सनातन संस्कृति

 विश्व में सबसे महान और पूरातन हमारी महान संस्कृति है।

इसिलए यहाँ हर कृती को शास्त्रों से जोडा है।


इसीलिए तो यह,

विश्व विजेता हिंदु धर्म है।


आगे पढीये।




कर्णभेद ( कान छिदवाने )  संस्कार के वैज्ञानिक लाभ


हम सभी जानते है की सनातन धर्म के प्रत्येक नियम वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनो लाभ एक साथ ही देते है । इसी लिए आज हम जानेंगे कर्णभेद संस्कार के नियम ओर लाभ के बारे में —


हमारा पौराणिक ग्रँथ सुश्रुत कहता है की रोग आदि से रक्षा के लिए बालको का कान छेदन अवश्य करना चाहिए । (रक्षाभूषणनिमित्तं बालस्य कर्णो विध्येत शरीरस्थान ।। १६ /९/) सुश्रुत का आगे कहना है कि – अंडकोष वृद्धि तथा अंत्र वृद्धि के निरोध के लिए कर्णभेद संस्कार यानि कान छिदवाना बहुत लाभदायक है ।


वेद में कहा गया है :-- 


नैनं रक्षांसि पिशाचाः सहन्ते ।

योविभर्ति दाक्षायणं हिरण्यं ।।

अर्थात जो अपने कानों में सौना धारण करता है, उसके तेज को राक्षस भी नही हर सकते ।।


भगवान राम का भी कर्णभेद संस्कार हुआ था, जैसा कि रामचरित मानस में वर्णन आता है –


कर्णभेद उपवीत विवाहा ।

 संग संग भये उछावा ।।


कर्णभेद संस्कार करवाने का समय


ब्रहस्पति के अनुसार कर्णभेद संस्कार जन्म कब दसवें या बाहरवें या सोलहवें दिन किया जाना चाहिए । या छठे, सातवे, आठवें या बाहरवें महीने में कर्णभेद संस्कार का समय उचित है । श्रीपति ले अनुसार दांत निकलने से पूर्व जब बच्चा माँ की गौद में हो, तभी कर्णभेद संस्कार हो जाना चाहिए । कात्यायन सूत्र के अनुसार कर्णभेद संस्कार तीसरे या पांचवे वर्ष में होना चाहिए ।


कर्णभेद संस्कार की अनिवार्यता बहुत ज़्यादा थी।  मध्ययुगीन स्मृतिकार देवल लिखते है की जिस ब्राह्मण के कानों छिदे हुए ना हो, उसे देखते ही सारे पुण्य नष्ट हो जाते है। ऐसे ब्राह्मणो के श्राद्ध में आमंत्रित नही करना चाहिए, ऐसे ब्राह्मणो को श्राद्ध में बुलाने वाला असुर हो जाता है ।


पुत्र का पहले दाहिना कान, ओर पुत्री का बायां कान छेदा जाता है ।


कर्णभेद संस्कार का वैज्ञानिक महत्व


विशेषज्ञों का कहना है कि कान में ऑरिक्यूलर एक्यूपंक्चर के दो सौ पॉइंट्स होते हैं। इनमें से अधिकांश माइग्रेन, सिरदर्द, तनाव, अनिंद्र को दूर करने के काम आते हैं। कान छेदने वाली एक्सपर्ट कैट क्लिंटन का कहना है कि सिरदर्द से निजात पाने के लिए कान छिदवाने वाले लोग तेजी से बढ़ रहे हैं। अमरीका के कॉलेज ऑफ ऑरिक्यूलर एक्यूपंक्चर की विशेषज्ञ सीवान क्विन ब्रेटन का कहना है कि कान का हर एक हिस्सा शरीर के किसी हिस्से से जुड़ा होता है। इसका इतिहास 3000 से अधिक वर्षों पुराना है। कान छेदने से फीवर, अनिंद्रा, गठिया, पाचन जैसी समस्याओं का हल होता है। इसे आंखों की रोशनी से भी जोड़ा जाता है।


1.एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट के मुताबिक, कान के निचले हिस्से पर Master Sensoral एंड Master cerebral नाम के 2 इयर लोब्स होते हैं. इस हिस्से के छिदने पर बहरापन दूर हो जाता है.


2. कान छिदवाने से आंखों की रोशनी तेज होती है. दरअसल, कान के निचले हिस्से में एक प्वॉइंट होता है. इस प्वॉइंट के पास से आंखों की नसे गुजरती हैं. जब कान के इस प्वॉइंट को छिदवाते हैं तो इससे आंखों की रोशनी तेज होने में मदद मिलती है.


3. कान छिदने से तनाव भी कम होता है. क्योंकि कान के निचले हिस्से पर दबाव पड़ने से तनाव कम होता है. साथ ही दिमाग की अन्य परेशानियों से भी बचाव होता है.


4. वैज्ञानिकों के मुताबिक, कान छिदने से लकवा जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है.


5. कान के निचले हिस्से में मौजूद प्वॉइंट हमारे मास्तिष्क से जुड़ा हुआ होता है. इस प्वॉइंट के छिदने पर दिमाग का विकास तेजी से होता है. साथ ही दिमाग भी तेज बनता है. इसलिए बच्चों के छोटी उम्र में ही कान छेद देने चाहिए. ताकि उनके दिमाग का विकास सही तरह से हो सके.


6. कान छिदवाने से पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है. कान के जिस हिस्से को छेदा जाता है वहां एक प्वॉइंट होता है. ये प्वॉइंट भूख लगने को प्रेरित करता है. इसलिए इस प्वॉइंट को छेदने पर पाचन क्रिया सही बनी रहती है. साथ ही मोटापा भी कम होता है.


7. ऐसा भी माना जाता है कि कान छिदने से शरीर के सुन्न पड़ने और पैरालिसिस जैसी गंभीर बीमारी से बचाव होता है.


संकलन : - विनोदकुमार महाजन।

Comments

Popular posts from this blog

मोदिजी को पत्र ( ४० )

हिंदुराष्ट्र

साप आणी माणूस