनिया मुझको हँसती थी।
दूर से मजा लेती थी।
नजदीक आकर आग में घी डालती थी।
मुझे तडप तडप कर मरता देखकर खूब हँसती थी।
और मजा भी लेती थी।

ना संगी था,ना साथी था।
जीसको भी ह्रदय निकाल के दिया, 
खुद जहर हजम करके,उनको अमृत दिया,
वह खुद की रिश्ते नातों की दुनिया भी मुझको
खूब तडपाती थी।
हरदिन मुझको खून के आँसू रूलाती थी।

जब मैं आग में जलता था,
तो दुनिया मुझको नितदिन,
हरपल तडपाती थी।

सिध्दातों के लिए मर मिटने की
मेरी भी दृढ इच्छाशक्ति थी।
किसी भी हालात में 
सैतानों के सामने झुकने की
मेरी ना इच्छा थी।
मृत्यु को गले लगाउंगा,
मगर बुरा कदम ना उठाउंगा,
सैतानों के शरण में नही जाऊंगा,
यह मेरी मनीषा थी।

अजब की दुनिया दारी थी।
सत्व की भयंकर, भयावह,
भयानक अग्नि परीक्षा थी।
नितदिन भयंकर अग्नि में जलने की यह नशीब की भयंकर,
परीक्षा थी।

भयंकर घोर अग्नि परीक्षा थी।
भयंकर घोर सत्व परीक्षा थी।

चालीस सालों तक अग्नि में
जलता था।
भयंकर आग की लपोटों से घिरा हुवा था।
दारीद्र,अकेला पन,अनाथपन,
निराधार, निराश्रित का,अनेक बिमारियों का,
अपयश का श्राप था।
दो वक्त की रोटी के लिए भी,
चार चार दिनों तक,
तडपता था।

ऐसे घोर विपदाओं के समय में,
हर एक इंन्सान मुझको तडपाता था,
क्रूर से मुझपर हँसता था।

उसी आग के खिलाफ मैं अकेला लडता था।
दश दिशाओं से अकेला लडता था।
ना संगी था,ना साथी था।

फिर भी सद्गुरु के चरणों में
लीन होकर,
उसी चरणों को सर्वस्व समर्पीत करके,
नितदिन भयंकर जहर हजम करता था।
मैं नितदिन आग में जलता था।

ना संगी था,ना साथी था।
मैं अकेला थका हारा हुवा मन से
अकेला मंजील की ओर बढता था।
ऐसे भयंकर विपदाओं की घडी में तो,
मृत्यु भी अच्छी लगने लगती थी।
मगर कर्मभोग के आगे
मजबूर था।

मैं अकेला लडता था।
जीवन की लडाई लडता था।

ना आँसू पोंछने वाला कोई था,
ना रोने के लिए कोई कंधा था,
ना घर था,ना दार था।
हर दिन थका हारा हुवा मैं
दर दर की ठोकरें खाता था।
और बेरहम दुनिया के सामने
मेरे आँसू भी छिपाता था।
ओठों पर झूठी हँसी लेकर,
झूठा मुस्कुराता था।

मैं अकेला ही लडता था।
नितदिन आग में जलता था।
फिर भी सत्य का रास्ता हरगिज नही छोडता था।

मैं अकेला लडता था।

और आज...
मेरे सद्गुरु कृपा से,
दस दिशाओं में लगी हुई,
आग शांत हो गई।
भयंकर खडतर अग्नि परीक्षा
सत्व परीक्षा पूरी हो गई।

विश्व विजेता हिंदु धर्म
की निती बन गई।
भोलेबाबा की कृपा हो गई।
अनेक देवीदेवताओं की,
सिध्दपुरूषों की,
ईश्वरी कार्य के लिए,
कृपा हो गई।

जीवन की भयंकर विपदाओं की
घडी समाप्त हो गई।

हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन।

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